कविता : प्रकृति का नियम

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

जिस तरह एक वृक्ष की प्रकृति होती है
हमारी प्रकृति भी वैसी ही होनी चाहिए,
हमें अपनी धरती पर रहकर वृक्ष की तरह,
अपनी जड़ों के साथ ही जुड़े रहना चाहिए।

जैसे वृक्ष में जब फल आते हैं
तो उसकी डालें झुक जाती है,
नई पत्तियों की तरह हमारी सोच
भी विनम्र कोमल हो जाती है ।

विद्वता व धन संपदा पाकर हमें
स्वभाव से विनम्र हो जाना चाहिए,
जीवन की सुख शांति के लिए यह
सूत्र आवश्यक माना जाना चाहिये।

हमारी साँसे, हवा-आक्सीजन, जल,
प्रकाश, नींद व हमारे सुख- शांति
सभी वास्तव में कितने अनमोल हैं,
जो हमें बिलकुल निशुल्क मिलते हैं।

यह सब समस्त प्राणिमात्र के लिए
प्राकृतिक उपहार स्वरूप मानिये,
भविष्य के लिये प्रकृति के विशेष
संरक्षण पर ध्यान देते रहना चाहिए।

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हमारा अतीत तो एक शपथ पत्र है,
और वर्तमान एक समाचार पत्र है,
परंतु हमारा भविष्य वह प्रश्न पत्र है,
जिसे बहुत ध्यान से पढ़ना लिखना है।

विश्वास करने वालों से ज्यादा मूर्ख,
तो विश्वास तोड़ने वाला होता है,
वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए,
एक अच्छे इंसान को खो देता है।

जहां प्रयत्न निरंतर किये जाते हैं,
वहां क़िस्मत भी जग जाती है,
जीवन एक बहती नदी की तरह है,
जो निरंतर बिना रुके आगे बढ़ती है।

आदित्य बिना रुके जीवन नौका को
नदी के बहाव की दिशा में या फिर,
विरुद्ध दिशा में पतवार चलाते रहें,
हर परिस्थिति में आगे ही बढ़ते रहें।

 

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