हमने बिसराया और दुनिया ने अपनाया

प्रो.कैलाश देवी सिंह
प्रो.कैलाश देवी सिंह

बात 1959 या 60 की है। भारत के लेखकों का एक प्रतिनिधिमंडल ईरान गया था। उस समय ईरान में शाह का शासन था और भारतीय प्रतिनिधिमंडल के कार्यक्रमों में ईरान के शाह से भी मिलने का कार्यक्रम था। शाह से मुलाकात के दौरान एक भारतीय लेखक ने कहा- ” हमारी लंबी गुलामी ने हमें आर्थिक और सामाजिक रूप से नुकसान पहुंचाया ही, साहित्य के क्षेत्र में भी हम कंगाल हो गए।”  तब शाह ईरान ने मुस्कुराते हुए कहा था – “आपके पास तो पंचतंत्र है, आप कंगाल कैसे हैं? अद्भुत रचना है पंचतंत्र और विश्व को भारत की यह एक अनुपम देन भी है। हम भारतीय या हमारी वर्तमान पीढ़ी पंचतंत्र के महत्व और उसकी विशेषताओं से कुछ कम भले ही परिचित हो लेकिन तथ्य यह है कि धार्मिक पुस्तकों को छोड़कर दुनिया के सबसे अधिक देशों और सर्वाधिक भाषाओं में जिस पुस्तक का अनुवाद हुआ है, वह पंचतंत्र है।

पंचतंत्र पर वृहद शोध करने वाले जर्मन विद्वान जोहानीस हर्टेल के अनुसार- ” पंचतंत्र का दुनिया के करीब 80 देशों और 200 से अधिक भाषाओं में अनुवाद हुआ है और अरब के अनेक देशों में तो यह पाठ्यपुस्तक के रूप में पढ़ाई जाती है। हम या अधिकांश लोग पंचतंत्र की इस व्यापक लोकप्रियता से इसलिए भी नहीं परिचित हैं कि प्रायः सभी अनुवादकों  ने इस का अलग-अलग नाम रखा है। यहां तक कि भारत में ही इसका कश्मीरी संस्करण “तंत्र आख्यायिका” नाम से है तो किंचित परिवर्तन के साथ बंगला में यह “हितोपदेश” नाम से प्रचलित है। रोचक कहानियों तथा जीव जंतुओं को पात्र बनाकर, बौद्धिक विकास के साथ-साथ नीति,  सांसारिक- व्यावहारिक ज्ञान आदि की अत्यंत रोचक ढंग से शिक्षा देने वाली यह अपनी तरह की विश्व में अद्वितीय  पुस्तक है। पंचतंत्र पर एक अन्य जर्मन शोधकर्ता थियोडोर बेन्फी ने लिखा है- “मध्य युग में यूरोपीय कथा साहित्य पर पंचतंत्र का प्रभाव दिखाई पड़ता है और यूरोप में प्रचलित ईसप की कहानियां भी मूलतः पंचतंत्र की कहानियां है।

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करीब 1000 साल पहले लिखी गई ईरान में आज भी सबसे लोकप्रिय पुस्तक फिरदौसी के “शाहनामा” में एक कथा का उल्लेख है। कथा के अनुसार ईरानी सम्राट के चिकित्सकों को किसी ने बताया कि भारत में एक संजीवनी है, जो किसी मरे को भी जिंदा कर देती है। चिकित्सक भारत आता है, बहुत ढूंढता है किंतु उसे संजीवनी नहीं मिलती। उसकी एक ऋषि से मुलाकात होती है। वह अपनी समस्या ऋषि को बताता है। ऋषि उससे कहते हैं- ” तुमने जो सुना, वह प्रतीकात्मक है। तुम जिस राजा के यहां ठहरे हो, उनके पुस्तकालय में पंचतंत्र नाम की पुस्तक है, तुम उनसे वह पुस्तक मांग लो। यह वह पुस्तक है जो अज्ञानी को ज्ञानी बना दे और मृत मस्तिष्क को जीवित कर दे। तुमने जो सुना है, वह यही संजीवनी है। निश्चय ही यह  एक कहानी है लेकिन करीब 1200 वर्ष पहले लिखी गई ईरान की आज भी सबसे लोकप्रिय पुस्तक शाहनामा में इस प्रकार का उल्लेख पंचतंत्र के महत्व को रेखांकित करता है।

शोधकर्ता श्री हर्टेल के अनुसार पंचतंत्र का आज भी अरबी साहित्य में बहुत उच्च स्थान है। अरबी में पंचतंत्र का अनुवाद ‘कलीगा-दिमाना’ नाम से हुआ है। अरबी में इस पुस्तक का छात्र संस्करण भी है जो वहां पाठ्यक्रम का हिस्सा है। ईरान में भी पंचतंत्र बहुत लोकप्रिय है। श्री हर्टेल के अनुसार ईरान में पंचतंत्र के 13 अनुवाद हुए हैं। ईरान में भी पंचतंत्र (कलीगा दिमाना )स्कूलों में पाठ्यक्रम में है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी अपने कर्मचारियों को फारसी सिखाने के लिए इसी पुस्तक का प्रयोग किया था। पंचतंत्र के छह अनुवाद जर्मन भाषा में, चार फ्रेंच में और अंग्रेजी में भी इसके अनेक अनुवाद हुए हैं। जर्मन शोधकर्ता श्री बेन्फी के अनुसार यूरोप के प्रायः सभी देशों, अधिकांश एशियाई देश और अनेक अफ्रीकी देशों में भी पंचतंत्र विभिन्न नामों से मौजूद है और लोकप्रिय है। इटली  फ्रांस, जर्मनी आदि विकसित देशों के साथ-साथ यह पुस्तक इजरायल, मंगोलिया, इथोपिया, तुर्की, मलेशिया में भी लोकप्रिय है।

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पंचतंत्र की लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि इसके कथाचित्र महाबलीपुरम सहित दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों में पत्थरों पर उत्कीर्ण किए गए हैं। मध्य एशिया के अनेक गुफाओं तथा कंबोडिया, थाईलैंड के अनेक मंदिरों में भी पंचतंत्र के कथा- चित्र उत्कीर्ण हैं। यहां तक कि विश्व का सबसे विशाल कहा जाने वाला थाईलैंड के अंगकोरवाट मंदिर में भी पंचतंत्र के कथाचित्र देखने को मिलते हैं। पंचतंत्र पर जर्मन शोधकर्ता थियोडोर बेन्फी लिखते हैं कि “पंचतंत्र कहानियों की कोई मामूली किताब नहीं बल्कि उसका स्थान विश्व साहित्य में बहुत ऊपर है। जैसा कि अनेक शोधकर्ताओं और लेखकों ने लिखा है कि पंचतंत्र विश्व साहित्य की एक बहुत महत्वपूर्ण कृति है। इसका प्रमाण भी है- दुनिया की 200 से भी अधिक भाषाओं और प्रायः आधी दुनिया में इसकी मौजूदगी। लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि विश्व को भारत की यह अमूल्य देन भारत में ही उपेक्षित है?

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