संकष्टी चतुर्थी व्रत आज, संतान की लम्बी उम्र के लिए करते हैं यह व्रत, जानें कथा, व्रत एवं विधि

इस व्रत में केवल वनस्पतियों का ही कर सकते हैं सेवन, बड़ा फलकारी होता है उपवास

राजेन्द्र गुप्ता, ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

जयपुर। भारतीय हिन्दू महीनें में प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थी तिथियां होती हैं। पूर्णमासी या कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या के बाद एक विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। उपवास को सख्त माना जाता है और केवल फल, जड़ें जैसे आलू इत्यादि और वनस्पति उत्पादों का सेवन करना चाहिए।

संकष्टी चतुर्थी की तिथि

शुक्ल पक्ष चतुर्थी

बुधवार, 25 जनवरी 2023

चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 24 जनवरी 2023 को दोपहर 3:22 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त : 25 जनवरी 2023 को दोपहर 12:34 बजे

संकट चौथ की पूजा विधिः

  • सकट चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करें। गणेश जी के साथ मां लक्ष्मी की मूर्ति भी रखें।
  • गणेश जी और मां लक्ष्मी को रोली और अक्षत लगाएं। फिर पुष्प, दूर्वा, मोदक आदि अर्पित करें।
  • सकट चौथ में तिल का विशेष महत्व है। इसलिए भगवान गणेश को तिल के लड्डुओं का भोग लगाएं।
  • ॐ गं गणपतये नमः: मंत्र का जाप करें।
  • अंत में सकट चौथ व्रत की कथा सुनें और आरती करें।
  • रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर सकट चौथ व्रत संपन्न करें।

सकट चौथ का महत्व

धार्मिक मान्यता है कि सकट चौथ का व्रत रखने से गौरी पुत्र श्री गणेश (#Ganesha) प्रसन्न होते हैं और सभी संकटों से रक्षा करते हैं। शास्त्रों में माघ माह की चतुर्थी का सबसे अधिक महत्व बताया गया है, क्योंकि इस दिन भगवान गणेश ने भगवान शिव जी और माता पार्वती की परिक्रमा की थी। जो लोग सकट चौथ के दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सकट चौथ की व्रत कथा

सकट चौथ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से सबसे अधिक सुनी जाने वाली भगवान शिव (#LordShiva) और माता पार्वती (#MaaParvati) की है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती स्नान कर रही थीं। उन्होंने अपने पुत्र गणेश को स्नान घर के बाहर हूं की रखवाली के लिए खड़ा कर दिया और कहा कि जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं तब तक किसी को भीतर नहीं आने देना। भगवान गणेश ने अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए स्नानघर के बाहर पहरा देना शुरू कर दिया। इस बीच भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए। परंतु भगवान गणेश ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ समय रुकने के लिए कहा। नितेश भगवान शिव अपने आप को अपमानित महसूस करने लगे और उन्होंने गुस्से में आकर भगवान गणेश का त्रिशूल से सिर धड़ से अलग कर दिया। भगवान गणेश की गर्दन दूर जा गिरी।

जब स्नानघर के बाहर शोर की आवाज आई तो माता पार्वती बाहर देखने आईं और उन्होंने देखा कि भगवान गणेश की गर्दन कटी हुई है। यह देख माता पार्वती रोने लगी और भगवान शिव से गणेश के प्राण को वापस करने का आग्रह करने लगी। इस पर भगवान शिव ने एक हाथी का सिर भगवान गणेश के सिर की जगह लगा दिया इस तरह भगवान गणेश को दूसरा जीवन प्राप्त हुआ तभी से हर महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उनकी सलामती के लिए माघ मास के कृष्ण पक्ष (#KrishnaPaksha) की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी का व्रत करती हैं।

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