नीतीश ने बजाई सीटी भट्टी बन गए DG

बीते दिसम्बर के पहले सप्ताह से ही पुलिस महकमा समेत सियासतदानों के बीच यह चर्चा गर्म थी कि प्रांत का पुलिस प्रमुख यानी पुलिस महानिदेशक (DGP) कौन बनेगा। तीन-चार नामों पर चर्चा चल रहा था। अंतत: सीएम ने राजविंदर सिंह भट्टी के नाम पर अपनी मोहर लगा दी। कौन है भट्टी और उनका ट्रैक रिकार्ड क्या है? इस पर रोशनी डालती रतींद्र नाथ की रिपोर्ट…


बिहार की गिरती बिजली व्यवस्था, अपराधी-पुलिस-माफिया गठजोड़ एवं बढ़ते साइबर क्राइम वग़ैरह के बीच नीतीश कुमार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती थी कि किस IPS अफ़सर को पुलिस महानिदेशक (DGP) की कमान सौंपी जाए। नीतीश के पास तीन-चार भारतीय पुलिस सेवा के हाकिमों के नाम थे। एक नाम था 1988 बैच के IPS डॉ. मनमोहन सिंह का। रेस में दूसरे थे 1987 बैच के आलोक राज। दौड़ में कडक़ मिज़ाज IPS सोभा अहोतकर भी शामिल थीं। आखिरी क़तार में थे आरएस भट्टी, जो 1990 बैच के IPS होने के साथ ही बेहद ईमानदार व स्वच्छ अधिकारी माने जाते हैं। इन्हीं चार में से किसी एक का चयन होना था। आरएस भट्टी एवं शोभा अहोतकर के बाद पुलिस मुख्यालय के अंदर तथा बाहर यही गुफ़्तगू जारी थी कि इन दोनों में से किसी को नीतीश शायद ही मौक़ा दें, क्योंकि इनकी छवि यह है कि ये आईपीसी के तहत ही सिर्फ़ अपनी ड्यूटी बजाते हैं- रूल ऑफ लॉ को ही अहमियत देते हैं। किसी भी सफ़ेदपोश की ग़ैरक़ानूनी बातें नहीं सुनते हैं। होना भी यही चाहिए। यही तो एक मुकम्मल IPS की पहचान है।

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उधर डॉ. मनमोहन सिंह पढऩे-लिखने वाले शख्स हैं। साहित्यकार हैं, इसीलिए उन्हें दरकिनार कर दिया गया। दिसम्बर 17 की रात में यह ख़बर पुलिस मुख्यालय से उड़ी कि आलोक राज 19 दिसम्बर की कुर्सी सँभालेंगे। मगर यह कोरी अफ़वाह साबित हुई। अंतत: रविवार 18 दिसम्बर 2022 को इस धुँध पर से चादर हटी और नीतीश कुमार ने आरएस भट्टी को DGP बनाकर पुलिस विभाग के कमांडर इन चीफ़ का दायित्व सौंप दिया। लिहाज़ा यह कहने में ‘नया लुक’ को कोई गुरेज़ नहीं कि नीतीश ने बजाई सीटी, भट्टी बन गए डीजी।

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ग़ौरतलब है कि रेल गाड़ी जब खुलने को होती है तो गार्ड हरी झंडी दिखाने के साथ ही सीटी भी बजाता है और ट्रेन आगे बढऩे लगती है। देखना यह है कि नीतीश की सीटी पर भट्टी की गाड़ी कितनी अपराधियों को रौंदती है। भट्टी ने क्राइम रोकने के लिए 21 दिसम्बर 2022 को तमाम आईजी और डीआईजी के संग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर उन्हें टास्क दे रखा है। इस वीसी में एसएचओ (थानाध्यक्ष), पुलिस अधीक्षक (SP) भी शामिल थे। स्पष्ट है कि भट्टी किसी भी सूरत में आतंक के राज्य से मुक्त कराना चाहते हैं, क्योंकि उनका कार्यकाल 30 सितम्बर 2025 तक है, इसलिए उम्मीद है कि अपनी पुलिसिंग में वो सौ फ़ीसदी कामयाब नहीं तो कम से कम बहुत दूर तक सफल हो सकते हैं। हालाँकि राजद की इच्छा थी कि आलोक राज को यह पोस्ट दे दिया जाए। आलोक की पृष्ठभूमि पुलिस एवं राजनीति दोनों की कॉकटेल रही है।

दरअसल राज के ससुर दिवंगत डीएन सहाय बिहार कैडर के IPS थे। अवकाश ग्रहण करने के बाद उन्होंने नीतीश कुमार की तत्कालीन सत्ता पार्टी ज्वाइन की थी। नीतीश ने उसे इस दल के खज़़ांची के पद पर बिठाया था। कालांतर में सहाय त्रिपुरा और छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के चेयर पर भी आसीन हुए थे। सियासी फिज़़ा में यह समाचार तैर रहा है कि आलोक राज ने DGP की कुर्सी पाने वास्ते साम-दाम-दंड-भेद की नीति लगा रखी थी। बावजूद इसके इस तख़्त से वो महरूम रहे। वैसे साम-दाम-दंड-भेद वाली आलोक राज की थ्योरी की पुष्टि ‘नया लुक’ नहीं करता। बिहार के नए DGP आरएस भट्टी की गिनती भारतीय पुलिस सेवा के उन गिने-चुने अधिकारियों में होती है जिन्हें अपराधियों के लिए बेरहम अफसर माना जाता है। कई इलाकों में ग्रामीणों की मदद लेकर उन्होंने गिरोहों पर नकेल कसा था। आज भी गांव के लोग उस दौर में उनकी भूमिका को याद करते हैं। बहरहाल राजविंदर सिंह भट्टी ने काँटों भरी DGP का ताज हाथों में लेते ही अपना सीक्रेट ऑॅपरेशन शुरू कर दिया है। शराबबंदी को चुस्त-दुरुस्त करने, क़ानून-व्यवस्था को पटरी पर लाना ही उनका वन प्वाइंट प्रोग्राम है।

मोस्ट वांटेड को रगड़ा,शहाबुद्दीन को झटका तगड़ा

यूपी के माफिय़ा डॉन मुख़्तार अंसारी ने एक बार कहा था कि शहाबुद्दीन वह आतिश है जिस पर हाथ रखते ही पूरी देह स्वत: ही ख़ाक हो जाती है। मगर आरएस भट्टी ने मुख़्तार की चुनौती को आज से 17 साल पहले न केवल क़ुबूल ही किया था, बल्कि शहाबुद्दीन को नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास से दबोचकर जेल के सीखचों में ऐसा बंद कराया कि दोनों माफिय़ा डॉनों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसके बाद शहाबुद्दीन एक प्रकार से लाल हवेली में ही सड़ गए। सिर्फ़ सितम्बर 2016 में 19 दिनों के लिए यह बाहुबली पटना हाईकोर्ट से ज़मानत पर निकला था। लेकिन उच्चतम अदालत ने शहाबु की ज़मानत रद्द कर दी थी और 30 सितम्बर के दिन साहेब ने सरेंडर किया था। अंतत: पहली मई 2021 को कोरोना से पीडि़त शहाबु का इंतकाल हो गया था। तिहाड़ जेल से उन्हें दीनदयाल उपाध्याय हॉस्पिटल एडमिट किया गया था। शहाबुद्दीन कोरोना से सुपुर्द-ए-खाक हो गए थे। हालाँकि पाठकों को उनकी गिरफ़्तारी और उनके पकडऩे के वास्ते भट्टी द्वारा रचे गए चक्रव्यूह से चारचश्म कराना ज़रूरी है।

अक्टूबर-नवम्बर 2005 में बिहार के विधानसभा का चुनाव चल रहा था। केजे राव जिनकी गिनती कडक़ मिज़ाज अफ़सरों में होती थी, उन्हें इलेक्शन कमीशन ने उन्हें बिहार में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। भारत सरकार के निवार्चन आयुक्त की ख़ास नजऱ सीवान के बाहुबली माफिय़ा डॉन राजद सांसद और लालू के ‘ब्लू आइड ब्वॉय’ शहाबुद्दीन को गिरफ्तार करने का फ़ायदा यह था कि सीजऩ में निष्पक्ष होता, क्योंकि इसी शहाबु ने दो मई 1996 के दिन लोकसभा निर्वाचन के दौरान वहाँ के तत्कालीन SP व अभी-अभी रिटायर DGP एसके सिंघल पर बूथ लूट के दरम्यान एके-47 से ताबड़तोड़ फ़ायरिंग किया। सिंघल अपनी गाड़ी से भागकर किसी तरह अपनी जान बचाई। इसी सिंघल से आरएस भट्टी ने पुलिस महानिदेशक का चार्ज लिया है। बहरहाल भट्टी उस वक़्त डीआईजी रैंक के अफ़सर थे और सेंट्रल में डेप्यूटेशन पर थे। उन्हें सीवान का स्पेशल SP व पुलिस उपमहानिरीक्षक का पद हैंडओवर किया गया था।

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शहाबु को हिरासत में लेना उनकी प्राथमिकता नम्बर-1 थी। फिर क्या था? भट्टी ने इस सीक्रेट ऑपरेशन में चार-पांच पुलिस वालों को लगाया। ऑपरेशन की इंचार्ज थीं, आंदर पुलिस स्टेशन सीवान की एसएचओ चंद्रकांत गौरी। आखऱिकार गौरी ने चार नवम्बर 2005 को शहाबु के पर क़तर दिए थे और उन्हें उनकी पार्लियामेंटरी नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास में गिरफ्तार कर लिया था। तभी भट्टी को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला था। आरएस भट्टी की कथा यहीं ख़त्म नहीं होती। प्रभुनाथ सिंह और दिलीप सिंह पर भी इन्होंने ज़बरदस्त नकेल कसी थी। फिलवक्त प्रभुनाथ अशोक सिंह मर्डर केस में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे हैं। जबकि दिलीप सिंह का देहावसान हो चुका है। यह वही दिलीप सिंह है, जिनके छोटे भाई अनंत सिंह हाल-हाल तक राजद के विधायक थे और आम्र्स एक्ट में दंड भुगत रहे हैं।

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माफिया को उसी के अंदाज में जवाब देना जानते हैं भट्टी

कहानी साल 1997 की है। छपरा के बड़े नामी-गिरामी डॉक्टर राम इकबाल प्रसाद के बेटे रवि की किडनैपिंग हो गई। रवि अपहरण कांड के समय छपरा में प्रत्यय अमृत डीएम थे और राम लक्ष्मण सिंह SP। हल्ला हो गया कि दो करोड़ फिरौती मांगी गई है। मांगी गई या नहीं, इसका पता नहीं चला लेकिन बच्चा कई दिनों तक नहीं मिला। हंगामा शुरू हुआ। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने हड़ताल कर दी। सरकारी तो सरकारी, प्राइवेट क्लिनिक तक बंद हो गए। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई, मरीजों को इलाज के लिए डॉक्टरों के हाथ-पांव जोडऩे पड़े। लेकिन इसका असर ये हुआ कि छपरा तो छोडि़ए, पटना में पुलिस महानिदेशक से लेकर जितने तरह के ब्रांच पुलिस के होते हैं, सब के सब एक्टिव हो गए। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

पुलिस के हाथ कोई सुराग ही नहीं लग पा रहा था। थक-हारकर हड़ताल कर रहे डॉक्टरों की एक टीम लालू यादव से मिलने गई। सबने लालू से कहा कि रवि अपहरण कांड का चार्ज गोपालगंज के SP को दिया जाए। लालू ने डॉक्टरों की मांग मान ली और ऐलान कर दिया कि अब इस केस को भट्टी देखेंगे। लेकिन वह छुट्टी पर अपने घर पंजाब गए थे और सात दिन बाद वापस लौटने वाले थे। बिहार के DGP ने उनके घर फोन लगाया तो पता चला कि वो घर पर नहीं हैं और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर मत्था टेकने गए हैं। लालू ने भट्टी से कहा कि बिहार पुलिस की प्रतिष्ठा फंस गई है और सारे डॉक्टर चाहते हैं कि आप इस केस को देखिए। आप वापस लौट आइए। भट्टी पटना पहुंचकर कुछ देर DGP से मिले, फिर छपरा निकलगए। छपरा से निकलने के 48 घंटे के अंदर बच्चा यूपी के मिर्जापुर से सकुशल बरामद कर लिया गया।

हुआ यूं कि भट्टी ने एक टास्क फोर्स बनाई और अपने जिले गोपालगंज के अलावा बिहार-यूपी के सात जिलों के 40 सबसे बड़े माफिया के घर पर बेइंतहा दबिश बना दी। ऐसी दबिश कि अपराधी बाप-बाप कर उठे। सभी माफिया के घर से किसी न किसी को उठा लिया गया था। आखिर थक-हारकर अपराधियों ने वो बच्चा पुलिस को सौंप दिया। यानी भट्टी की ट्रिक काम कर गई। तीर अंधेरे में चलाया था लेकिन निशाने पर लग गई और लोग उनकी वाह-वाह करने लगे।

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बतौर थानेदार भी अपराधियों के लिए बन गए थे खौफ

बात उन दिनों की है जब आरएस भट्टी को प्रोबेशन के तौर पर १991-92 में भागलपुर भेजा गया था। उन्हें बिहपुर का थानेदार बनाया गया था। उस समय नवगछिया में कोशो कुंवर नाम के दुर्दांत अपराधी का आतंक था। नवगछिया अपराध का बड़ा गढ़ बन चुका था। कैलाश मंडल और कुशो कुंवर का लाइटर गिरोह और फाइटर गिरोह यहां लोगों के भय का कारण बन चुका था। दोनों गिरोहों के बीच जब टकराव हुआ तो तब 50 से अधिक लाशें गिरी थी। इसी दौरान भट्टी की यहां एंट्री हुई थी। कोशो कुंवर को पकडऩे के लिए वह फिल्मी अंदाज में केले से लदे ट्रक में भी छिपकर गये थे। हालाकि तब वह कोशो को दबोचने में सफल नहीं हो पाए थे। बाद में कोशो को उन्होंने बाढ़ में जाकर दबोचा था। गौरतलब है कि कोशो के कारण कई गांवों में दहशत रहता था।

कौन हैं आरएस भट्टी

बिहार के नए पुलिस महानिदेशक राजविंदर सिंह भट्टी मूल रूप से पंजाब के रहने वाले हैं। 1990 बैच के IPS भट्टी का मूल कैडर बिहार है। उन्होंने शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी में भी अहम भूमिका निभाई थी। उनके DGP बनने से बिहार में लॉ एंड ऑर्डर में सुधार होने की उम्मीद है। भट्टी इससे पहले सीमा सुरक्षा बल (BSF) पूर्वी कमान के एडीजी के पद पर कार्यरत थे। पदभार ग्रहण करने के बाद भट्टी ने कहा कि जो चुनौतियां हैं, उसका सामना करेंगे, विधि व्यवस्था एवं अपराध की रोकथाम हेतु हर संभव प्रयास करेंगे। पूर्व DGP संजीव सिंघल सेवानिवृत से पहले मीडिया से रूबरू हुए। उन्होंने कहा कि विगत दो वर्षों से ज्यादा समय के लिए मैं DGP था। पुलिस को पीपल फ्रेंडली बनाने में हम सक्षम हुए। 26 हजार 700 नियुक्तियां की। अब बिहार पुलिस में 24.29 फीसदी महिला कर्मी हैं। एएसआई से लेकर डीSP तक कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं।

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