पढ़िए आज के नया लुक में, मुख्यमंत्री पर विशेष आलेख विश्वास के योगी

राजेश श्रीवास्तव

यूपी की जनता ने भाजपा को पुन: विश्वास की चाभी सौंप दी है। दरअसल ये विश्वास है योगी की कार्यशैली पर…उनके स्टाइल पर…उनकी स्पष्टवादिता पर…उनकी नियत पर…उनके विजन पर…उनकी छवि पर…उनके एक्शन पर। पिछले 5 वर्षों के कार्यकाल में योगी के रुप में उत्तरप्रदेश ही नहीं देश को भाजपा ने एक नया और बिल्कुल स्पष्टवादी नेता दिया। ऐसा नेता, जो अपनी धार्मिक भावना के साथ चलते हुए सबका साथ-सबका विकास का मूलमंत्र लेकर देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनता है और देश के राष्ट्रवादियों के दिल में राज भी करना जानता है। दोबारा मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार योगी आदित्यनाथ ने वो इतिहास लिख दिया है जिसके लिए उत्तर प्रदेश का बड़े से बड़े दिग्गज राजनीतिज्ञों की कोशिशें सफल नहीं हुईं। योगी आदित्यनाथ आज योेगी ब्रांड बन गया है। वह ब्रांड जो पूरे यूपी को ही नहीं देश में कहीं भी चुुनाव हो, इस ब्रांड के बिना भाजपा की चुनावी नैया पार नहीं लगती। योगी विरोधियों के लिए जितने सख्त हैं अपनों के लिए उतने ही विनम्र।

हर सफलता का श्रेय प्रधानमंत्री को देना उनकी नम्रता को दिखाता है। मुख्यमंत्री 37 साल का रिकार्ड तोड़ रहे हैं। विरोधी उनके नाम पर कांपते हैं। उनकी योजनाओं का गुणगान हर वर्ग करता है। उनके राज में महिलाएं अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं करती। उपद्रवी कभी अपनी योजनाओं को उप्र में बनाते ही नहीं क्योंकि उन्हें पता है मुख्तार अंसारी, गायत्री प्रजापति, आजम खां का क्या हश्र हुआ है। लेकिन शरीफों केे लिए योगी तो धार्मिक हैं। विनम्र, सरल और हंसमुख । वह बच्चों के बीच पहुंंचते हैं तो उन्हें दुलराते हैं। महिलाओं के बीच पहुंचते हैं तो उनको सुरक्षा का एहसास कराते हैं। युवाओं के बीच पहुंचते हैं तो उनके सुखद भविष्य की संकल्पना का एहसास कराते हैं। और जब बेहसहारों, जरूरतमंदों के बीच पहुंंचते हैं तो एक मजबूत लाठी के रूप में सहारा बनते दिखते हैं। लेकिन जब आताताइयों, उपद्रवियों, माफियाओं, बदमाशों, दुराचारियों को चेतावनी देते हैं तो साक्षात काल की तरह। यही कारण है कि सिर्फ एक गाने ने उप्र की जीत की इबारत लिख दी… आयेगे तो योगी ही।

यही प्रधानमंत्री को भी कहना पड़ा तो अमित शाह को भी। योगी एक नाम नहीं है एक विश्वास है, पूरे उत्तर प्रदेश का। तो आइये समझते हैं कि पांच साल में उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने वाले योगी की कुछ खास बातें- मैं योगी आदित्यनाथ शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्बारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा…। एक बार फिर बीजेपी के कद्दावर नेता योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे 2०22 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इतिहास रच दिया है। इस शानदार जीत के साथ पार्टी में योगी आदित्यनाथ का कद और बढ़ गया है। योगी ने यह भी मिथक भी तोड़ दिया कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है उसकी कुर्सी चली जाती है और कई बार नोएडा जाने के बावजूद वह उत्तर प्रदेश में लगातार पिछले पांच वर्ष से मुख्यमंत्री बने हुए हैं । उत्तरप्रदेश में एकतरफा जीत से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इतिहास लिख दिया है। पिछले 5 वर्षों के कार्यकाल में योगी के रुप में उत्तरप्रदेश ही नहीं देश को भाजपा ने एक नया और बिल्कुल स्पष्टवादी नेता दिया।

ऐसा नेता, जो अपनी धार्मिक भावना के साथ चलते हुए सबका साथ-सबका विकास का मूलमंत्र लेकर देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बनता है और देश के राष्ट्रवादियों के दिल में राज भी करना जानता है। एक सात्विक व्यक्ति राजनीतिक क्षेत्र में रहकर भी कैसे सात्विकता बरकरार रखता है, ये व्यक्तिगत रुप से उनसे मिलने वालों ने और मैंने भी अपने शोध में पाया है। इन बीते 5 वर्षों में वोट के नाम पर राजनीति करने वाले तमाम राजनेताओं और वामपंथियों ने योगी आदित्यनाथ की छवि को एक विशेष वर्ग का सपोर्ट और विशेष वर्ग का विरोध करने वाला बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। विभिन्न मीडिया संस्थानों में कार्य करने वाले कई पत्रकार पूरी तरह कैंपेन बनाकर डंटे रहे और इस दौरान अपनी रिपोîटग के माध्यम से योगी की एक अलग छवि बनाने में इन्होंने अपने काम में पूरी इमानदारी दिखाई। पर उत्तरप्रदेश की जनता ने अपने बाबा पर ही मुहर लगा दिया। इन 5 सालों में जहां यूपी में बाहुबलियों के प्रति बीजेपी सरकार यानी योगी के एक्शन मॉडल की खूब चर्चा देशभर में रही, वहीं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण संबंधित प्रक्रियाओं और सरकार के स्टेप के निर्णय ने देश ही नहीं दुनियाभर के सनातनियों का ध्यान खींचा और योगी आदित्यनाथ ने सराहना बटोरी।

कुल मिलाकर योगी आदित्यनाथ की छवि को उत्तरप्रदेश की जनता ने वृहद स्तर पर स्नेह दिया और ये कहा कि समय की मांग योगी मॉडल ही हैं…उन्हें का बा? का जवाब बीते 5 वर्षों में मिला है, जिसका सकारात्मक जवाब फिर यूपी को भाजपा की झोली में डालकर यूपी की 25 करोड़ जनता ने दे दिया है। संन्यासी योगी आदित्यनाथ गणित में स्नातक हैं और देश के सबसे बड़े राज्य की राजनीतिक गणित को बेहतर समझते भी हैं, तभी तो इस वर्ष के विधानसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पूरी तरह से प्रत्याशी चयन की बागडोर केवल योगी आदित्यनाथ को ही दे दी थी। योगी आदित्यनाथ ने राज्य की 4०3 सीटों में अपने पसंद और अपनी टीम की छविनुरुप चेहरों को प्रत्याशी बनाया। यानी जैसी योगी की छवि है, योगी ने उसी पर चलते हुए प्रत्याशी भी अपनी तरह के ही लोगों को बनाया। 22 साल की उम्र में संन्यास धारण करने वाले योगी के साथ देश ही नहीं, दुनिया भर के सनातनियों का खुला समर्थन था। विपक्ष में रहने वाले राष्ट्रवादियों ने दूसरे राज्य के निवासी और दूसरी पार्टी में रहने के बावजूद चुनाव के परिणाम आते तक बस यही कहा -‘बाकी जगह कोई भी आए, बस यूपी में योगी आने ही चाहिए।’

दरअसल ये विश्वास है योगी की कार्यशैली पर…उनके स्टाइल पर…उनकी स्पष्टवादिता पर…उनकी नियत पर…उनके विजन पर…उनकी छवि पर…उनके एक्शन पर। मठ के महाराज और बाबा समय के साथ बुलडोजर बाबा कहलाने लगे। चुनाव प्रचार और योगी के सम्मेलनों में अनेक जगह समर्थकों ने बुलडोजर खड़ा कर दिया। यूपी के महराजगंज में तो सीएम योगी की जनसभा में बुलडोजर लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया था। गेरुआ रंग के बुलडोजर पर भीड़ की निगाहें टिक गईं। वैसे भी योगी सदा भगवा रंग के वस्त्र में ही दिखे हैं, ऐसे में जब योगी मंच पर पहुंचे, तो उन्होंने भी बुलडोजर का जिक्र छेड़ दिया था। इस जनसभा में योगी आदित्यनाथ ने कहा था-‘बुलडोजर हाइवे भी बनाता है, बाढ़ रोकने का काम भी करता है…साथ ही माफियाओं से अवैध कब्जे को भी मुक्त कराता है। ’ आंकड़े बताते हैं कि बीते 5 सालों में उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, विजय मिश्रा, कुंटू सिह जैसे तमाम माफियाओं की लगभग दो हजार करोड़ की अवैध संपत्ति पर कब्जे हटा दिए गए, बिल्डिंग गिरा दी गई, यानी बुलडोजर चला।

योगी की इसी स्पष्टवादिता के कायल हैं उनके समर्थक। पीएम मोदी ने योगी को उपयोगी का तमगा दिया था। तब से अब तक ये सवाल लगातार यक्षप्रश्न के रुप में था कि क्या ‘योगी आयेंगे?’ इस प्रश्न को जवाब मिला, 1० मार्च को। जब देश के सबसे बड़े राज्य के मुखिया के रुप में फिर से योगी आदित्यनाथ के हाथ में राज्य की जनता ने विश्वास की चाभी सौंपी है। क्या यूपी में परंपरा के अनुरुप दूसरी पार्टी की सरकार आयेगी? क्या लड़की हूं, लड़ सकती हूं, का कांग्रेस का नारा भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा या कांग्रेस को फायदा देगा? क्या लखीमपुर खीरी की घटना के कारण भाजपा के प्रति लोगों की नाराजगी दिखेगी? क्या अखिलेश को सत्ता मिलेगी? इन सारे सवालों का जवाब जनता ने दे दिया है। और कह दिया है कि विश्वास तो बाबा यानी योगी आदित्यनाथ पर ही है और इसी विश्वास से अब यूपी को राष्ट्रीय स्तर पर एक नया राष्ट्रवादी विकल्प तैयार मिलना पुष्ट हो गया है। अब जनता नाम बदलने, बुलडोजर चलने, एक्शन होने के इंतजार में फिर से रहेगी…फिर से यूपी में पांच साल हम सभी योगी मॉडल को देखेंगे…और इस जीत के मायने 2०24 की लोकसभा में आते भी देख पाएंगे।

फिलहाल लखनऊ, दिल्ली ही नहीं पूरे देश के भाजपा मुख्यालय में ‘ढोल ताशे, रंग गुलाल’ के साथ उत्साह चरम पर है। साल 2०17 के विधानसभा चुनाव के नतीजे जब आए तो बीजेपी ने 3०० प्लस सीटों के साथ जीत हासिल की थी। हालांकि शुरुआत में मनोज सिन्हा का सामने सीएम की रेस में आया था लेकिन बीजेपी ने अप्रत्याशित फैसला लेते हुए योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया। उस वक्त योगी आदित्यनाथ की छवि हिदुत्व के ‘पोस्टर बॉय’, भगवा वस्त्र पहनने वाले और तेज-तर्रार नेता के तौर पर थी, उनका ये स्टाइल आज भी कायम है। योगी आदित्यनाथ के आलोचक मानते हैं कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य को संभालने के दौरान उनकी फायर ब्रांड छवि में थोड़ा संतुलन भले आया हो लेकिन उनमें बहुत ज्यादा बदलाव आया हो, ऐसा नहीं है । तारीख थी 5 जून 1972 और जगह थी उत्तराखंड का पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर तहसील का पंचुर गांव। आनंद सिह बिष्ट के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा गया अजय सिह बिष्ट। माता-पिता के सात बच्चों में सबसे तेज-तर्रार. जानकारों का कहना है कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई करते हुए योगी आदित्यनाथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी से जुड़ गए और 1992 में उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी से बीएससी की।

राम मंदिर आंदोलन के दौर में उनका रुझान आंदोलन की ओर हुआ और इसी बीच वह गुरु गोरखनाथ पर रिसर्च करने के लिए साल 1993 में गोरखपुर आए। गोरखपुर में वह महंत और राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए और 1994 में योगी पूर्ण रूप से संन्यासी हो गए । योगी को महंत अवैद्यनाथ ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और दीक्षा लेने के बाद अजय सिह बिष्ट योगी आदित्यनाथ हो गए। 12 सितंबर 2०14 को महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी गोरक्षपीठ के महंत घोषित किए गए । उस वक्त वह बीजेपी से टकराव के भी गुरेज नहीं रखते थे और उन्होंने हिदू युवा वाहिनी नामक स्वयंसेवकों के अपने एक संगठन की स्थापना भी की थी। योगी का राजनीतिक सफर उपलब्धियों से भरा है। राजनीति में योगी गोरक्षपीठ की तीसरी पीढ़ी हैं। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ भी गोरखपुर से विधायक और सांसद रहे। इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने भी विधानसभा और लोकसभा दोनों में प्रतिनिधित्व किया ।

योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ की विरासत को आगे बढ़ाते हुए 1998 में महज 26 वर्ष की उम्र में पहली बार गोरखपुर से बीजेपी के सांसद बने और लगातार पांच बार उनकी जीत का सिलसिला बना रहा। योगी आदित्यनाथ ने इस बार भी करीब ढाई दशक के अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार गोरखपुर से ही विधानसभा का चुनाव लड़ा । मार्च 2०17 में लखनऊ में बीजेपी विधायक दल की बैठक में योगी को विधायक दल का नेता चुना गया था। इसके बाद योगी ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और विधान परिषद के सदस्य बने और 19 मार्च 2०17 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली ।

37 साल बाद बना कीर्तिमान

यूपी में करीब 37 वर्ष बाद बीजेपी लगातार दोबारा पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर कीर्तिमान बनाती नजर आ रही है। जनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इससे योगी आदित्यनाथ का कद और बढ़ा है। इसके पहले साल 1985 में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई थी । माना जाता है कि योगी ने मौजूदा विधानसभा चुनाव में 8० बनाम 2० प्रतिशत का नारा देकर वोटों के ध्रुवीकरण की पहल की7 विश्लेषकों ने 2० प्रतिशत को मुस्लिम आबादी और 8० प्रतिशत को हिदू आबादी के रूप में देखा। इसके योगी ने माफिया और अपराधियों के खिलाफ की गई कार्रवाई को भी पूरे चुनाव में मुद्दा बनाया । बीजेपी के शीर्ष नेताओं के चुनाव प्रचार में ‘योगी का बुलडोजर’ छाया रहा. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी अक्सर अपनी सभाओं में बुलडोजर और बुल (सांड) का नाम लेकर योगी पर तंज कसते थे’ यादव ने चुनाव में छुट्टा पशुओं पर नियंत्रण न लगा पाने को मुद्दा बनाया था ।

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