सांसदी गयी तो क्या, रेटिंग तो बढ़ी

डॉ. ओपी मिश्र


भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व या उनके कार्यकर्ता अपनी पीठ लाख थपथपायें या कहें कि अब राहुल गांधी पूर्व सांसद हो गए हैं लेकिन हकीकत यह है कि सांसदी खोने के बावजूद आज राहुल गांधी ‘पेज वन’ का समाचार है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पदयात्रा में राहुल गांधी को इतना ‘कवरेज’ और ‘वेटेज’ नहीं मिला था जितना सांसदी जाने के बाद मिला है। पद यात्रा के जरिए उन्होंने लोकप्रियता जरूर अर्जित की थी लेकिन ‘माफी नहीं मांगूंगा’ तथा अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंधों पर सवाल जरूर पूछता रहूंगा जैसे बयान लगातार देकर उनकी केवल लोकप्रियता में चार चांद नहीं लगे है बल्कि उनकी छवि एक ऐसे योद्धा के रूप में उभरी है जो सीधे-सीधे सरकार से टकरा रहा है। सरकार से सवाल कर रहा है, वह भी वह सवाल जो आम आदमी करना चाहता है।

आज भाजपा का ‘टॉप ब्रास’ भले ही यह कहे कि मोदी सरनेम पर अवांछित टिप्पणी करके राहुल गांधी ने पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपमानित किया है। लेकिन यह बात आम आदमी हजम नहीं कर पा रहा है क्योंकि राहुल गांधी की टिप्पणी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर नहीं थी बल्कि मोदी सरनेम पर थी। और वह क्यों थी? यह हम सब जानते हैं यानी नीरव मोदी, ललित मोदी आदि। वैसे ये पिछड़े वर्ग में नहीं आते हैं बल्कि गुजराती बनिया है। वैसे भी चुनावी सभाओं में तमाम गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं, तमाम लानत मलामत की जाती है। जाति, धर्म, वर्ग, संप्रदाय, भाषा और परिवार पर भी तमाम अशोभनीय टिप्पणी की जाती है।

लेकिन चुनाव में उसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है। अपने विदेश दौरे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के हालत के बारे में जो कुछ कहा उससे इत्तेफाक रखना या ना रखना अलग बात है लेकिन इससे भी तो इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में एक मात्र ऐसे विपक्षी नेता है जो मोदी सरकार पर सबसे तीखा हमला करते हैं। और यह बात शायद भाजपा को सूट भी करती क्योंकि तब मामला सीधे- सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के बीच आ जाता है। जिससे फायदा भाजपा को मिलता है। हम सब लोग यह बात भली-भांति जानते हैं कि जिस चीज को जितना छुपाया जाता है, दबाया जाता है, ढका जाता है उसे सबसे पहले हम जानना चाहते हैं, देखना चाहते हैं। इतनी सी बात शायद मोदी सरकार समझ नहीं पा रही है क्योंकि सरकार को यह बात भली-भांति समझ लेना चाहिए कि चुनावी राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण बात ‘जन धारणा’ होती है। अगर एक बार जन धारणा आपके विरुद्ध बन गई। तो तमाम कोशिशों के बावजूद, तमाम विज्ञापनों, तमाम व्हाट्सएप यूनिवर्सिटीओं के बावजूद आप जनमत को बदल नहीं पाएंगे।

लगभग 15 दिनों तक संसद का न चलना तथा अडानी प्रकरण पर सरकार द्वारा चुप्पी साधे रखना, विपक्ष के तमाम हो हल्ला के बावजूद जेपीसी का ना बनना कहीं न कहीं लोगों के दिलों दिमाग में संदेह के बीज उत्पन्न करती है। भारत का बच्चा-बच्चा यह बात डंके चोट पर स्वीकार करने को तैयार है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दामन बिल्कुल पाक साफ है लेकिन जब यही लोग किसी को बचाने के लिए आरोप लगाने वाले पर सरकारी मशीनरी के जरिए हमला कराने लगेंगे तो संदेह के बादल तो उठने ही लगेंगे अगर विपक्ष के लोग या मीडिया के लोग सरकार से सवाल पूछते हैं तो सरकार को यह समझना चाहिए कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग राष्ट्र हित और देश हित में ही तो कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने लोक सभा में बोलते हुए एक बार कहा था कि क्या हम (सत्ता पक्ष और विपक्ष) मिलकर राष्ट्र निर्माण का कार्य नहीं कर सकते ? उन्होंने इसके आगे अपनी बात को बढ़ाते हुए कहा था कि मैं प्रधानमंत्री नेहरू का कटु आलोचक था और एक बार तो मैंने यहां तक कह दिया था कि आप का दोहरा व्यक्तित्व मेरी समझ में नहीं आता है क्योंकि आपके अंदर ‘चर्चिल’ और ‘चेंबर लेन’ दोनों का सममिश्रण है। उन्होंने आगे कहा कि लोकसभा स्थगित होने के बाद उसी शाम एक कार्यक्रम में जब नेहरू जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने किसी भी तरह की नाराजगी प्रकट करने के बजाय मेरे भाषण की तारीफ की।

जबकि आज के दौर में पहले तो बोलने ही नहीं देंगे और बाद में बोलना ही बंद कर देंगे। सत्तापक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि अडानी प्रकरण में जो तथ्य सामने आ रहे हैं और सरकार जिस तरह इस विवादास्पद औद्योगिक घराने का बचाव कर रहा है उससे संदेह होना स्वाभाविक है। सरकार को अभी 2024 में चुनाव मैदान में जाना है इसलिए उसे अपनी क्रेडिबिलिटी पर सबसे अधिक फोकस करना चाहिए । रही बात राहुल गांधी की तो भाजपा मुक्त भारत अथवा कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाले नेता यह बात भली-भांति समझ ले कि एक ना एक दिन राहुल गांधी विपक्ष की राजनीति की धुरी बनकर मोदी को सीधे सीधे चुनौती देंगे । राहुल गांधी भले ही आठ वर्षों तक चुनाव न लड़ पाए, भले ही उनके पास कोई पद न हो लेकिन उनका आक्रामक प्रचार बंद हो जाएगा या वे भाजपा अथवा प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध टिप्पणी करना बंद कर देंगे ऐसा फिलहाल लगता नहीं है।

Analysis

नार्वे के दो शिक्षा मंत्री द्वारा गुनाह, साहित्य चोरी के लिए हटाये गए !!

के विक्रम राव संपन्न उत्तरी यूरोप राष्ट्र नार्वे, एक विकसित राजतंत्र की गत दिनों बड़ी वैश्विक फजीहत हुई। सरकार की दो मंत्री श्रीमती सांद्रा बोर्स जो रिसर्च और उच्च शिक्षा विभाग संभालती हैं, तथा स्वास्थ्य मंत्री श्रीमती इंगविल्ड क्जेर्कोल को बेशर्मी से पदत्याग करना पड़ा। दोनों पर आरोप था कि उन्होंने अपनी थीसिस के लिए […]

Read More
Analysis

कच्छतिवु पर मोदी के तीव्र तेवर ! तमिल वोटर भी प्रभावित !!

  संसदीय निर्वाचन के दौरान सूनसान दक्षिणी द्वीप कच्छ्तिवु भी सुनामी की भांति खबरों में उमड़ पड़ा है। आखिरी बैलेट पर्चा मतपेटी में गिरा कि यह विवाद भी तिरोभूत हो जाता है। चार-पांच सालों के लिए। क्या है यह भैंसासुररूपी रक्तबीज दानव जैसा विवाद ? अठारहवीं लोकसभा निर्वाचन में यह मात्र दो वर्ग किलोमीटर वाला […]

Read More
Analysis

बिना बिहार जीते दिल्ली में परचम फहराना बीजेपी और मोदी के लिए मुश्किल

इस बार जदयू, लोजपा, हम और रालोम के साथ राजद को धूल चटाने को तैयार भाजपा बिहार में 1984 के चुनाव में खिलने से पहले ही मुरझा गया था भाजपा का ‘कमल’ पटना। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (JDU) एक बार फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के साथ है। NDA […]

Read More