फीका पड़ता ब्रांड मोदी का असर, यूपी में योगी ने तोड़ी माफिया की कमर

नम्बर-2 की लड़ाई में कहीं ज्यादा पीछे छूटे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह

निकाय चुनाव की जीत के साथ ही योगी ने पूरे देश को दिखाया दम


आदेश शुक्ला
आदेश शुक्ला

तारीख थी 13 मई 2023 और सूरज धीरे-धीरे ऊपर की ओर चढ़ रहा था। घड़ी की सूइयां जैसे ही 12 के पार पहुंची, पूरे देश में सियासी पारा तेजी से बढ़ गया। बैलेट पेपर में कांग्रेस से कहीं आगे दिखने वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोपहर होते-होते करीब 50 सीटों से पिछड़ चुकी थी। इसी के साथ ही पूरे देश में बीजेपी के पोस्टर ब्वॉय (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) और चाणक्य (गृहमंत्री अमित शाह) की चर्चाएं चौक-चौराहों और गली-नुक्कड़ में शुरू हो चुकी थी। जितनी मुंह उतनी बातें। कोई मोदी के अवसान की चर्चा कर रहा था तो कई लोग ब्रांड मोदी के कमजोर होने की बात करने लगे थे। हालांकि कर्नाटक के हार की पीड़ा उनके चेहरे पर असल नुमायां हो रही थी, लेकिन उसे छुपाते-छुपाते वो मोदी की ही चर्चा कर रहे थे। 74 साल के मोदी ने केवल 10 दिन में कर्नाटक सूबे के करीब तीन हजार किमी. को रोड शो किया। लेकिन वो और उनका चेहरा कर्नाटक में कोई बड़ा करिश्मा नहीं दिखा पाया। बताते चलें कि कर्नाटक में भाजपा ने पीएम मोदी को चेहरा बनाया था और स्थानीय नेतृत्व को दरकिनार कर दिया था। दूसरी ओर कांग्रेस के विज्ञापनों में गांधी परिवार नेपथ्य में था और डीके शिवकुमार के साथ सिद्धारमैया ही हर जगह दिखाई पड़ रहे थे। इस चुनाव में मोदी ने अपनी पर्सनालिटी को खूब दांव पर लगाया लेकिन वह कर्नाटक में पार्टी की नैया पार लगाने में असफल साबित हुए। इस हार का असर सबसे ज़्यादा पार्टी के ‘चाणक्य’ पर पड़ेगा। जनता की नज़र में उनका क़द निश्चित तौर पर कम होगा और योगी को उनके इसी घटते क़द का बड़ा लाभ मिलेगा।

दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी कड़क छवि के बूते स्थानीय निकाय चुनाव में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। ‘माफिया की तोड़ो कमर, उसमें नहीं रहने दो लचक’ के फॉर्मूले पर उन्होंने यूपी के 17 में से 17 महापौर पद जीत लिए। वह कर्नाटक भी बतौर स्टार प्रचारक आते-जाते रहे। लेकिन उन्होंने अपने सूबे का भी ध्यान रखा और नगरीय चुनाव में प्रचंड जीत के साथ ही वह यूपी के सबसे बड़े नेता साबित हुए। यही कारण है कि उन्होंने वाराणसी मेयर पद के लिए स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी को एक दिन भी रोड शो, प्रचार या सभा करने के लिए नहीं बुलाया था। सत्ता के गलियारों में यह चर्चा उठने लगी कि योगी ही ऐसे नेता हैं, जो मोदी के बाद पूरे देश में जाने-पहचाने और माने जाते हैं।

बात कर्नाटक की करें तो राज्य में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार सबसे मजबूत मुद्दे बनकर उभरे थे। कांग्रेस ने पहली बार भाजपा को 40 फ़ीसदी कमीशन की बात कहकर भ्रष्टाचार में लिप्त ठहराया था। यानी जिस हथियार के बूते इन्होंने कांग्रेस का सफ़ाया किया, अब कांग्रेस भी उन्हीं को चमकाना शुरू कर दिया है। साथ ही वहाँ की जीत का ख़िताब हिजाब गर्ल को भी जाना चाहिए, जिसने सरे-आम कॉलेज के भीतर धार्मिक नारे लगाए और एक ख़ास कम्युनिटी को कांग्रेस के साथ जोड़ा। कर्नाटक ऐसा राज्य है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में अग्रणी रहा है। यह ग्रिड-इंटरैक्टिव नवीकरणीय ऊर्जा की कुल स्थापित शक्ति में देश का नेतृत्व करता है। यह स्टार्ट-अप और उन लोगों के लिए ऐसा प्रदेश है, जो इसे पनपने और प्रयोग करने के लिए अपनी शक्ति खर्च करते हैं। भारत की कुल 95 यूनिकॉर्न कम्पनियाँ (वो कम्पनियां जो एक छोटे से आइडिया के साथ शुरू होती हैं और कुछ समय बाद ही उनका टर्न ओवर एक बिलियन डॉलर से अधिक हो जाता है) इसी सूबे में पाई जाती है। वहां 13 हज़ार से अधिक स्टार्ट-अप कम्पनियां हैं। वहीं 40 साल से भी पहले कर्नाटक में इंफोसिस की कहानी गढ़ी गई थी, जिसने भारत को वैश्विक पटल पर स्थापित किया। कर्नाटक ने ही TCS और अन्य कम्पनियों के जरिए एक क्रांति की शुरुआत हुई जिसमें प्रत्यक्ष रोजगार में 50 लाख से अधिक लोग हैं। इसी राज्य की IT कम्पनी विप्रो के संस्थापक प्रेमजी हैं, जिन्होंने IT के क्षेत्र में नए आयाम बनाए। आज वो भारत के सबसे बड़े बिजनेस लीडर हैं।

आँकड़ों की बात करें तो बीजेपी को कर्नाटक ने कभी बहुमत नहीं दिया। साल 2008 में भाजपा को 110 सीटें मिली थीं। तत्कालीन निर्दलीय विधायकों को पाले में लेकर येदियुरप्पा ने सरकार बनाई थी। इसके बाद वर्ष 2019 में BJP ने फिर से ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिए सरकार बनाई थी। बताते चलें कि साल 2018 के चुनाव के बाद सूबे में कांग्रेस और JDS की सरकार बनी थी।

वैसे कर्नाटक के परिणाम ने क़रीब सवा दो हज़ार किमी दूर दिल्ली वालों की पेशानी पर बल डाल दिया है। ख़ास बात यह कि मोदी की जो अजेय छवि BJP ने बना रखी है, उसे ध्वस्त कर दिया। यह केवल कांग्रेस की जीत नहीं हैं, ये राहुल गांधी के भारतीय राजनीति में बढ़ते कद की गवाही भी है। सनद रहे राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सबसे अधिक 21 दिन इसी सूबे में गुजारे और करीब पाँच सौ किमी की यात्रा यहां की। उन्होंने इसी राज्य से ऐलान किया था कि वे मोहब्बत की दुकान खोलने निकले हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान ‘जितनी आबादी-उतना हक़’ का नारा देकर राहुल गांधी ने एक लम्बी लकीर खींची और कांग्रेस की सामाजिक न्याय की ऐतिहासिक विरासत को फिर से मुख्यधारा में ले आए। कर्नाटक जीत के बाद कांग्रेस ख़ेमे में एक तेज़ रोशनी उभरी है। अब यही रोशनी साल 2024 तक पूरे देश में बिखरेगी, यह नजर आ रहा है। मोदी को अपनी कुर्सी बचाने के लिए कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ेगी।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक दिखेगा असर

कर्नाटक के नतीजों का असर अब कांग्रेस के लिए संजीवनी बन सकती है। अगले पांच-छह महीनों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पहले से मजबूत है। सीएम भूपेश बघेल की क्षमताओं पर कांग्रेस आलाकमान को काफ़ी यकीन है। वहीं मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों अनुभवी नेताओं के मार्गदर्शन में कांग्रेस मजबूत हो रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिले धोखे के नुकसान की भरपाई कांग्रेस इस बार कर लेगी, इसके आसार हैं। वहीं राजस्थान में सचिन पायलट के अलग राग के बावजूद अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस मजबूत दिख रही है। तेलंगाना में प्रियंका गांधी ने कर्नाटक के तुरंत बाद प्रचार शुरू कर दिया है। इन विधानसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस के आगे भाजपा और मोदी की साख दांव पर रहेगी।

कांग्रेस के विजय के बाद विपक्षी भी हो सकते हैं एकजुट

जनता दल यूनाइटेड (JDU) के नेता नीतीश कुमार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक शरद पवार जैसे दिग्गज नेता इस परिणाम के पहले से ही विपक्षी एकजुटता की मुहिम में जुटे हुए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर रॉव, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और यूपी के पूर्व वजीर-ए-आला अखिलेश यादव भी मोदी के ख़िलाफ़ भी जमकर गरज-बरस रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह भाजपा को हारता हुआ देखना चाहते हैं। अब कर्नाटक परिणाम के बाद वो भी मोदी को शिकस्त देने की रणनीति बनाने में जुट गए होंगे।

योगी देश में भाजपा के नम्बर-2 नेता बने

माफ़िया पर कड़क रुख़ रखने वाले योगी अब आम जनता की पसंद बन चुके हैं। भगवा वस्त्रधारी बाबा की ईमानदारी और न्यायप्रियता की चर्चाएँ दूरदराज़ तक सुनने को मिल जाती हैं। पूर्वोत्तर से लेकर पश्चिम के गुजरात और महाराष्ट्र में बड़ा चेहरा बनते जा रहे योगी को जनता मोदी का सहज उत्तराधिकारी मान रही है। हालाँकि यूपी का जलशक्ति विभाग भी कमीशनखोरी के कारण चर्चा में है। वो भी उस राज्य की कम्पनियों के बीच, जहां भाजपा की सत्ता नहीं है। ग़ौरतलब है कि तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक की अधिकांश कम्पनियाँ ही जल जीवन मिशन में कार्य कर रही हैं।

दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी कड़क छवि के बूते स्थानीय निकाय चुनाव में विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया। ‘माफिया की तोड़ो कमर, उसमें नहीं रहने दो लचक’ के फॉर्मूले पर उन्होंने यूपी के 17 में से 17 महापौर पद जीत लिए। वह कर्नाटक भी बतौर स्टार प्रचारक आते-जाते रहे। लेकिन उन्होंने अपने सूबे का भी ध्यान रखा और नगरीय चुनाव में प्रचंड जीत के साथ ही वह यूपी के सबसे बड़े नेता साबित हुए। यही कारण है कि उन्होंने वाराणसी मेयर पद के लिए स्थानीय सांसद नरेंद्र मोदी को एक दिन भी रोड शो, प्रचार या सभा करने के लिए नहीं बुलाया था। सत्ता के गलियारों में यह चर्चा उठने लगी कि योगी ही ऐसे नेता हैं, जो मोदी के बाद पूरे देश में जाने-पहचाने और माने जाते हैं।

बात कर्नाटक की करें तो राज्य में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार सबसे मजबूत मुद्दे बनकर उभरे थे। कांग्रेस ने पहली बार भाजपा को 40 फ़ीसदी कमीशन की बात कहकर भ्रष्टाचार में लिप्त ठहराया था। यानी जिस हथियार के बूते इन्होंने कांग्रेस का सफ़ाया किया, अब कांग्रेस भी उन्हीं को चमकाना शुरू कर दिया है। साथ ही वहाँ की जीत का ख़िताब हिजाब गर्ल को भी जाना चाहिए, जिसने सरे-आम कॉलेज के भीतर धार्मिक नारे लगाए और एक ख़ास कम्युनिटी को कांग्रेस के साथ जोड़ा। कर्नाटक ऐसा राज्य है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार में अग्रणी रहा है। यह ग्रिड-इंटरैक्टिव नवीकरणीय ऊर्जा की कुल स्थापित शक्ति में देश का नेतृत्व करता है। यह स्टार्ट-अप और उन लोगों के लिए ऐसा प्रदेश है, जो इसे पनपने और प्रयोग करने के लिए अपनी शक्ति खर्च करते हैं। भारत की कुल 95 यूनिकॉर्न कम्पनियाँ (वो कम्पनियां जो एक छोटे से आइडिया के साथ शुरू होती हैं और कुछ समय बाद ही उनका टर्न ओवर एक बिलियन डॉलर से अधिक हो जाता है) इसी सूबे में पाई जाती है। वहां 13 हज़ार से अधिक स्टार्ट-अप कम्पनियां हैं। वहीं 40 साल से भी पहले कर्नाटक में इंफोसिस की कहानी गढ़ी गई थी, जिसने भारत को वैश्विक पटल पर स्थापित किया। कर्नाटक ने ही TCS और अन्य कम्पनियों के जरिए एक क्रांति की शुरुआत हुई जिसमें प्रत्यक्ष रोजगार में 50 लाख से अधिक लोग हैं। इसी राज्य की IT कम्पनी विप्रो के संस्थापक प्रेमजी हैं, जिन्होंने IT के क्षेत्र में नए आयाम बनाए। आज वो भारत के सबसे बड़े बिजनेस लीडर हैं।

आँकड़ों की बात करें तो बीजेपी को कर्नाटक ने कभी बहुमत नहीं दिया। साल 2008 में भाजपा को 110 सीटें मिली थीं। तत्कालीन निर्दलीय विधायकों को पाले में लेकर येदियुरप्पा ने सरकार बनाई थी। इसके बाद वर्ष 2019 में BJP ने फिर से ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिए सरकार बनाई थी। बताते चलें कि साल 2018 के चुनाव के बाद सूबे में कांग्रेस और JDS की सरकार बनी थी।

वैसे कर्नाटक के परिणाम ने क़रीब सवा दो हज़ार किमी दूर दिल्ली वालों की पेशानी पर बल डाल दिया है। ख़ास बात यह कि मोदी की जो अजेय छवि BJP ने बना रखी है, उसे ध्वस्त कर दिया। यह केवल कांग्रेस की जीत नहीं हैं, ये राहुल गांधी के भारतीय राजनीति में बढ़ते कद की गवाही भी है। सनद रहे राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सबसे अधिक 21 दिन इसी सूबे में गुजारे और करीब पाँच सौ किमी की यात्रा यहां की। उन्होंने इसी राज्य से ऐलान किया था कि वे मोहब्बत की दुकान खोलने निकले हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान ‘जितनी आबादी-उतना हक़’ का नारा देकर राहुल गांधी ने एक लम्बी लकीर खींची और कांग्रेस की सामाजिक न्याय की ऐतिहासिक विरासत को फिर से मुख्यधारा में ले आए। कर्नाटक जीत के बाद कांग्रेस ख़ेमे में एक तेज़ रोशनी उभरी है। अब यही रोशनी साल 2024 तक पूरे देश में बिखरेगी, यह नजर आ रहा है। मोदी को अपनी कुर्सी बचाने के लिए कड़ी मशक़्क़त करनी पड़ेगी।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक दिखेगा असर

कर्नाटक के नतीजों का असर अब कांग्रेस के लिए संजीवनी बन सकती है। अगले पांच-छह महीनों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पहले से मजबूत है। सीएम भूपेश बघेल की क्षमताओं पर कांग्रेस आलाकमान को काफ़ी यकीन है। वहीं मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों अनुभवी नेताओं के मार्गदर्शन में कांग्रेस मजबूत हो रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिले धोखे के नुकसान की भरपाई कांग्रेस इस बार कर लेगी, इसके आसार हैं। वहीं राजस्थान में सचिन पायलट के अलग राग के बावजूद अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस मजबूत दिख रही है। तेलंगाना में प्रियंका गांधी ने कर्नाटक के तुरंत बाद प्रचार शुरू कर दिया है। इन विधानसभा चुनावों में एक बार फिर कांग्रेस के आगे भाजपा और मोदी की साख दांव पर रहेगी।

कांग्रेस के विजय के बाद विपक्षी भी हो सकते हैं एकजुट

जनता दल यूनाइटेड (JDU) के नेता नीतीश कुमार और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक शरद पवार जैसे दिग्गज नेता इस परिणाम के पहले से ही विपक्षी एकजुटता की मुहिम में जुटे हुए हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर रॉव, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और यूपी के पूर्व वजीर-ए-आला अखिलेश यादव भी मोदी के ख़िलाफ़ भी जमकर गरज-बरस रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह भाजपा को हारता हुआ देखना चाहते हैं। अब कर्नाटक परिणाम के बाद वो भी मोदी को शिकस्त देने की रणनीति बनाने में जुट गए होंगे।

योगी देश में भाजपा के नम्बर-2 नेता बने

माफ़िया पर कड़क रुख़ रखने वाले योगी अब आम जनता की पसंद बन चुके हैं। भगवा वस्त्रधारी बाबा की ईमानदारी और न्यायप्रियता की चर्चाएँ दूरदराज़ तक सुनने को मिल जाती हैं। पूर्वोत्तर से लेकर पश्चिम के गुजरात और महाराष्ट्र में बड़ा चेहरा बनते जा रहे योगी को जनता मोदी का सहज उत्तराधिकारी मान रही है। हालाँकि यूपी का जलशक्ति विभाग भी कमीशनखोरी के कारण चर्चा में है। वो भी उस राज्य की कम्पनियों के बीच, जहां भाजपा की सत्ता नहीं है। ग़ौरतलब है कि तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक की अधिकांश कम्पनियाँ ही जल जीवन मिशन में कार्य कर रही हैं।

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