काशी के एक विद्वान के मुख से सुना। काशी की मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्र में महागौरी के नौ स्वरुप की आराधना ,जबकि शारदीय नवरात्र में नौ दुर्गा की आराधना की जाती है। बताते हैं कि गौरी पार्वती जब शिव जी से विवाह के बाद कैलाश गई तो बोली यह तो मेरा मायका ही है, फिर मेरी ससुराल कहां है। शिव जी ने त्रिशूल पर काशी बसाई और काशी लेजाकर कहा यह तुम्हारी ससुराल है। काशी के नौ क्षेत्रो में महागौरी के नौ स्वरुप स्थापित हुए।
निर्मालिका गौरी : काशी में गायघाट स्थित हनुमान मंदिर मे स्थित है।
ज्येष्ठागौरी: काशी मे कर्णघंटा के सप्तसागर क्षेत्र में स्थित है।
सौभाग्य गौरी: काशी के ज्ञानवापी पर सत्यनारायण मंदिर के भीतर स्थित है।
श्रृंगार गौरी: ज्ञानवापी परिसर में स्थित है।
विशालाक्षी गौरी : काशी के मीर घाट क्षेत्र मे धर्मकूप इलाके में स्थित है
ललिता गौरी : काशी के ललिता घाट पर यह मंदिर स्थित है।
भवानी गौरी: विश्वनाथ गली में श्रीराम मंदिर में ही स्थित है।
महालक्ष्मी गौरी: काशी के पंच गंगा घाट पर स्थित है। महागौरी के रूप में माता अन्नपूर्णा के रूप में विख्यात है।
महालक्ष्मी गौरी: काशी के लक्सा क्षेत्र मे स्थित लक्ष्मीकुंड पर स्थित है।