डिंपल का बजेगा डंका या भाजपा फूंक डालेगी ‘लंका’

समाजवादी पार्टी (सपा) के गॉडफादर मुलायम सिंह यादव के देहावसान के बाद उनकी संसदीय सीट जो खाली हुई है, उस पर आगामी पांच दिसंबर को बाई-इलेक्शन होने जा रहा है। कुनबे में छिड़े शीतयुद्ध के मद्देनजर अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिम्पल यादव को मैनपुरी में ‘साइकिल’ चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है। देखना है कि सपा के इस अभेद्य किले को ध्वस्त करने में भाजपा को कामयाबी मिलती है?  ‘सैफई परिवार में रार, कैसे होगा चुनावी भंवर पार’ के मुद्दे पर वरिष्ठ समाचार सम्पादक के साथ डॉ. चंद्रभान सिंह की रिपोर्ट…


काफी सोच-विचार और सियासी मंथन के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, यूपी के पूर्व सीएम व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिम्पल यादव को ही अपने दिवंगत पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत सुपूर्द करने का फैसला किया। नतीजतन, डिम्पल को मैनपुरी की महाभारत में उतरने के लिए पार्टी ने सिम्बल हैंड ओवर कर डाला। डिम्पल यादव ने 14 नवंबर को अपना पर्चा भी दाखिल कर दिया। गौरतलब है कि मैनपुरी में साल 1996 से ही सपा का कब्जा है। बीजेपी आज तक मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में अपना परचम नहीं लहरा सकी है। साल 1998 एवं 1999 के लोकसभा इलेक्शन को छोड़ दिया जाए, तो 1996, 2004, 2009, 2014 व 2019 में मुलायम परिवार ही यहां ‘साइकिल’ की सवारी करता रहा है। हालांकि साल 1998 और वर्ष 1999 में भी सपा ने ही मैनपुरी में बाजी मारी थी, मगर तब चौधरी बलराम सिंह यादव को मुलायम ने उम्मीदवार बनाया था। वर्ष 2004 के संसदीय उप निर्वाचन के दौरान मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव ने मैनपुरी जीता था, जबकि साल 2014 में तेज प्रताप सिंह यादव ने यहां के बाई इलेक्शन में अपना खुटा गाड़ दिया था। गौरतलब है कि तेज प्रताप मुलायम के भाई रतन सिंह यादव के पोते हैं और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद अध्यक्ष लालू यादव के दामाद। अप्रैल-मई 2019 के संसदीय दंगल में मोदी लहर के बावजूद मुलायम अपनी मैनपुरी सीट बचा ले गए थे। बेशक उनकी जीत का मार्जिन काफी घट गया था। तब महज 95 हजार वोटों से ‘धरतीपुत्र’ को कामयाबी मिली थी।

 

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अब सवाल उठना लाजमी है कि ज्योंही चुनाव आयोग ने मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में पांच दिसंबर को बाई-इलेक्शन कराने का ऐलान किया, त्योंही यह खबर सुर्खियों में आ गई कि मुलायम की मृत्यु से रिक्त हुई मैनपुरी में अबकी बार तेज प्रताप सिंह यादव साइकिल पर बैठकर भाग्य आजमाएंगे। इस मुतल्लिक यूपी के अखबारों, चैनलों एवं सोशल मीडिया में तेज प्रताप छाते चले गए। बीच-बीच में धर्मेंद्र यादव का नाम भी उछल रहा था। लेकिन तमाम राजनीतिक विश्लेषकों, गपोडिय़ों को  उस वक्त धक्का लगा जब अखिलेश ने अपनी पत्नी डिम्पल यादव के नाम पर मुहर लगा दी। यूं तो अखिलेश के इस फैसले से मुलायम परिवार में कानाफूसी शुरू हो गई, किंतु सपा के जमीनी कार्यकर्ता, पार्टी के बड़े-बड़े पदाधिकारी गदगद हो गए। फौरन सपाइयों ने नारा उछाला- ‘डिम्पल भाभी आ गई, मैनपुरी में छा गई।’ सनद रहे कि डिम्पल यादव को कार्यकर्ता डिम्पल भाभी ही कहते हैं। बहरहाल यह समझना जरूरी है कि अखिलेश यादव ने आखिर ऐसा कदम उठाया क्यों? इस बाबत ‘नया लुक’ ने अपनी तफ्तीश की तो पाया कि धर्मेंद्र यादव, तेज प्रताप यादव या किसी और को अखिलेश प्रत्याशी बनाते तो फैमिली में ही ड्रामा होने लगता। शिवपाल सिंह यादव की भृकुटि इससे तन जाती। यादव वोट बैंक में सेंध लगना मुश्किल होने लगता। लगे हाथ धर्मेंद्र के बदले तेज प्रताप रहते या उनके स्थान पर धर्मेंद्र होते तो भी मिनी महाभारत भीतर ही भीतर होने की संभावना थी, जो दिखती नहीं, मगर काम कर जाती है। उनके प्रत्याशी होने से यह मुमकिन था कि शिवपाल सीधे जंग में कूद पड़ते यानी अपना नामांकन दाखिल कर देते। सपाइयों में भी उठापटक का दौर चल पड़ता। लिहाजा नाप-तोल कर अखिलेश ने डिम्पल को प्रत्याशी घोषित कर ‘चित भी मेरी-पट भी मेरी’ वाली कहावत चरितार्थ कर डाला। मतलब कि मुलायम के सियासत की सबसे बड़ी दावेदार डिम्पल हो गई।

मैनपुरी की सियासी कथा यहीं समाप्त नहीं होती। वहां के जातीय समीकरण पर भी गौर फरमाना जरूरी। इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं। इनमें भोगांव, किशनी, करहल मैनपुरी एवं जसवंतनगर हैं। भोगांव और मैनपुरी में भाजपा का कमल 2022 के असेंबली इलेक्शन में खिला था। करहल खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव की झोली में गई थी। जसवंतनगर में प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव ने अपनी विजय दर्ज की थी। किशनी में सपा की बल्ले-बल्ले हुई थी। इससे इतर मैनपुरी पार्लियामेंट्री इलाके में 17 लाख 43 हजार 48 मतदाता है। यहां यादव साढ़े चार लाख हैं। ब्राह्मणों की तादाद एक लाख 10 हजार है। लोध एक लाख के लगभग हैं। शाक्य के दो लाख 90 हजार हैं। क्षत्रिय दो लाख हैं। एक लाख 20 हजार जाटव हैं। वैश्य 70 हजार हैं तथा 55 हजार मुसलमान हैं। ‘नया लुक’ की खोजबीन में यह साफ हुआ कि यादव मुसलमान, शाक्य भी सपा के सदा ही खेवनहार रहे हैं। यही कारण है कि इस मर्तबा भाजपा ने शाक्य उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है। हालांकि आलोक शाक्य को मैनपुरी से सपा का जिला अध्यक्ष बनाकर अखिलेश ने इस बिरादरी को साधने की कोशिश की है। लेकिन इसमें तनिक भी शक, सुबहा और संदेह नहीं कि मैनपुरी की लड़ाई डिम्पल की अगुवाई में ही आगे बढ़ रही है।

आजम के गढ़ में ‘आकाश’

रामपुर में आजम खां का कोई बड़ा सियासी दुश्मन है तो वह आकाश सक्सेना, जिन्हें भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। कहावत है दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। अब जब रामपुर में उप चुनाव हो रहा है तो आजम के ये दोनों सियासी दुश्मन एक हो गए हैं। आकाश और नवेद मियां उर्फ नवाब काजिम अली खां ने मिलकर आजम के गढ़ को नेस्तनाबूद किया है। विधायकी छिनवाने से लेकर आजम खां का वोट कटवाने तक आकाश की अहम भूमिका रही है। वहीं कांग्रेस के पूर्व मंत्री नवेद उनके बेटे अब्दुल्ला आजम की विधायकी छिनवा चुके हैं। हाईकोर्ट में नवेद ने ही रिट दायर की थी, जिस पर अब्दुल्ला का निर्वाचन शून्य करार दिया गया था। गौरतलब है कि हमजा मियां (नवेद के पुत्र) पहले से ही साथ (अपना दल-एस) हैं।

राजकुमारी राज करेंगी खतौली में?

मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में दो साल की सजा पाने वाले विक्रम सिंह सैनी की जगह पर उनकी पत्नी राजकुमारी सैनी बीजेपी प्रत्याशी है। उनके सामने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के मदन भैया प्रत्याशी है। कहा जाता है कि जाट एवं गुर्जर वोटों पर उनकी जबरदस्त पकड़ है, लेकिन सरकार के मंत्री उस सीट के लिए जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं। तभी तो पिछले दिनों खतौली पहुंचे मंत्री जितिन प्रसाद ने मुनादी की कि यह योगी सरकार है। यहां बड़े-बड़े बाहुबली बिल में घुस गए हैं। बाहुबली और बाहरी प्रत्याशी को खतौली की जनता बाहर का रास्ता दिखाएगी।

डिम्पल के नाम रिकार्ड

वह देश की अकेली महिला हैं जिन्होंने 2012 में कन्नौज से निर्विरोध लोकसभा में एंट्री मारी थी। उस दौरान अखिलेश यादव लोकसभा के सदस्य थे। मुलायम सिंह ने उन्हें यूपी का चीफ मिनिस्टर बना दिया था। लिहाजा कन्नौज की खाली सीट पर उपचुनाव  में डिम्पल निर्विरोध चुनकर लोकसभा में घुसी थी।

फिर साल 2014 में इसी कन्नौज क्षेत्र की उन्होंने नुमाइंदगी की थी। मगर वर्ष 2019 में मोदी की आंधी में डिम्पल को भाजपा के सुब्रत पाठक के हाथों यह सीट गंवानी पड़ी थी। वर्ष 2009 के लोकसभा इलेक्शन में भी डिम्पल कभी अपने ससुर मुलायम सिंह यादव के शागिर्द रहे कांग्रेसी राज बब्बर के हार गई थीं।

मैनपुरी में शाक्य की सियासत

शिवपाल के खासमखास रहे रघुराज शाक्य इस बार अपने पूर्व आका के खिलाफ चुनावी रण में उतरे हैं। हालांकि दोनों ही प्रत्याशियों ने मुलायम सिंह यादव की समाधि पर पुष्प अर्पित कर चुनाव प्रचार शुरू किया।

बीजेपी ने जिस रघुराज को डिंपल के खिलाफ उतारा है, उनकी शिवपाल से इतनी करीबी रही है कि मैनपुरी का चुनाव अब इकतरफा नहीं रह गया है। शाक्य डिंपल यादव के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं? बीजेपी का मानना है कि शिवपाल की सपा से दूरियां और रघुराज से नजदीकियां चुनाव में बड़ा फायदा पहुंचा सकती हैं। वह जिस पिच पर बल्लेबाजी करेंगे वह भी सपा की है।

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