अमरीका में चूहा मारो तो वेतन! यूपी में सजा और जुर्माना!!

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

आदर्श गृहणी अमूमन तीन से बौखलाती है, इनसे उसे झल्लाहट होती है : अव्यवस्थित घर, आलसी पति और उत्पाती चूहा। चूंकि उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव शुरू हो गए हैं, (मतदान 4 मई 2023 से हैं), अतः महिला हेतु आरक्षित महापौर सीटों (लखनऊ मिलाकर) में यदि प्रत्याशी वादा करें कि शहर को चूहा-मुक्त कर देंगी, तो थोक में वोट पड़ेंगे। यह इतना गंभीर मुद्दा है कि बारह हजार किलोमीटर दूर न्यूयॉर्क के मेयर एरिक एडम्स ने गत माह अपना प्रथम चूहा “जार” (अधिकारी) सुश्री कैथरीन कोराडी को नामित किया है। सालाना वेतन होगा, 155,000 डालर (आज एक डालर 83 रुपए के बराबर है)। इस प्राथमिक क्लास की शिक्षिका कैथरीन को कचरा प्रबंधन का निष्णात माना जाता है।

विश्व की विशालतम नगर महापालिका न्यूयॉर्क है। इसकी जनसंख्या नवासी लाख हैं। वहां के चूहों की आबादी से करीब एक लाख कम ! उपन्यासकार चार्ल्स डिकन्स ने 1842 में न्यूयॉर्क में चूहों से परेशानी का वर्णन किया था। गत वर्ष हालीवुड की एक फिल्म में तो भूमिगत रेल स्टेशन की रेलिंग के सहारे फिसलते एक चूहे का दृश्य था। उसके दांतो तले पिज्जा था। यूं भी न्यूयार्क में बड़के मूषक “पिज्जा चूहे” कहलाते हैं। भारत में हाल ही की जनगणना की रपट में चीन से ज्यादा लोग बताए गए हैं। मगर चूहे तो चीन से भी कई गुना अधिक यहां हैं। बल्कि चीन में तो चूहे बचे ही नहीं। उन का सूप, मुरब्बा, अचार, खासकर उसकी पूंछ का तो, बहुत ही स्वादिष्ट बतायी जाती है।

भारत में चूहा खाना तो क्या मारने तक पर पाबंदी है। (हालांकि मूसर जाति का यह भोज्य पदार्थ है)। अभी कुछ माह पूर्व बदायूं (यूपी) से खबर आई थी कि चूहे की हत्या के जुर्म में कोतवाली क्षेत्र के मनोज नामक व्यक्ति पर मुकदमा दायर हुआ है। उसने पानी में डुबोकर एक चूहे की हत्या कर डाली। आरोपी के खिलाफ कोर्ट में 30 पेज की चार्जशीट दाखिल हुई है। उसने चूहे को पत्थर से बांधकर नाले में फेंक दिया था। उसकी मौत हो गई। संभवतः देश का यह पहला मामला है, जिसमें चूहे की मौत पर कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल किया गया है। नाले के बगल से गुजर रहे एक पशुप्रेमी ने यह सब देखा था। उसने नाले से चूहे को बाहर निकाला और उसका वीडियो बनाया तथा शिकायत की। इसके बाद पुलिस ने मनोज को थाने बुलाया। हिरासत में रखा। पशुप्रेमी ने बरेली में चूहे के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाया। दबाव बनने पर अपराधी के खिलाफ पशु क्रूरता का मामला दर्ज हुआ। चूहे को मारने की दवा तक बिकती है। फिर ये गुनाह कैसे हो गया ? चार दिन तक मंथन चला। पुलिस ने आरोपी पर धारा-11 (पशु क्रूरता निवारण अधिनियम) और धारा-429 लगाई है। धारा- 429 जानवर की हत्या या अपाहिज करने में लगाई जाती। धारा-4291 पर दोषी पाए जाने पर पांच साल की कैद/जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में दम घुटने से चूहे की मौत की बात सामने आई थी। आरोपपत्र दाखिल करने वाले दरोगा ने बताया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में चाहे जो भी हो, पशु-क्रूरता की गई है। वहीं सीओ सिटी ने बताया कि चूहे के मामले की विवेचना पूरी होने के बाद विवेचक ने सभी साक्ष्य एकत्र कर चार्जशीट तैयार कर कोर्ट में दाखिल कर दी गई है।

आरोपी ने कहा कि :  मैंने कोई अपराध नहीं किया है और अगर किया भी है तो मैं उसके लिए माफी मांग रहा हूं। लेकिन मुझे बता दें कि जो लोग मुर्गा, बकरा, गाय काटते हैं उन्हें सजा कब मिलेगी ? मेरे घर में चूहे ने जो नुकसान किया है उसकी भरपाई कौन करेगा ?

अब जिक्र हो हिंदू धर्म में चूहे के स्थान पर ! गणेश का वाहन तो वह शुरू से रहा है। कथानुसार खुद स्थूलकाय गणपति ने लघु आकारवाले चूहे को अपना वाहन बनाकर भौतिक संतुलन स्थापित किया है। यहां चूहे का ही एक प्रसंग है। एक बार सांप दिख गया था, तो वाहनरूपी चूहा भागा। गड़बड़ाकर गणेशजी धराशायी हो गए। इस नजारे पर चंद्रमा हंस पड़े। गणेश ने शाप दे दिया कि उसका आकार घटता-बढ़ता रहेगा। तभी से चंद्रमा के लिए बालेंदु से पूर्णचंद्र और फिर प्रतिपदा से अमावस तक का दौर चलता है। इस शाप के प्रभाव से जो भी चंद्रमा को चतुर्थी पर देखता है, उस पर झूठा कलंक लगता है। कृष्ण ने एक बार देख लिया था, तो स्यमंतक मणि चुराने का आरोप लगा था। चूहे का नाता आर्य समाज आंदोलन से भी जुड़ा है। इसके संस्थापक श्रद्धेय स्वामी दयानन्द सरस्वती के बाल्यावस्था का किस्सा है। आर्य समाज की नींव रखकर धार्मिक कर्मकांडों को सीधे चुनौती देने वाले दयानन्द सरस्वती के रूप में स्वामी जी ने मूर्तिपूजा और धार्मिक पाखंड के खिलाफ आवाज उठाई थी। एक बार शिवरात्रि के व्रत पर रात भर जागरण करने के दौरान शिवलिंग के आसपास कई चूहे आ गए और मूर्ति पर चढ़ा प्रसाद खाने लगे। इसको देखकर बालक मूलशंकर चौक गए। उन्होंने सोचा “जो भगवान अपने प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकते वो हमारी कैसे करेंगे।” मूर्ति-भंजन तभी से शुरू हुआ।

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