
- मानस का विरोध निरर्थक प्रयास
- 134 जातियो को किसने बनाया

आज अचानक मोबाईल खोलते ही कई पार्टी बदलने वाले तथाकथित एक नेता अच्छा जी का इंटरव्यू दिखा। वे आज कल तीसरी पार्टी की शोभा बढ़ा रहे हैं…और रामचरितमानस के विरोधी बने घूम रहे हैं। संभवत: इसी से अपनी पहचान बनाने की कोशिश मे लगे हों। भाजपा का दामन थामे थे तो उनकी बोलती बंद थी। पार्टी बदलते ही मुखर होगए। देश मे नास्तिक तो सदा रहे हैं पर जब तब किसी जाति विशेष का विरोध करने वाले इन दिनों काफी सक्रिय हैं। इतना गंदा माहौल पूर्व मे वीपी सिंह के कार्यकाल मे ही दिखा था। बाद मे लोगों की समझ मे आगया कि समाज के महज कुछ फीसदी तक के लोगों की बात करने से बहुमत नहीं मिल सकता,तो नेताओं ने पाल्हा बदला और सवर्णों को साथ लेकर सोशल ईंजीनियरिंग मे विश्वास करने लगे थे।
भाजपा के केंद्र मे और उप्र मे सत्ता संभालने के दूसरे कार्यकाल मे फिर अपनी पार्टी धंसती नजर आई तो तीस साल पुराना फार्मूला फिर अप्लाई करने लगे क्यो कि इन्हें कोई रास्ता सत्ता मे वापसी का सूझ ही नहीं रहा। पर जल्द ही इनका मोहभंग होजाएगा। मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है,विरोध से प्रचार बढ़ता है। मानस दिनों दिन और भी अधिक लोकप्रिय होता जा रहा। मनु महाराज सबकी छाती पर मूंग दलने लगे” तुम क्या जाति खत्म करोगे??जा बेटा तुम्हारी सारी राजनीति ही जातियों मे सिमट कर रह जाएगी। उन्होंने सिर्फ चार ही जाति बनाये…जबकि वर्तमान मे इन राजनीतिज्ञों ने134से अधिक जातियों को रच डाला।
करीब चार-पांच सौ साल पहले अकबर के कार्यकाल मे गोस्वामी तुलसी दास ने जन्म लिया था। उन्होंने पहली बार जनभाषा अवधी मे ग्रंथ की रचना की तो विद्वानों ने इसका विरोध किया,कहा कि शास्त्र ,पुराण और उपनिषदो का सार संस्कृत मे ही रहना चाहिए,क्योंकि संस्कृत देवभाषा है। इसके लिए तुलसी दास को जगह जगह अपमान भी सहने पडे,परंतु इस लोक भाषा मे रचे गए ग्रंथ का सम्मान इतना बढ़ा कि जन जन मे यह समा गया। कोई ऐसा घर नहीं बचा जहां रामचरित मानस का ग्रंथ न हो। कोई ऐसा वक्ता नहीं जो रामायण की पंक्तियों का भाषण मे उद्धरण न दे। आज विश्व की समस्त भाषाओं मे इसका अनुवाद होचुका है। आश्चर्य है कि आधे अधूरे दोहे लेकर आज के कुछ दुर्बुद्धि लोग विवाद खड़ी करने का यत्न कर रहे। पर सदा की तरह उन्हें परास्त ही होना पड़ेगा,क्योंकि अधकपटी बातो को लेकर वे आसमान मे उड़ रहे हैं। रामचरितमानस के पाठ से न केवल मेरे जीवन जीने का अंदाज बदला,बहुत सारे संकटों से मुझे छुटकारा भी मिला है करोड़ो लोग रामचयित मानस आज प्रेरणा लेरहे हे और नियमित पाठ करते हैं।