जुड़वां बच्चों की कुंडली होती है समान, फिर क्यों भविष्य में होता है अंतर?

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


जुड़वां बच्चों के जन्म में कुछ समय का अंतर होता है। यह तीन से 12 मिनट का हो सकता है। ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी बदल जाने से बच्चों के भाग्य में भी अंतर हो जाता है। ‘ज्योतिष’ मुनष्य के भविष्य को ज्ञात करने वाली पद्धित मानी जाती है। इसलिए कहा जाता है कि जब तक भविष्य है तब तक ज्योतिष भी है। ज्योतिषियों से हर कोई भविष्य जानना चाहता है। लेकिन सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्न हैं कि ‘जुडवां बच्चों की कुंडली समान होने के बाद भाग्य में अंतर क्यों?’ कहा जाता है कि कर्म सिद्धांत के कारण भी जुड़वां बच्चों के भाग्य में अंतर होता है। क्योंकि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। जुड़वां बच्चों पर भी यही बात लागू होती है। भले ही उनके जन्म समय में कुछ मिनट का अंतर होता है, लेकिन उनके द्वारा किए कर्म उन्हें अलग-अलग दिशाओं में ले जाते हैं। वास्तव में जुड़वां बच्चों की कुंडली महत्वपूर्ण विषय है। यदि प्रत्यक्ष रूप में देखा जाए तो दोनों की कुंडली समान लगती है और जन्म समय में भी बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है। फिर भी भाग्य में अंतर होने के कारण दोनों बच्चों के जीवन की दशा और दिशा अलग-अलग होती है। जुड़वां बच्चों की कुंडली का अध्ययन विशेष तरीकों से किया जा सकता है।

जुड़वां बच्चों की कुंडली में समान होती है ये बातें

जुड़वां बच्चों की कुंडली में खासतौर पर जन्म स्थान, जन्म तिथि और दिन एक समान होते हैं। लेकिन शक्ल, विचारधाएं, इच्छाएं और बच्चों के साथ होनी वाली घटनाओं में अंतर होता है। इतना ही नहीं दोनों का व्यक्तित्व भी अलग होता है।

कैसे देखें जुड़वां बच्चों की कुंडली

जुड़वां बच्चों की कुंडली देखना आसान काम नहीं है, क्योंकि जन्म स्थान, जन्म तिथि आदि जैसी कई चीजें समान होने के साथ यह दिखने में एक जैसी प्रतीत होती है। इसलिए जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाते समय जन्म कुंडली के साथ ही गर्भ कुंडली का निर्माण किया जाता है।

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गर्भ कुंडली और जन्म कुंडली में अंतर

गर्भ कुंडली, जन्म कुंडली से अलग होती है। गर्भ कुंडली से जुड़वां बच्चों के भविष्य के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है। गर्भ कुंडली को जन्म कुंडली के आधार पर ही बनाया जाता है। लेकिन इसे गर्भाधान या गर्भधारण के समय को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है। लेकिन यह काफी कठिन कार्य है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार यदि गर्भाधान के अनुसार जुड़वां बच्चों की कुंडली बनाई जाए तो जुड़वां बच्चों के जीवन और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को आसानी से समझा जा सकता है।

क्यों जरूरी है गर्भाधान मुहूर्त को जानना

कहा जाता है कि बच्चे पर माता-पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ता है और खासकर सबसे अधिक मां का। क्योंकि शिशु पूरे नौ महीने मां के गर्भ में ही आश्रय पाता है। माना जाता है कि जिस समय दंपत्ति गर्भाधान करते हैं उस समय ब्रह्मांड में नक्षत्रों की व्यवस्था और ग्रहों की स्थितियों का भी प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है। यही कारण है कि शास्त्रों में गर्भाधान के मुहूर्त को महत्वपूर्ण माना जाता है। गर्भाधान के दिन, समय, तिथि वार, नक्षत्र, चंद्र स्थिति और दंपतियों की कुंडली आदि का गहनता से परीक्षण कर गर्भाधान मुहूर्त को निकाला जाता है।

इस कारण एक जैसा नहीं होता जुड़वां बच्चों का भविष्य

कृष्णमूर्ति पद्धति, जिसका निर्माण वैदिक ज्योतिष से प्रेरणा लेकर हुआ है, इसमें नक्षत्र और उपनक्षत्र के आधार पर ग्रहों से मिलने वाले फल की गणना की जाती है। इसके अनुसार, जुड़वां बच्चों की जन्मतिथि भले ही समान होती है, लेकिन समय में अंतर होता है। कहा जाता है कि जुड़वां बच्चों के जन्म में तीन मिनट से लेकर 10 या फिर 12 मिनट का अंतर हो सकता है। इस दौरान लग्न अंशों और ग्रहों के अंशों में भी बदलाव हो जाता है। क्योंकि ज्योतिष के अनुसार इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी भी बदल जाते हैं और इस अंतर के कारण एक नक्षत्र में जन्म लेने के कारण जुड़वां बच्चों के नक्षत्र के स्वामियों में अंतर आ सकता है। इसी सूक्ष्म गणना के अनुसार जुड़वां बच्चों की पत्रिकाएं भी अलग हो जाएंगी और उनके व्यवहार व भविष्य भी एक जैसे नहीं रहेंगे।


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