जितने भी सफल व्यक्ति हुए उनमें से अनेक व्यक्तियों की जन्मपत्रियों में अष्टमेश का संबंध पंचम अथवा लग्न पंचम अथवा लग्न भाव से रहा है। ऐसे योग वाले व्यक्तियों के पास कोई न कोई कला अवश्य रहती है जो उन्हें ईश्वर से उपहार स्वरूप प्राप्त होती है। प्राय: ज्योतिष में अष्टम भाव को अशुभ भाव के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी ग्रह का संबंध अष्टम भाव से होने पर उसके कुफल ही कहे गए हैं लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है। मेरा मानना है कि जितने भी सफल व्यक्ति हुए उनमें से अनेक व्यक्तियों की जन्मपत्रियों में अष्टमेश का संबंध पंचम अथवा लग्न पंचम अथवा लग्न भाव से रहा है। ऐसे योग वाले व्यक्तियों के पास कोई न कोई कला अवश्य रहती है जो उन्हें ईश्वर से उपहार स्वरूप प्राप्त होती है। पंचमेश और अष्टमेश का आपस में संबंध होने पर आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनते हैं। ऐसे योग में व्यक्ति शेयर मार्केट, सट्टेबाजी अथवा लॉटरी द्वारा धन प्राप्त कर सकता है।
जन्मपत्रिका में अष्टम भाव को मृत्यु का भाव कहा जाता है। मृत्यु का भाव होने के साथ ही यह भाव गूढ़ विद्या तथा अकस्मात धन प्राप्ति का भाव भी कहलाता है। इसके अतिरिक्त अष्टम भाव से आयु निर्णय, मृत्यु का कारण, दुर्गम स्थान में निवास, संकट, पूर्वाजित धन का नष्ट होना, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का प्राप्त होना, पूर्वजों से प्राप्त संपत्ति, मन की पीड़ा, मानसिक क्लेश, मृत्यु का कष्टपूर्वक होना, गुप्त विद्या व पारंपरिक विद्याओं में निपुणता, अचानक धनप्राप्ति, लम्बी यात्राएं, विदेश में जाकर नौकरी करना, खजाने की प्राप्ति, कुएं आदि स्थानों में गिरने से मृत्यु आदि का भी विचार किया जाता है। अष्टम भाव से त्रिकोण का संबंध उत्तम होता है। अष्टम भाव का लग्न या पंचम भाव से संबंध होने पर व्यक्ति गूढ़ विद्याओं व पारंपरिक विद्याओं को जानने वाला तथा किसी विशेष कला में पारंगत होता है। अष्टमेश द्वाददेश के साथ संबंध बनाते हुए यदि पंचम भाव से युति करे तो व्यक्ति घर से दूर अथवा विदेश में प्रवास कर अध्ययन करता है तथा धनार्जन भी घर से दूर रहकर करता है। ऐसे व्यक्ति का मस्तिष्क बहुत ही कुशाग्र होता है।
वह हर तथ्य को बारीकी के साथ सोचता और समझता है। वह ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है। किसी भी प्रकार की समस्या में पड़ने पर अपने धैर्य को नहीं छोड़ता है। अष्टम भाव में विपरीत राजयोग होने पर व्यक्ति निश्चित रूप से अपने कार्य क्षेत्र में उन्नति करता है। अष्टमेश का सबंध नवम भाव से बहुत ही उत्तम होता है। ऐसे व्यक्ति दर्शन शास्त्र का विशेष ज्ञाता होता है। कई बड़े दार्शनिक, संत एवं सन्यासियों की जन्मपत्रिका में इस प्रकार के योग देखे जाते हैं। ऐसे योग में व्यक्ति में पूर्वानुमान की क्षमता बहुत ही दृढ़ होती है। प्रत्येक कार्य करते हुए उसके दूरगामी परिणामों को वह समझ लेता है। अष्टम भाव अथवा अष्टमेश का संबंध धन एवं कर्म भाव के साथ होने पर व्यक्ति शीघ्र उन्नति करता है। यह उन्नति किसी प्रकार के हथकंडों को अपनाकर प्राप्त की हुई होती है।
जो व्यक्ति अपने जीवन में गलत राह को चुनकर उन्नति प्राप्त करते हैं, उनकी जन्मपत्रिका में यह योग देखा जा सकता है। ऐसे योग में व्यक्ति अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी कुशाग्र गति से येन-केन-प्रकारेण सफलता प्राप्त कर लेता है। अष्टम भाव अथवा अष्टमेश का लाभ भाव से संबंध आकस्मिक लाभ को दर्शाता है। हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टि से यह योग उत्तम नहीं होता है परन्तु आर्थिक दृष्टि से यह योग अत्यंत उत्तम है। व्यक्ति को अप्रत्याशित धन की प्राप्ति होती है तथा पूर्वजों से धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
अष्टम भाव का शेष भावों से संबंध भी शुभ तथा अशुभ दोनों ही परिणाम प्रदान करने वाला होता है। हालांकि स्वास्थ्य की दृष्टि से अष्टमेश का प्रबल होना उत्तम नहीं माना जाता है परन्तु प्रबल अष्टमेश का त्रिकोण भाव से संबंध बनाना मनुष्य को रहस्यमयी बनाता है। स्त्री की जन्मपत्रिका में अष्टम भाव से उसके होने वाले जीवनसाथी की आयु का विचार किया जाता है। अष्टमेश की दशा-अंतर्दशा उसके जीवन में होने वाले बड़े परिर्वतन को दर्शाती है। इस दशा में उसके विवाह होने के योग भी बनते हैं। इसी भाव से पूर्वजों का भी विचार किया जाता है।
पितृदोष का विचार भी इसी भाव से किया जाता है। मनुष्य के पूर्वार्जित कर्मों तथा मनुष्य की आयु का विचार भी इसी भाव से किया जाता है। सामान्य तौर पर फलकथन में इस भाव के महत्व पर ध्यान नहीं दिया जाता है। जब मनुष्य किसी बड़े दु:ख में पड़ता है तभी अष्टम भाव की तरफ ध्यान जाता है। मनुष्य की उन्नति में इस भाव का बहुत ही महत्व है। यह बहुत ही विचित्र भाव है जो अपने गर्भ में अनेक प्रकार के फलों को समेट कर रखता है। चूंकि जन्मपत्रिका में सभी भावों और भावेशों के आपसी तालमेल से ही किसी व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का निर्माण होता है। अत: फलादेश कथन में इस भाव के महत्व को कदापि नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
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