जेल में दर्जनों घटनाएं होने के बाद भी शासन ने नहीं की काई कार्रवाई
आरके यादव
लखनऊ। राजधानी लखनऊ जेल में घटनाओं के लिए सुर्खियों में रहने वाले जेल अधीक्षक को सजा के बजाए शासन तोहफा देने की तैयारी में है। प्रदेश की जेलों में सवार्धिक करीब साढ़े तीन साल से एक ही जेल में जमें इस अधीक्षक के कार्यकाल के दौरान कैदियों की फरारी, विदेशी कैदी की गलत रिहाई और बंगलादेशी बंदियों की ढाका से फंडिंग का मामला सुर्खियो में रहने के बाद भी शासन ने कोई कार्रवाई ही नहीं की। इस अधीक्षक को शासन मेरठ, आगरा व अलीगंढ़ जेल पर तैनात कराने की फिराख में जुटे हुए है। यह मामला विभागीय अधिकारियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
राजधानी की जिला जेल से पीएन पांडे को हटाए जाने के बाद कानपुर नगर जेल पर तैनात आशीष तिवारी को लखनऊ जेल में तैनात किया गया। लखनऊ जेल में तैनाती होने के कुछ ही दिनों बाद ही आदर्श कारागार से जिला जेल में पोताई करने के लिए बाहर निकाले गए दो कैदी सुरक्षाकर्मियों का चकमा देकर फरार हो गए। इन फरार कैदियों का अभी तक कोई सुराग ही नहीं लगा। इसके साथ ही जेल में दो राइटरों की भिडंत के बाद मिली सूचना पर जब जेल प्रशासन के अधिकारियों ने गल्ला गोदाम की तलाशी कराई तो वहां से उन्हें करीब 35 लाख रुपए की नगदी बरामद हुई। यही नहीं लखनऊ जेल में बंद बंगलादेश बंदियों की ढाका से वाया कोलकात होते हुए होने वाली फंडिंग के मामले की एटीएस ने की। इसी दौरान जेल प्रशासन के अधिकारियों ने एक विदेश कैदी समेत तीन बंदियों की गलत रिहाई कर दी। पिछले दिनों जेल में बंदियों के हमले से घायल हुए एक बंदीरक्षक की उपचार के दौरान मौत हो गई। इन सनसनीखेज घटनाओं के बाद भी शासन व जेल मुख्यालय की ओर से किसी भी जेल अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
सूत्रों का कहना है कि लखनऊ जेल में तमाम घटनाओं के बाद अब प्रदेश की कमाई के चर्चित रहने वाली मेरठ, आगरा व अलीगढ़ जाने की फिराख में लगे हुए है। लखनऊ जेल में लंबा कार्यकाल होने की वजह से स्थानांतरण सत्र में तबादले की संभावना के चलते जेल अधीक्षक स्थानांतरण सत्र के पहले ही किसी कमाऊ जेल जाने की जुगत में लगे हुए है। सूत्रों की माने तो अधीक्षक को अलीगढ़, आगरा या फिर मेरठ जाना लगभग तय माना जा रहा है। इसकी प्रकिया अंतिम चरण में है। विभागीय अधिकारियों में चर्चा है कि शासन विभाग के तेजतर्रार राष्ट्रपति पदक पाए अफसरों को अतिसंवेदनशील जेलों पर तैनात करने के बजाए पश्चिम की कमाऊ वाली जेलों पर ही तैनात करता है। यही वजह है कि जेलों में घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। उधर डीआईजी जेल मुख्यालय एके सिंह ने इसे शासन का मामला बताते हुए कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया।