रामचरित मानस की राह

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

ऐसी भृकुटी तानिये,

डट कर नज़र मिलाय।

ना जाने किस मोड़ पर,

प्रभु द्रोही मिल जाय॥

बड़े  बड़ाई ना  करैं,

बड़े  न  बोलैं बोल।

रहिमन हीरा कब कहे,

लाख टका मेरो मोल॥

छमा बड़न को चाहिये,

छोटन को उतपात।

का रहीम हरि को घट्यौ,

जो भृगु मारी लात॥

‘सही मार्ग पर नहीं है प्राचीन ग्रंथों के निंदक’

मर्यादा श्रीराम की,

है अति उज्ज्वल स्वच्छ।

दोष मढ़े चाहे कोई,

नेक न भटके लक्ष्य ॥

सबका जीवन चल रहा,

रामचरित मानस की राह।

माता -पिता, भ्रात- सुत

स्त्री, पुरुष की चाह ॥

 

जो चाहे वो सीख ले,

मानहु तुलसी श्रेष्ठ,

आदित्य की यह अर्चना,

यह मान्यता यथेष्ठ ॥

 

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