
नया लुक ब्यूरो
लखनऊ। पाँच बार विधायक और एक बार सांसद। माफ़िया से सफ़ेदपोश तक की यात्रा करने वाले अतीक ने कभी यह नहीं सोचा था कि जिस गोली के दम पर वह लोगों के बीच आतंक फैला रहा था, वही गोली एक दिन उनकी जान ले लेगी। एक ही हथकड़ी में बंधे, सिर पर ‘कफन’ बांधे घूमने वाले दोनों भाइयों को इतनी क़रीब से गोली मारी कि दोनों की मौक़े पर ही मौत हो गई। पुलिस के अनुसार अतीक और अशरफ़ को क़रीब 15 राउंड गोली मारी गई है। बीजेपी विधायक और प्रवक्ता शलभमणि बताते हैं कि यह पुलिस सुरक्षा में चूक नहीं बताया जा सकता है। अचानक अटैक होने पर इस तरह की चूक हो सकती है।
पुलिस के एक आला अधिकारी कहते हैं कि तीन लोग मीडियाकर्मी बनकर आए और उनसे वह बयान लेने की कोशिश किए और बिल्कुल पास के गोली मार दिए। कुछ पत्रकार और मेरा एक सिपाही घायल है। लखनऊ के एक पत्रकार को भागते हुए चोट लगी है। कुछ देर बाद ही मामला स्पष्ट हो सकेगा। वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा कहते हैं कि इस तरह की घटना में जो भी लोग होंगे, उन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाई जाएगी।
पुलिस की गिरफ़्त में आए तीनों आरोपियों के नाम क्रमशः लवलेश तिवारी, सन्नी और अरुण मौर्य बताया जा रहा है। दूसरी ओर सीएम आवास पर एक हाई प्रोफ़ाइल मीटिंग बुलाई गई है। प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद, पुलिस महानिदेशक आरके विश्वकर्मा और स्पेशल डीजी क़ानून व्यवस्था प्रशांत कुमार भी सीएम आवास पहुँच गए हैं।
कौन है आतंकी अतीक
अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 को प्रयागराज में हुआ था। पाँच बार का विधायक अतीक समाजवादी पार्टी से सांसद बना था। उत्तर प्रदेश के फूलपुर से 14वीं लोकसभा के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुना गया था। लगभग आधे दशक से प्रयागराज की एक छवि गुंडों के शहर के रूप में भी काफी प्रचलित है। ऐसी छवि बनाने वालों में अतीक अहमद “चकिया” का नाम सबसे ऊपर आता है, जो इस समय अनेक अपराधों के कारण (इसके विरूद्ध लगभग 70 आपराधिक मामले दर्ज हैं) गुजरात की साबरमती जेल में बंद था।
ग़ौरतलब है कि इंदिरा गांधी के शासन में (70 और 80 के दशक में), अतीक ने अपने समुदाय के मध्य अपनी छवि एक ऐसे युवा की बनाई जो दंगों के दौरान उसके समुदाय के लोगों की रक्षा कर सकता था। मतलब जितने अधिक दंगे होते थे उसकी लोकप्रियता उतनी अधिक थी। साल 1979 में पहली बार अतीक पर जघन्य अपराध (हत्या) का मुकदमा दर्ज हुआ। अतीक यूपी का पहला अपराधी था जिसके ऊपर “गैंगस्टर एक्ट” लगाया गया। इसके लगभग दस वर्ष बाद, 1989 में इसने स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा से विधायक का चुनाव लड़कर और विजयी होकर अपनी पॉपुलैरिटी और समुदाय विशेष के जनाधार को भुना लिया। अब वह एक अपराधी, गुण्डा, हत्यारा नहीं बल्कि समुदाय विशेष का हीरो था।