अजीब संयोग: 88 साल की उम्र में ही हुआ दोनों ब्राह्मण शिरोमणि का निधन

पंडित सूरत नरायन मणि त्रिपाठी से पंडित जी ने सीखा था सियासी दांवपेच, यूं ही नहीं हासिल थी महारत


उमेश तिवारी


पूर्वांचल के कद्दावर नेता एवं प्रदेश सरकार में पांच बार मंत्री रहे पंडित हरिशंकर तिवारी ने सियासी दांवपेच जिले के कलक्टर और एमएलसी रहे पंडित सूरत नारायण मणि त्रिपाठी से सीखा था। छात्र राजनीति के दौरान ही त्रिपाठी की सोहबत में रहकर पंडित जी ने राजनीति का ककहरा सीखा और ब्राह्मणों के बड़े नेता के रूप में उभरे। यह एक अजीब संयोग है की इन दोनों ब्राह्मण शिरोमणि का निधन 88 वर्ष में ही हुआ। शायद ईश्वर को भी यही मंजूर रहा होगा। बीते दो साल से अस्वस्थ होने के चलते हाता परिसर में ही रहते थे, लेकीन गोलघर घूमना नहीं छोड़ते थे। कुछ दिन नागा होने पर कह ही देते- हमें गोलघर घुमा द। उनके बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी कुछ लोगों के साथ उन्हें गोलघर की ओर गाड़ी से भेजते थे।

हरिशंकर तिवारी अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं, लेकिन बुधवार को उनकी अंतिम शवयात्रा में शामिल लोग पुराने दिनों को याद करके उनके सियासी कद को बयां कर रहे थे। कभी पंडित जी के बेहद करीबियों में रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष दिनेश चंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि हरिशंकर तिवारी ने साल 1974 में पहली बार गोरखपुर-बस्ती विधान परिषद का चुनाव निर्दलीय लड़कर सियासत में प्रवेश किया था। उस समय बाहुबली होने के चलते चर्चाओं में थे। चुनाव में उन्हें 2700 मत मिले थे। पूर्व मंत्री ने हरवाने का आरोप लगाया था। 397 वोट अवैध करार देकर 11 वोटों से हरा दिया गया। इसी चुनाव के ठीक बाद तिवारी गिरफ्तार कर लिए गए।

जब गांवों में पगडंडी थी, तब इलाके में सड़कें बनवाईं

पूर्व जिला पंचायत सदस्य बसंत पासवान ने कहा कि पंडित जी क्षेत्र के विकास को लेकर संजीदा थे। जब गांवों में पगडंडी होती थी, तब चिल्लूपार में सड़कें बन गई थीं। पानी की टंकियां थीं और लोगों के घरों तक पानी की आपूर्ति होती थी। कछार क्षेत्र में उन्होंने विकास के मामले में कोई कोताही नहीं बरती। हमेशा सरकार में मंत्री थे, तो क्या मजाल उनकी बातों को कोई टाल दे। हर सप्ताह गांव में गुजारते थे। लोगों से मिलना-जुलना बना रहता था। क्षेत्र का कोई व्यक्ति लखनऊ में उनके आवास पर चला जाता था तो बिना भोजन कराए जाने नहीं देते थे।

पूर्व ब्लॉक प्रमुख एवं पूर्व मंत्री के करीबी राज बहादुर सिंह ने कहा कि वर्ष 1998 में चिल्लूपार में प्रलयंकारी बाढ़ आई थी। क्षेत्र की जनता परेशान थी। गांवों में लोग फंसे थे और मदद की गुहार लगा रहे थे। पंडित जी ने सीधे मुख्यमंत्री को फोन कर बचाव कार्य के लिए संसाधन मुहैया कराने की मांग की। चारों तरफ सड़क मार्ग बंद था। इलाहाबाद से हेलिकाप्टर से नेवादा गांव में नाव पहुंचाई गई। स्टीमर से पंडित जी बाढ़ से घिरे गांव गायघाट पहुंचे। इसी दौरान उन्होंने एक व्यक्ति को बाढ़ में डूबते देखा तो खुद को रोक नहीं पाए। स्वयं नदी में उतरने का प्रयास करने लगे, लेकिन साथ में मौजूद लोगों ने रोक दिया। फिर उनके साथ स्टीमर में मौजूद एक युवक ने डूबने वाली की जान बचाई। यह पंडित जी की जीवटता थी, जो दूसरों से अलग करती थी। उनका लगाव क्षेत्र के लोगों के प्रति ज्यादा था, इसलिए सबके प्रिय थे।

पूर्व मंत्री के भांजे व पूर्व सभापति विधान परिषद गणेश शंकर पांडेय ने बताया कि पिछले दो साल से उनकी याददाश्त कमजोर हो गई थी। वे हमेशा लोगों के बीच रहने की सलाह देते थे। जब भी उनके पास जाता था तो सक्रियता के लिए प्रेरित करते थे। कहते थे कि समाज में निष्क्रिय लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। जब उनके बीच रहेंगे तो सुख-दुख को जानेंगे। तभी उनके प्रिय बन पाएंगे। अक्सर वे गांव और नौतनवां स्थित फार्म हाउस जाने की जिद करते थे। कभी-कभी तो कहते थे कि गोलघर घुमा दो। फिर गोलघर घुमाकर लोग ले आते थे। मैंने तो उनसे जीवन में बहुत कुछ सीखा और आत्मसात किया।

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