पड़ोसी देश नेपाल का सिनेमा-इतिहास

उमेश तिवारी

काठमांडू/नेपाल। नेपाल हिमालय की तलहटी में बसा हमारा पड़ोसी देश है। यहां के सिनेमा को ‘नेपाली चलचित्र’ तथा ‘कोलीवुड’ के नाम से जाना जाता है। ‘कोलीवुड’ नाम ‘हॉलीवुड’, ‘बॉलीवुड’ तथा ‘टॉलीवुड’ की तर्ज पर पड़ा है। चूंकि नेपाल में नेपाली, मैथिली तथा भोजपुरी कई भाषाएं बोली जाती हैं, अत: यहां सिनेमा भी कई भाषाओं में बनता है। दुनिया के अन्य देशों की बनिस्पत नेपाल में स्वतंत्र रूप से फिल्म निर्माण काफी बाद में प्रारंभ हुआ। यहां ‘आमा’ नामक पहली फिल्म निर्माण एवं 1964 में रिलीज होने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। निर्माता नेपाल के राजा महेंद्र थे।

इसका निर्माण इंफॉरमेशन डिपार्टमेंट ऑफ हिस मेजेस्ट्री’ज गवर्मेंट ऑफ नेपाल के तहत हुआ था। आज इस विभाग को ‘इंफॉरमेशन डिपार्टमेंट ऑफ गवर्मेंट ऑफ नेपाल’ कहा जाता है। अपने देश की सेना से घर लौटे युवा सैनिक की कहानी वाली इस फिल्म का निर्देशन हीरा सिंह खत्री ने किया था और मुख्य भूमिकाएं शिव शंकर तथा भुवन थापा ने की थीं। इसके साथ इसमें बसुन्धरा भुसाल, हीरा सिंह खत्री तथा हरि प्रसाद रिमल ने भी अभिनय किया था। इन्हें ही नेपाल सिने-इतिहास में प्रथम अभिनेता होने का खिताब भी प्राप्त है। लेकिन ‘आमा’ का पोस्ट-प्रोडक्शन तथा इंडोर शूटिंग कलकत्ता में हुई थी।

1966 में रिलीज ‘माइतीघर’

‘माइतीघर’ नेपाल में निजी निर्माण की पहली फिल्म कही जाती है। इसका लेखन और निर्देशन बी. एस. थापा ने किया था और यह 1966 में रिलीज हुई थी। मुख्य पात्र माया का अभिनय भारतीय अभिनेत्री माला सिन्हा ने किया साथ में मोहन की भूमिका में चिदम्बर प्रसाद लोहनी थे। सुमोन्जलि फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले बनी इस फिल्म में माया को जेल हुई है और जो कैद पूरी होने के बाद बाहर नहीं जाना चाहती है और अपनी जटिल कहानी जेलर को सुनाती है, की कथा को गूंथा गया है। फिल्म में माला सिन्हा के अभिनय को दर्शकों तथा समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया। फिल्म में परदे पर थोड़ी देर के लिए सुनील दत्त भी आते हैं। हंसाने के लिए राजेंद्र नाथ हैं, इसका संगीत प्रसिद्ध संगीतकार जयदेव ने दिया है तथा पार्श्व गीत लता मंगेशकर, आशा भोसले, उषा मंगेशकर तथा मन्ना डे ने गाए हैं। इनके साथ नारायण गोपाल, प्रेम ध्वज प्रधान, सी.पी.लोहनी, अरुणा लामा नेपाली गायक भी थे। फिल्म के सिनेमाटोग्राफर के.एच. कपाड़िया थे।

1971 में नेपाल में रॉयल नेपाल फिल्म कॉरपोरेशन की स्थापना हुई। इसने ‘मनको बांध’, प्रथम रंगीन फिल्म ‘कुमारी’, ‘सिंदूर’, ‘जीवन रेखा’ आदि फिल्मों का निर्माण किया। प्रकाश थापा के निर्देशन में ‘मनको बांध’ बनी, जिसमें सल्यान के. सी., सुषमा शशि, नीर बिक्रम शाह ने अभिनय किया था, जिसका लेखन श्रीधर खनाल ने किया था। इसका संगीत अम्बर गुरुंग ने दिया तथा कैमरा बैकुंठ मन मस्की ने संभाला था। यह काठमांडू में 1973 को रिलीज हुई। नेपाल की पहली रंगीन फिल्म ‘कुमारी’ बिजया बहादुर माला की कहानी पर आधारित है जिसकी स्क्रिप्ट प्रेम बहादुर बास्नेत ने लिखी। संवाद प्रदीप रिमल के हैं। फिल्म नेपाल की नेवार समुदाय की कहानी कहती है। फिल्म ‘सिंदूर’ कहानी है एक युवती (मीनाक्षी राणा) की जो जिंदगी में अपनी राह खोज रही है। वह समाज के दकियानूसी रिवाजों से संघर्ष करती है। इसी तरह 1982 में निर्देशक प्रकाश थापा ने ‘जीवन रेखा’ निर्देशित की इस फिल्म को केशव राज पिंडाली ने लिखा है और इसमें शिव श्रेष्ठ, मीनाक्षी आनंद तथा अर्जुन जंग शाही ने अभिनय किया है।

माओवादी आंदोलन का सिनेमा पर असर

इसके बाद माओवादी आंदोलन के समय नेपाली सिनेमा की काफी हानि हुई। इस दौरान बहुत कम फिल्में बनीं। आर्थिक, तकनीक तथा कलात्मक सब दृष्टि से नेपाली सिनेमा एक तरह से रुक गया। यहां तक कि दर्शकों की संख्या भी घट गई। एक और बात ध्यान देने की है। नेपाली सिनेमा के कई पक्षों में शुरू से भारत का योगदान रहा है। अभिनेता, तकनीशियन, संगीतकार, गीतकार सबमें भारत का सहयोग उसे मिला है। भारत का बॉलीवुड सिनेमा काफी चमक-दमक के कारण नेपाल के सिनेमा को प्रभावित करता रहा है। कई बार नेपाली सिनेमा उसकी नकल करता रहा है। नेपाली सिनेमा को इससे उबरना होगा और अपनी एक अलग पहचान कायम करनी होगी। नई सदी के साथ नेपाली सिनेमा पुन: उठ खड़े होने का प्रयास कर रहा है।

सदी के पहले दशक में यहां ‘दर्पण छाया’, ‘जिंदगानी’ जैसी फिल्में बनी जिन्होंने अच्छा व्यापार किया। ‘दर्पण छाया’ का निर्देशन तुलसी घिमिरे ने किया और इसमें दिलीप रायमाझी तथा निरुता सिंह ने भूमिकाएं की। इसका संगीत आज भी लोकप्रिय है। ‘जिंदगानी’ के निर्देशक उज्जवल घिमिरे हैं। इसी दौरान नेपाली सिनेमा में निखिल उप्रेती, बिराज भट्ट, झरना थापा, रेखा थापा, रेजिना उप्रेती जैसे कलाकार उभर कर आए। ‘लूट’, ‘अंदाज’, ‘कोहिनूर’, ‘कबड्डी कबड्डी’, ‘वादा नं. 6’, ‘छक्का पंजा’ इस सदी में नेपाल की फिल्में हैं। अब नेपाल में सिनेमा से जुड़ी महा संचार, सिने मेकर्स प्राइवेट लिमिटेड, आमा सरस्वती गीता देवी फिल्म्स जैसी संस्थाएं हैं, और नेपाल ने अपना प्रथम राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2005 में आयोजित किया, और इस साल ‘कब होगी मिलनवा हमार’ को पुरस्कृत किया गया। 2022 में सर्वोत्तम अभिनेता दिव्य देव तथा सर्वोत्तम अभिनेत्री मेनका प्रधान को चुना गया। इस साल के सर्वोत्तम निर्देशक मोहन राय (वन नाइट इन काठमांडु) रहे।

नेपाल- आधुनिक सिनेमा

हाल के दिनों में नेपाल में सिनेमा हाल, मल्टीप्लेक्स में काफी इजाफा हुआ है। सेटेलाइट टेलिविजन तथा स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स के कारण दर्शकों तक सिनेमा का पहुंचना आसान हो गया है। नेपाल का सिनेमा अब अपने निर्देशकों, अपने अभिनेता-अभिनेत्री, अपने गीत-संगीत के बल पर खड़ा हो रहा है। नेपाल में उनका अपना संगीत और अपने वाद्य यंत्र है। अपनी फिल्मों में इनका प्रयोग कर वे अपने राष्ट्रीय सिनेमा की पहचान को मजबूत कर सकते हैं। यह न केवल नेपाल के दर्शकों को लुभाएगा वल्कि बाहरी दर्शक भी नेपाली फिल्म की ओर आकर्षित होंगे। अब नेपाल में सिनेमा से जुड़े लोगों जैसे निर्देशकों, अभिनेताओं में प्रोफेशनलिज्म आ गया है। तकनीक दृष्टि से भी वे सक्षम हो गए हैं। अत: अब नेपाल में उच्च कोटि की फिल्में बनने लगी हैं। नेपाल के पास काफी समृद्ध संस्कृति की विरासत है। नेपाल दक्षिण एशिया के सिनेमा में काफी योगदान कर सकता है। सिने-जगत को नेपाली सिनेमा से काफी उम्मीदें हैं।

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