राज खोलता है स्त्री की कुंडली का सप्तम भाव

जयपुर से राजेंद्र गुप्ता


जन्मकुंडली का सप्तम भाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह वैवाहिक और दांपत्य सुख का दर्पण होता है। सप्तम भाव से किसी स्त्री या पुरुष के संबंधों के बारे में विचार किया जाता है। स्त्री की कुंडली के सप्तम भाव से उसके पति का और पुरुष की कुंडली के सप्तम भाव से उसकी पत्नी के बारे में विचार किया जाता है। यहां हम केवल स्त्री की कुंडली के सप्तम भाव के बारे में विचार करेंगे। दैवज्ञ आचार्य वराहमिहिर द्वारा रचित ग्रंथ लघुजातकम में स्त्री की कुंडली के सप्तम भाव के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है।

अबले सप्तमभवने सौम्येक्षणवर्जिते च कापुरुष: ।

भवति पतिश्चरभेस्ते प्रवासशीलो भवेद् भ्रांति: ।।

जिस स्त्री की कुंडली का सप्तम भाव निर्बल और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो उस स्त्री का पति कुविचारों और बुरे स्वभाव वाला होता है। यदि सप्तम भाव में चर राशि मेष, कर्क, तुला, मकर हो तो उसका पति विदेश में रहने वाला भ्रमणशील होता है। सप्तम भाव में स्थिर राशि वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ हो तो उसका पति घर में निवास करने वाला और स्थिर स्वभाव का होता है। यदि सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु, मकर हो तो पति कभी घर में कभी परदेस में रहने वाला होता है।

बाल्ये विधवा भौमे पतिसन्त्यक्ता दिवाकरेस्तस्थे ।

सौरे पापैदर्ष्टे कन्यैव जारं समुपयाति ।।

विधवा, परित्यक्ता का विचार

स्त्री की कुंडली में लग्न से सप्तम स्थान में मंगल हो तो स्त्री बाल विधवा होती है। सप्तम भाव में सूर्य हो तो पति त्याग देता है। यदि सप्तम भाव में शनि हो और पाप ग्रहों की दृष्टि उस पर पड़ रही हो तो कुंवारी अवस्था में पुरुष के साथ गलत संपर्क, यौन संबंध स्थापित करती है।

ब्रह्मवादिनी योग : स्त्री की कुंडली में जन्म के समय बलवान शुक्र, मंगल, गुरु और बुध लग्न में हों तथा लग्न सम राशि 2, 4, 6, 8, 10, 12 को हो तो वह स्त्री ब्रह्मवादिनी होती है। अर्थात् स्त्री ब्रह्म को जानने वाली, धार्मिक-आध्यात्मिक प्रकार की होती है। वह अनेक प्रकार के शास्त्रों की ज्ञाता होती है तथा ख्याति प्राप्त करती है।


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