19 वीं सदी के समाज सुधारक ज्योतिबा फुले आज़ भी प्रेरणास्रोत

मेनिका साकेत
मेनिका साकेत

मेनिका साकेत स्वतंत्र अध्येता  हैं। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (मध्य प्रदेश)


समाज में सुधार के लिए हमेशा महान विभूतियों ने अनेकों कार्य किया है। 11 अप्रैल 1827 के दिन अवतरित हुए महान समाज सुधारक एवं शिक्षाविद ज्योतिबा फुले जी ने अपनी सदी के भेदभावपूर्ण जिस समाज को देखा- “जिसमें मानव को मानव नहीं दानव या नीच तरह का समझकर छुआछूत का जाल फैलाया जाता था, स्त्रियों को शिक्षा से दूर दासत्व का जीवन भोगना पड़ता था, छोटी उम्र की लड़कियों का विवाह,50 वर्ष के वृद्ध के साथ कर दिया जाता था एवं विधवाओं को गर्भवती होने पर, उनका गर्भपात कर दिया जाता था व ग्लानि भरा जीवन जीना पड़ता था। महात्मा फुले ने अनुभव किया तथा उनकी पीड़ा भरी दशा सुधारने एवं शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को नई दिशा देकर उनका भविष्य सुधारने का जो कार्य किया है, अब विरलय ही कोई व्यक्ति अपनी सम्पत्ति देकर भी, संघर्षरत रहकर, निस्वार्थ भाव से ऐसा कर पाने में सक्षम हो पाएगा।”

उन्होंने अपनी शिक्षा प्राप्त करके, 13 वर्ष की उम्र में विवाह के उपरान्त, अपनी पत्नी को भी शिक्षित किया, जो उस समय के स्त्री हेतु बहुत आश्चर्य की बात होती थी। “उन्होंने पुणे में 1848 में प्रथम बालिका विद्यालय की नींव समूचे देश में पहली बार रखी। उस समय कोई स्त्री शिक्षिका नहीं होती थी, तब इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी को भारत की प्रथम महिला शिक्षिका के रूप में अस्तित्व प्रदान किया। सावित्री बाई फुले भी उनकी तरह समाज सुधारक एवं महिला अस्तित्व के सम्मान व विकास की भावना से ओत-प्रोत थीं। फुले की इसी भावना ने महिला शिक्षा के प्रति क्रांति ला दी और अथक प्रयास के परिणामस्वरूप तीन अन्य महिला विद्यालय का शुभारंभ किया।

जब वो समाज की स्त्री व बालिकाओं को पढ़ाने जाती थीं, तो उन्हें कई भेदभावपूर्ण लैंगिक असमानता व अपमान का सामना करना पड़ता था। वे हमेशा दो साड़ियां वस्त्र के रूप में धारण करती थीं, क्योंकि उन्हें गोबर मारकर अपमानित किया जाता था और आगे बढ़ने से रोका जाता था। तब भी वह धैर्यपूर्वक यह सब सहती थीं व एक साड़ी उतारकर, विद्यालय स्त्रियों को शिक्षा देने जाती थीं।” ये उन महान समाज विचारक एवं उनकी पत्नी की ही देन है कि आज की स्त्री विदुषी का रूप धारण कर पाई और समाज में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर अपने हुनर का लोहा मनवा रहीं हैं व आर्थिक सशक्तिकरण की मिशाल बनकर अपना सर्वांगीण विकास कर पा रही हैं।

वर्तमान में भले ही अभी महिलाएं कम साक्षर व शिक्षित हैं परन्तु भविष्य में इनकी साक्षरता दर में निरंतर सुधार होता रहेगा व लैंगिक समानता स्थापित की जा सकेगी। इस हेतु शासन द्वारा कई योजनाएं महिला संरक्षण व विकास पर चलाई जा रही हैं तथा अब महिला पुनर्विवाह भी सामान्य माना जाने लगा है। अब तो महिलाएं अपने जीवन का निर्णय स्वयं ले पा रही हैं तथा योग्य जीवनसाथी न मिलने पर तलाक द्वारा विवाह की ग़लती सुधारने का प्रयास कर रही हैं। ज्योतिबा फुले जी ने समाज को अंध-विश्वास से बचाने मानव को मानवता का भान कराने और नर-नारी समानता स्थापित करने के उद्देश्य से “सत्य- शोधक समाज” नामक संस्था की स्थापना की, जिसमें पिछड़ों एवं वंचितों क उत्थान का कार्य किया जाता था। वर्तमान समय में तो सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय व अन्य जांच एजेंसी भ्रष्टाचार निवारण के लिए बनाई गई हैं, परन्तु फिर भी भ्रष्टाचार कम नहीं  हो पा रहा है। कई सरकारी एवं गैर सरकारी सामाजिक संगठन व विभाग, सामाजिक कल्याण तथा लैंगिक समानता स्थापित करने हेतु प्रयासरत है, फ़िर भी वह अब तक असफल हैं। कारण यही है कि, समाज कल्याण के नाम पर वो स्वार्थपरक तरीके से, कई गैर कानूनी धंधे चला रहे हैं, जिससे महिला एवं समाज का शोषण हो रहा है व हमारे देश का विकास गर्त में चला जा रहा है।

हमारा देश आज चाहे भले ही आर्थिक तरक्की कर ले और विश्व में अपनी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का डंका बजा ले, परन्तु यहां के शासक, समाज के कल्याणकारी नैतिक मूल्यों को, निस्वार्थ परक “सत्य शोधक समाज” की तरह स्थापित करने में असमर्थ हैं। इसका स्पष्टीकरण इन बातों से किया जा सकता है, कि लैंगिक असमानता, साक्षरता दर में कमी, जीवन जीने की गुणवत्ता व हैप्पीनेस इंडेक्स में निचला स्थान एवं अन्य वैश्विक आंकड़ों में भारत हमेशा निचले पायदान पर ही रहता है। विश्वगुरु का केवल स्वप्न संजोए हुए हैं परंतु पूर्ण करने में असमर्थ है। इस सपने को केवल निस्वार्थ भाव से ओत प्रोत समाज सेवी को बढ़ावा देने तथा सत्य शोधक समाज की प्रेरणा रखने वाले सामाजिक संगठन के आगे आने से ही पूर्ण हो पाएगा, ना कि ऐसे नेताओं के नेतृत्व में, जो समाज व देश सेवा के नाम पर भेदभाव, अंध विश्वास व लैंगिक असमानता की प्रथाओं को बढ़ावा देते हों।

ज्योतिबा फुले एवं सावित्री बाई फुले जैसे महान समाज सुधारको एवं विचारकों की प्रेरणा का प्रचार प्रसार व उनके सम्मान के लिए, उनके अनुरूप समाज सेवी संगठन को पुरष्कृत करना परमावश्यक है। उनके द्वारा किए महान कृत्यों को शत शत नमन करके, उनके पद चिन्हों को अपनाने से ही समाज का उत्थान सुनिश्चित होगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारे महामानव भीमराव अंबेडकर एवं अन्य महान समाज सेवी हैं, जो उनके कार्यों व विचारों से प्रभावित हुए और उनको अपना गुरु भी मानते हैं। आज हमारा लिखित संविधान इसका साक्ष्य है कि,उनकी प्रेरणा से ही स्त्रियों को विकास व पद के समान अवसर विधिवेत्ताओं द्वारा कानूनी रूप से संरक्षण प्रदान किए गए हैं, जिससे लैंगिक समानता, विकास व शांति को स्थापित किया जा सके।

 

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