मुसल्लम ईमान पर फ़िदा, यही है मोदी की अदा…

 

अंशुमान द्विवेदी
अंशुमान द्विवेदी

मुसलमान का मतलब होता है मुसल्लम ईमान। यानी जिसका ईमान पूरे का पूरा क़ायम रहे, जो चट्टान की तरह अटल रहे और शबनम की तरह पाक। यकीनन इसी के मद्देनज़र, योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को विधान परिषद सदस्य (MLC) के रूप में नामित किया है। उनके नॉमिनेशन के बाद ही उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और मुसलमानों को लेकर एक बहस छिड़ गई। विधानसभा के गलियारों से लेकर सुदूर गाँवों के चट्टी-चौक-चौराहों तक यह बहस जारी है कि BJP अब मोमिनों को अपने पाले में करने के लिए बेताब हैं। हालाँकि पूरे देश में राज करने के लिए यह कदम ज़रूरी भी दिखता है। अगर पूरी अल्पसंख्यक बिरादरी बीजेपी के पाले में आ जाए तो कामरूप से कच्छ और कश्मीर से कन्याकुमारी तक भगवा परचम लहरा सकता है। बताते चलें कि डॉ. तारिक मंसूर चिकित्सा क्षेत्र के नामी पेशेवर रहे हैं और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रहने के बाद ‘रामभक्तों’ की टोली में शामिल हुए हैं। वह यूपी के चौथे मुसलमान हैं, जिन्हें भाजपा ने उच्च सदन भेजा है। उनसे पहले मोहसिन रजा, बुक्कल नवाब और दानिश आज़ाद भगवा दल से उच्च सदन पहुँच चुके हैं। अब उच्च सदन में समाजवादी पार्टी (SP) से दो और बीजेपी से चार सदस्य पहुँच चुके हैं।

सवाल उठता है कि क्या RSS-BJP की नीति में कोई बदलाव आया है? इसका जवाब संघ और पार्टी से इस तरह मिलता है। सर संघ चालक मोहन भागवत ने ज्ञानवापी मामले में खुलकर कहा भी था-‘हर मंदिर में शिव मंदिर क्यों तलाशें?’ ग़ौरतलब है कि हिंदू और मुसलमान दोनों पक्ष अदालत की शरण में हैं और अपने अधिकार के लिए अभी भी लड़ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय से चुपचाप एक 45 सेकेंड का वीडियो जारी होता है, जिसमें कर्नाटक से पद्मश्री अवार्ड पाने बिदरी शिल्प कलाकार शाह रशीद अहमद क़ादरी दिखाई पड़ते हैं। वह कहते हैं- ‘कांग्रेस शासन के दौरान मुझे सम्मान नहीं मिला… मैं निराश हो गया था… मन में किंचित् आस नहीं थी कि भगवा दल मेरे जैसे मुसलमान को सम्मान दे सकता है… लेकिन पीएम मोदी ने मुझे गलत साबित कर दिया…।’ कुछ दिनों तक वीडियो चर्चा में रहा और खबरिया चैनलों के एंकर बहुत दिनों तक इस पर ‘चिल्ल-पों’ करते रहे।

राष्ट्रीय परिदृश्य पर देखें तो दो घटनाएं तेज़ी से दिमाग़ में कौंध रही हैं। पहला- केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने भाजपा का दामन थाम लिया। जबकि केरल ही देश में एक ऐसा राज्य है, जहां अभी तक भाजपा शून्य से आगे नहीं बढ़ पाई है। यानी कि मुद्दा पानी की तरह साफ़ है कि दक्षिण में अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए बीजेपी येन-केन-प्रकारेण प्रयास कर रही है। इस मुतल्लिक अनिल के पिता का बयान भी आया कि वह मरते दम तक कांग्रेसी रहेंगे और जीवन के अंतिम पड़ाव (82 साल) पर यह मेरा आख़िरी बयान है। इसके पहले दिग्गज कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आज़ाद भी कांग्रेस की बुराई करते हुए इस्तीफ़ा दिए थे और खुलकर मुनादी की थी कि राहुल के साथ रहना मतलब बिना रीढ़ का बनकर रहना होगा। दूसरा- ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुसलमीन (AIMIM) नेता दक्षिण में भगवा ख़ेमे के लिए जमकर ‘अपनी पिच’ पर बैटिंग कर रहे हैं। वो उस राज्य के लीडर हैं, जहां बीजेपी अपना परचम लहराना चाह रही है। शायद इसी कारण के. चंद्रशेखर राव (KCR) ने अपनी पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति कर लिया। यानी वह ख़ुद को राष्ट्रीय स्तर पर मोमिनों का ‘सरदार’ घोषित करना चाह रहे हैं। उनके अलावा नीतीश कुमार और अखिलेश यादव जैसे नेता पूरे देश में घूम-घूमकर इफ़्तार पार्टी कर रहे हैं। वहीं द्रमुक अपने नेता एमके स्टालिन को भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना रही है।

सवाल उठता है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम कैंडीडेट को टिकट न देने वाली बीजेपी क्या संदेश देना चाहती है? क्या समय से साथ सियासी तानाबाना बदल रहा है? या हिंदुत्व के पिच पर धुआँधार बैटिंग भी भाजपा की सियासी किश्ती अधर में डूबा रही है? ‘शिया’ मुसलमानों को अपने पाले में करने के बाद भाजपा ने पसमांदा दांव चला, जो बिल्कुल सटीक साबित हुआ। लेकिन डॉ. तारिक मंसूर को विधान परिषद भेजकर बीजेपी ने पश्चिम के मोमिनों को भी अपने पाले में करने का पासा फेंका है। ग़ौरतलब है कि सूबे के 24 ज़िलों में अकलियतों की संख्या 20 फ़ीसदी से ज़्यादा है। वहीं 12 ज़िलों में मोमिन आबादी 35 से 52 प्रतिशत है। कई जानकार इसे हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम को मानते हैं। एक साल पहले हुए चुनाव में सपा ने रालोद के साथ मिलकर अपने MY समीकरण के दम पर मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ों में भाजपा को ज़बरदस्त मात दी थी। सपा के 34 विधायक अकलियत जमात से जीत कर आए, जबकि साल 2017 के चुनाव में मोमिन विधायकों को संख्या 24 थी। जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने DM (दलित-मुस्लिम) फ़ॉर्मूले की बदौलत पिछले नगर निकाय चुनाव में मेरठ और अलीगढ़ के महापौर की सीट जीत ली थी।

कुल मिलाकर बीजेपी मुसलमानों और ईसाइयों को अपने पाले में करने का पूरा प्रयास कर रही है। छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, केरल और नार्थ-इस्ट के राज्यों में जहां ईसाई बहुतायत हैं, वहीं बिहार, मध्यप्रदेश, केरल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र में मोमिनों की संख्या ठीक-ठाक है। साल 2025 में अपने 100 वें साल का जश्न मनाने को तैयार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी अल्पसंख्यकों को लेकर नरम है और पीएम मोदी उस मुद्दे को जमकर धार भी दे रहे हैं। देशभर के मंदिरों को पुनरोद्धार और आधुनिक साज सज्जा के लिए जमकर धन खर्चने वाले मोदी धीरे से अपना एजेंडा अल्पसंख्यकों में सेट कर रहे हैं। हालाँकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के वजीर-ए-आला हिमंत विस्वशर्मा जैसे दिग्गज हिंदुत्व की पिच पर ताबड़तोड़ बल्लेबाज़ी कर रहे हैं। जिसका परिणाम भी चुनाव-दर-चुनाव देखने को मिल रहा है।

(‘राव आईएएस लखनऊ’ संस्था के संचालक, इनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।)

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