कविता : आज तो मैंने ऐसा कुछ सीखा है,

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र,

धरा पर नीम के वृक्ष काटे जा रहे हैं
दिलों में कड़वाहट बढती जा रही है।
जीभ स्वाद कड़वा होता जा रहा है,
वाणी में मधुरता कम होती जा रही है।

शरीर में सुगर तो बढती जा रही है,
इंसानी ब्लड प्रेशर बढ़ता जा रहा है,
मैदानी छाया समाप्त होती जा रही है,
हृदयों में ईर्ष्या द्वेष बढ़ता जा रहा है।

किसी महापुरुष ने सच ही कहा था
पुस्तकें सड़क किनारे रखकर बिकेंगी
और जूते काँच के शो रूम में बिकेंगे,
हमें शिक्षा नहीं जूते की जरुरी होंगे।

आज तो मैंने ऐसा कुछ सीखा है,
स्पष्टीकरण हमें वहीं पर देना है,
जहाँ इसे सुनने और समझने का
दिल और दिमाग़ तैयार होता है।

कोई अगर हमें ग़लत मानने को
जानबूझ कर पूरी तरह उद्यत हो,
उसे सफ़ाई देने का फ़ायदा नहीं है,
ख़ुद की नज़रों में ख़ुद गिरना नहीं है।

सबसे कुछ सीख लेता है जो,
वही तो बुद्धिमान कहा जाता है,
जो इच्छाओं पर नियंत्रण कर ले
वहीं शक्तिशाली कहा जाता है।

जो दूसरों का सम्मान करता है,
वही सम्मानित कहा जाता है,
आदित्य अपने पास जो है उसी में
खुश सबसे धनवान कहा जाता है।

 

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