माफिया कि मौत! अंत भला तो सब भला!!

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

माफिया अतीक अहमद के हत्यारे-पुत्र असद अहमद को मारकर योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने 48 दिनों बाद पीड़िता को नैसर्गिक न्याय दिलाया। वर्ना मृतकों की पिस्तौलों (ब्रिटिश बुल्डाग और बाल्थर पी–88 से) कई खाकीधारी रक्षक ही आज शहीद हो जाते। पुलिस की सूचना के अनुसार ये अस्त्र अतीक को पाकिस्तान से ड्रोन द्वारा पंजाब सीमा पर सप्लाई किया जाता था। अब स्व. उमेश पाल (अतीक के गुर्गों द्वारा मारे गए बसपा विधायक राजू पाल का मित्र) की मां शांति देवी का कलेजा ठंडा हो गया होगा। उन्होंने (5 मार्च 2023) कहा भी था : “मात्र घर ढहाने से नहीं, माफिया अतीक और अशरफ के मारे जाने से ही मेरे कलेजे को ठंडक मिलेगी।” मगर अब दिलचस्पी इसमें होगी कि कौन सी सियासी पार्टी माफिया असद अहमद के लिए नमाजे जनाजा अता करेगी ? योगीजी ने विधानसभा में (25 फरवरी 2003) वादा किया था कि : “माफिया को मिट्टी में मिला देंगे।” फिल वक्त मियां अतीक अहमद के हसीन ख्वाबों को तो खाक में मिला ही दिया गया। प्रयागराज की उस अदालत में जहां कैदी अतीक को जब-जब लाया जाता था तो आतंक से इतनी शांति छा जाती थी कि सुई गिरने की आवाज भी सुनी जा सकती थी।

स्वयं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने (5 मार्च 2023) को एक तल्ख टिप्पणी की कहा : “देखने से लगता है कि धूमनगंज थाना क्षेत्र में पुलिस का नहीं, अतीक अहमद का इकबाल चलता है।” अब मंजर बदला है उसी कोर्ट परिसर का। वहां आज अपने बेटे की गोलियों से भुनी लाश पर अतीक रोया। बाहर नाराज जनता जूतों का हार लिए अतीक की प्रतीक्षा में थी, इस खूंखार माफिया के गले में डालने के लिए। इसी बीच अतीक अहमद की पार्टी प्रमुख बहन कुमारी सुश्री मायावती ने ऐलान कर दिया कि अतीक अहमद कि बेगम शाइस्ता परवीन प्रयागराज के महापौर पद की प्रत्याशी नामित नहीं की जाएंगी। वरना यह तय लग रहा था कि धर्मनगरी की प्रथम नागरिक इस मुस्लिम माफिया की शरीके हयात ही होंगी। यूं समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने असद अहमद के मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। प्रतिक्रिया स्वाभाविक तथा अपेक्षित रही क्योंकि अतीक को समाजवादी समाज का स्वप्नदृष्टा माना जाता रहा। मायावती ने भी जांच की मांग की है।

अतीक के पुत्र को जिस रीति से अंतिम दंड दिया गया वह याद दिलाता है 1980-82 का दौर जब इंदिरा गांधी-राज में मांडा राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक इंसाफ दिया जाता था। उसी का यह परिष्कृत रूप है। तो मियां अतीक अहमद की विशिष्टता पर चर्चा तो होनी चाहिए। वे फूलपुर से लोकसभा सदस्य रहे जहां से जवाहरलाल नेहरू (1952-62) जीता करते थे। संगम के पूर्वी छोर पर बसा फूलपुर लोकसभाई चुनाव क्षेत्र तब गंदला हो गया था। फिर हत्या, लूट, डकैती, अपहरण, राहजनी के पैंतीस जघन्य मुकदमों में अभियुक्त माफिया डान अतीक अहमद यहां के जनप्रतिनिधि निर्वाचित हुए। तब वे समाजवादी पार्टी में थे। वर्षों तक अतीक अहमद का अस्थायी आवास नैनी सेंट्रल जेल रहा। कभी-कभी तो वे संसद भवन से सीधे इस कारागार में पधारते थे। यूं तो नेहरू भी दस वर्षों तक जेल में रहे, मगर बर्तानवी सत्ता से टकराने के कारण, अहिंसक संघर्ष के सिपाही के रूप में। फूलपुर ने प्रधानमंत्री रह चुके विश्वनाथ प्रताप सिंह को 1971 में चुना था। नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित और लोहियावादी जनेश्वर मिश्र को भी वोटरों ने यहीं से विजयी बनाया था।

जान बचे यदि शराब छूटे!

क्या नियति है। बंदूक-पिस्तौल के दम पर करोड़ों रुपयों की जायदाद बनाने वाले अतीक अहमद आज कैदी नंबर 17052 बनकर रोज पच्चीस रुपए कमाता है। अहमदाबाद जेल से साबरमती जेल में अतीक संडास साफ करता है, धोबी का काम करता है। उसका वजन भी कम हो रहा है। इतिहास बताता है कि असद ने अपराध की दुनिया में छह महीने पहले ही कदम रखा था। भाई अली और उमर के सरेंडर कर जेल जाने के बाद अतीक गैंग की कमान उसने संभाल ली थी। उसे “छोटे” कहकर पुकारते थे। वह गिरोह का संचालन लखनऊ के एक फ्लैट से करता था। असद अहमद की मौत पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि कानून की धज्जियां उड़ाई गई हैं। अब ओवैसी बताएं कि आज तक जो लोग (अतीक-असद) बाप-बेटे द्वारा हत्या के शिकार हुए उनके लिए कई संवेदना ? जब हाल ही में प्रयागराज में उमेश पाल को असद ने छलनी कर दिया था तब ओवैसी का पूरा मौन था ! अर्थात अपराध की परिभाषा और गंभीरता भी मजहब के आधार पर तय की जाएगी ? मियां अतीक अहमद की कथा को पढ़िये वरिष्ठ संवाददाता अंकित तिवारी (नवभारत टाइम के 3 मार्च 2023) की कलम से : “अतीक का नाम सबसे पहले 1979 में एक हत्या में आया था। तब वह केवल 17 साल का था। उसके पिता फिरोज इलाहाबाद स्टेशन पर तांगा चलाते थे। गली-मोहल्ले की गुंडई करते-करते अतीक इलाहाबाद के कुख्यात चांद बाबा के मुकाबिल हो गया।

लोगों की मदद से अतीक का ग्राफ बढ़ने लगा। 1986 में जब पुलिस ने पकड़ा तो दिल्ली के एक रसूखदार परिवार ने छोड़ने की सिफारिश की। फिर 1989 में वह इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चांद बाबा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरा और विधायक बन गया। उसके माननीय बनने के कुछ महीने के भीतर ही चांद बाबा की दिनदहाड़े सरे बाजार हत्या कर दी। उसके गैंग के बाकी लोगों को भी एक-एक करके मार डाला गया। अब चंद अल्फाज काषाय परिधानधारी योगी आदित्यनाथ महाराज से की जा रही जनअपेक्षाओं की बाबत। क्योंकि सिर्फ सपोले की मौत हुई है, विष का श्रोत नहीं सूखा है। फिलहाल योगीजी इस पूरे हादसे पर बड़ी सहनशीलता से कह सकते हैं जो गोस्वामी तुलसी दास जी ने उत्तरकांड (रामचरित मानस) में कहा था : “कहेउँ नाथ हरि चरित अनूपा । व्यास समास स्वमति अनुरूपा ॥” (हे नाथ ! मैंने श्रीहरिका अनुपम चरित्र अपनी बुद्धि के अनुसार कहीं विस्तार से और कहीं संक्षेप से कहा।) मगर आगे योगी जी को ही बाकी माफियाओं को भी ठीक करना होगा।

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