- शक्ति अहंकारी को मिले तो विप्लवकारी
- शक्ति विनम्र को मिले तो लोक कल्याणकारी
- महाशक्ति का शिवत्व से जुड़ना आवश्यक
वेदों ने रुद्री पाठ द्वारा शिव का महत्व गाया। शिवार्चन- विश्वब्रह्मांड मे आत्मलिंग शिव का जागरण कराते हुए समस्त शक्तियों का रचनात्मक दिशा में लगने की प्रेरणा है। शिवरात्रि मे देवी पार्वती का शिव से विवाह का उत्सव भी इसी महत्व पूर्ण अभिक्रम को दर्शाता है। हम अपने भीतर की आत्म शक्ति को जागृत करें और उसे शिवत्व मे लगाएं।
गौरी- शिव की आराधना वास्तव मे आत्मशक्ति को शिवत्व की ओर उन्मुख करने का महासंकल्प है। आईये संपूर्ण घटना का सांकेतिक अर्थ समझने का प्रयास करें। पहली बात तो यह जानलें कि अहंकार का शक्ति के साथ जुड़ना कल्याण कारी नही़ होता।
पहली बार दक्षप्रजापति की पुत्री सती से शिव का विवाह हुआ। अहंकारी ईश्वर की भक्ति नही़ं कर सकता,यदि करता है तो उसमे विवेक शक्ति जागृत नहीं होती। बुद्धि का विवेक शील होना ही हमें रचनात्मक दिशा प्रदान करता है। अन्यथा हमारी विध्वंसात्मक के प्रवृत्ति होजाएगी। सती ने स्वयं इस बात का अनुभव किया पिता के यज्ञ मे शिव का स्थान नहीं है। अर्थात दक्ष का किया जाने वाला यज्ञ लोककल्याण से नहीं जुड़ा है। उन्होने ऐसे यज्ञ को विध्वंस करने मे ही भलाई समझी। इसलिए अहंकारी पिता से उत्पन्न अपने शरीर का भी विस्फोट करा दिया। साथ ही यज्ञ का विध्वंस करा दिया।
जब वे अगले जन्म मे हिमवान की पुत्री के रूप मे जन्मी तो उनके साथ पिता की विनम्रता रही। अहंकार और दर्प नष्ट हो चुका था। देवर्षि नारद ने उनकी शक्ति को और अधिक पूर्ण बनाने के लिए कठोर तप कराये। शिव मंत्र का जप करते हुए देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तप किया। पूर्ण शक्ति संपन्न होकर उन्होंने शिव का साक्षात्कार किया। उन्हें सत्पात्र समझ कर ही शिव ने अर्धांगिनी के रूप मे स्वीकार किया।
फाल्गुन मास की तेरस- चतुर्दशी की रात मे देवी पार्वती का शिव ने वरण किया। अर्थात कठोर परिश्रम से उत्पन्न महाशक्ति को शिवत्व का संस्कार मिला। परमशक्ति ने लोककल्याण का महासंकल्प लिया। जिसे विश्वब्रह्मांड को रचनात्मक महाशक्ति मिली। हर व्यक्ति इसी तरह आत्मशक्ति को जागृत करे और उसे रचनात्मक दिशा देकर लोकहित मे लगाए,इसीलिए शिवाराधन करने की लोकपरंपरा पड़ी।
विशेष- आज हम तरह तरह का प्रयोग कर बम बनाने मे लगे है,जिसकी मारक क्षमता एक से बढ़ कर एक है उसका रिमोट किसी अहंकारी के हाथ मे थमा कर हम विध्वंस को ही आमंत्रण दे रहे हैं। उसकी पात्रता जिसमे हो उसे असीम धैर्य वाला ,क्षमाशील और लोककल्याण मे तत्पर होना आवश्यक है। अन्यथा यह महाशक्ति समस्त चराचर जगत मे विध्वंस करा देगी। जब प्राणियो का सर्वनाश होजाएगा तो बचेगा क्या?