फुलेरा दूज पर इन छह खास फूलों से करें पूजा…

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


फुलेरा दूज का त्योहार 21 फरवरी 2023 को मनाया जाएगा। इस दिन राधा-कृष्ण फूलों की होली खेलते हैं। कहते हैं कि ब्रज में इस दिन से ही होली की शुरुआत हो जाती है। इस दिन को विवाह के लिए बहुत शुभ माना जाता है। फुलेरा दूज के दिन  बिना मुहूर्त देखे ही मांगलिक कार्य कर सकते हैं। ये पर्व होली, होली की तैयारियां, भजन, कीर्तन और फाग गीतों का प्रतिक है। मान्यता है कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यानी फुलेरा दूज के दिन को साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का अंश होता है। इसी कारण से ये दिन श्रीकृष्ण की उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस साल फुलेरा दूज का त्योहार बेहद शुभ संयोग में मनाया जाएगा। आइए जानते हैं इस दिन का पूजा मुहूर्त, शुभ योग और पूजा विधि।

  1. कृष्णकमल: श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय फूल है कृष्णकमल, इस फूल के ऊपर तीन कलियां होती है जिसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक माना गया है। ये बेहद दुर्लभ और चमत्कारी फूल है। मान्यता है कि फुलेरा दूज पर कृष्ण की पूजा कृष्णकमल से करने पर साधक हर क्षेत्र में तरक्की करता है।
  2. कुमुदिनी : फुलेरा दूज पर राधा-कृष्ण की पांच कुमुदिनी के फूल से पूजा करने पर पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में सुख-शांति रहती है।
  3. वैजयंती : वैजयंती फूलों को बहुत सौभाग्यशाली माना गया है। श्रीकृष्ण हमेशा वैजयंती फूलों के बीजों से बनी माला धारण करते हैं। मान्यता है कि फुलेरा दूज पर श्रीकृष्ण को वैजयंती के फूल चढ़ाने से आर्थिक लाभ मिलता है। धन की कभी कमी नहीं रहती। साथ ही ग्रहों के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं।
  4. हरसिंगार (पारिजात) : धार्मिक मान्यता है कि शीघ्र विवाह के लिए एक पीले कपड़े में पारिजात के 7 फूलों के साथ हल्दी की गांठ बांधें और फिर इसे कान्हा के चरणों में अर्पित कर दें। कहते हैं इससे विवाह में आ रही रुकावट दूर होती है। सुयोग्य जीवनसाथी मिलता है।
  5. रजनीगंधा : रजनीगंधा का फूल कान्हा को अति प्रिय है। मान्यता है कि फुलेरा दूज के दिन घर के पूर्व या उत्तर दिशा में लगाने से बरकत आती है। साथ ही इसे कान्हा का अर्पित करें। इससे पति-पत्नी के रिश्ते मजबूत होते हैं।
  6. वनमाला : वनमाला के फूल कान्हा को बहुत प्रिय है। फुलेरा दूज के दिन गुलाल के साथ कान्हा को वनमाला के फूल की माला पहनाएं। फिर राधा रानी को भी वनमाला के फूल चढ़ाएं। मान्यता है इससे प्रेम संबंधों में कभी कड़वाहट नहीं आती, कपल के बीच चल रहा तनाव दूर होता है।

फुलेरा दूज की तिथि….

मंगलवार, 21 फरवरी 2023

द्वितीया तिथि शुरू – 21 फरवरी 2022 सुबह 09:04 बजे

द्वितीया तिथि समाप्त – 22 फरवरी 2022 पूर्वाह्न 05:57 बजे

फुलेरा दूज एक ऐसा दिन है जो सभी दोषों से मुक्त है। इसलिए सभी शुभ कार्यों विशेषकर विवाह समारोहों में फुलेरा दूज के दिन किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। इस दिन भारत में सबसे ज्यादा विवाह होते है। फुलेरा दूज का त्योहार को शुभ और सर्वोच्च दिन में रूप में माना जाता है। यह त्योहार उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों में मनाया जाता है विशेषकर यह त्योहार ब्रज, मथुरा और वृंदावन के क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण दिन है। यह त्योहार पूर्णतय भगवान श्रीकृष्ण का समर्पित है। फुलेरा दूज, हिंदू कैलेंडर में फागुन के महीने में शुक्ल पक्ष द्वितीया को चिह्नित किया जाता है। फुलेरा दूज, वसंत पंचमी और होली के त्योहार के बीच आता है।

फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा का आगामी होली की तैयारी करते हुए दिखाया जाता है। इस दिन वृंदावन का प्रसिद्ध मंदिर श्रीबांके बिहारी मंदिर में हजारों की सख्या में श्रीबांके बिहारी के दर्शन हेतु आते है। श्रीबांके बिहारी मंदिर को फुलों से सजाया जाता है। शाब्दिक अर्थ में फुलेरा का अर्थ है ‘फूल’ जो फूलों को दर्शाता है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं। इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है।

फुलेरा दूज की पौराणिक कथा

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण लंबे समय से अपने कार्य में व्यस्त रहे थे। जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी से नहीं मिल पा रहे थे। राधा रानी अत्यंत दुखी रहने लगी थी। राधा रानी के दुखी होने के कारण प्रकृति पर विपरित प्रभाव पड़ने लगा, भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति की हालत को देख कर, राधा रानी का दुख और नाराजगी को दुर करने के लिए मिलने गये। जब भगवान श्रीकृष्ण, राधा रानी से मिलें तो राधा और गोपियां प्रसन्न हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। श्रीकृष्ण ने एक फूल तोड़ा और राधारानी पर फेंक दिया। इसके बाद राधा ने भी कृष्ण पर फूल तोड़कर फेंक दिया। फिर गोपियों ने भी एक दूसरे पर फूल फेंकने शुरू कर दिए। हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई। यह सब फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हुआ था। तब से इस तिथि को फुलेरा दूज के नाम से एक त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा।

सभी शुभ कार्यों के लिए शुभ समय

फुलेरा दूज एक ऐसा दिन है जो सभी दोषों से मुक्त है। इसलिए सभी शुभ कार्यों विशेषकर विवाह समारोहों में फुलेरा दूज के दिन किसी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती है। इस दिन भारत में सबसे ज्यादा विवाह होते है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों को फुलों से सजाया जाता है। विशेषकर इस्काॅन संस्था के मंदिरों के लिए यह दिन बहुत शुभ व महत्वपूर्ण होता है।

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