तालिबान के खिलाफ कब उठेंगे मुसलमान!!

के. विक्रम राव
के. विक्रम राव

हिंदूकुश पहाड़ों के पश्चिम में उस पार जो दमन महिलाओं पर हो रहा है उसकी भारत में अभी तक पुरजोर भर्त्सना नहीं हुई है। इस्लामी पाकिस्तान की भांति भारत की कथित तरक्कीपसंद तंजीमें और जमातें साजिशभरी खामोशी बनाए हुए हैं। हालांकि कट्टर इस्लामी गणराज्य सऊदी अरब और तुर्की ने तालिबान के जुल्मों के खिलाफ बुलंदी से आवाज उठाया है। इन दोनों जगहों में कभी इस्लामी खलीफाओं का राज हुआ करता था। दोनों अकीदे के आलमी मरकज वें हुआ करते थे। बल्कि फुटबाल से मशहूर हुआ कतर तो काबुल की आलोचना में जोरशोर से जुटा हुआ है। उसने तालिबान से अपने रिश्ते खत्म करने की धमकी भी दी है। गत सप्ताह महिलाओं की शिक्षा समाप्त करने पर तालिबानी अफगानिस्तान की इस बेजा हरकत पर इस्लामी तुर्की के विदेश मंत्री मेवलूत केवूसोग्लू ने कहा कि यह “न तो मानवीय है। इस्लामी तो कतई नहीं।” मक्का-मदीना के केन्द्र सऊदी अरब ने भी अफगानी तालिबान द्वारा नापाक हरकत को निंदनीय बताया है।

पर वाह ! अफगानिस्तान के उच्च शिक्षा मंत्री निदा मोहम्मद नदीम के द्वारा दिए गए तर्क निहायत फूहड़ हैं, हास्यास्पद है। नदीम गत वर्ष तक तालिबानी पुलिस का मुखिया रहा और हक्कानी गिरोह का फौजी कमांडर भी। उसकी मजहबी शिक्षा कन्दराओं में हुई, न कि किसी कालेज में। उसी ने महिला शिक्षा को खत्म कर दिया है। उसके मुताबिक शरिया कानून में नारी शिक्षा निषिद्ध है। नदीम भूल गया कि अफगानी सीमा से सटे पूर्व सोवियत इस्लामी राज्य उज्बेकिस्तान,अजरबैजान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, किरगिस्तान आदि में नरनारी शिक्षा को लेनिन और स्टालिन ने दशकों तक प्रोत्साहित किया था। स्वयं पैगंबर की प्रथम पत्नी खादिजा अर्थशास्त्री थी, और प्रिय पत्नी आयशा ने रणभूमि में संचालन किया था। निराशाभरा नजारा तो यह है कि सुन्नी अफगानिस्तान की महिला प्रदर्शनकारी काबुल की सड़कों पर सहशिक्षा के लिए जद्दोजहद कर रहीं हैं तो उधर कर्नाटक की छात्राएं सुप्रीम कोर्ट में हिजाब के पक्ष में मुकदमेबाजी कर रही हैं। कुछ दिन बीते काबुल में युवती सुहैला को तालिबानी पुलिस ने परपुरुषगमन के जुर्म में गाजी स्टेडियम में सौ कोड़े मारे थे। वजह यह थी कि वह अपने पुरुष संबंधी के साथ सड़क पर चल रही थी। गत वर्ष तो काबुल पुलिस ने महिलाओं को निर्दिष्ट किया था कि वे अपनी खिड़कियों के शीशों को काले रंग से पोते ताकि बाहर से कोई मर्द उन्हें न देख सके। एक दशक हुए तालिबानी तानाशाह मुल्ला उमर ने ऐलान किया था कि गैरमुसलमान को भिन्न रंग की वेशभूषा पहनना पड़ेगा ताकि उसकी पहचान की जा सके। तब हिंदुओं को पीतांबर धारण करना अनिवार्य कर दिया गया था। वस्त्रों का ऐसा नियम एडोल्फ हिटलर ने यहूदियों पर जर्मनी में थोपा था।

कई अफगानी क्रिकेटरों ने भी तालिबान सरकार के इस फैसले की निंदा की है। बच्चियों के स्कूल जाने पर पहले ही तालिबान प्रतिबंध लगा चुका है। महिलाओं का किसी पार्क, जिम और अन्य मनोरंजन स्थलों पर जाने पर रोक है। तालिबान ने महिलाओं की शिक्षा पर इस तरह की पाबंदी के अपने फैसले की सफाई में कहा कि उन्होंने देशहित और महिलाओं के सम्मान में ऐसा किया है। उनके नए आदेश के बाद देशभर में किसी भी युवती या महिला को यूनिवर्सिटी में एंट्री नहीं मिल सकेगी, जबकि तीन महीने पहले ही पूरे अफगानिस्तान में हजारों लड़कियों और महिलाओं ने विश्वविद्यालयों में आयोजित एडमिशन टेस्ट दिया था। अफगानिस्तान की महिला अधिकार कार्यकर्ता खदीजा अहमदी ने बताया कि तालिबान ने महिलाओं को जज या वकील के रूप में कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोक दिया है। सत्ता पर कब्जा करने से पहले अफगानिस्तान में लगभग 300 महिला जज थीं। तालिबान के चलते इन सभी को देश से निकलना पड़ा।

क्या ढकोसला है ? आज तालिबानी अफगानिस्तान में मादक पदार्थों का उत्पादन बढ़ा है। दिल्ली में पूर्व अफगान राजदूत महबूब खलीली के अनुसार अफीम की खेती कई गुना बढ़ी है। जबकि इस्लाम में नशा करना सख्त मना है। इस परिवेश में देखें भारत की त्रासदी बड़ी पीड़ादायी है। छोटी बात पर यहां के कठमुल्ले वितंडा खड़ा कर देते हैं। पर तालिबान के अमानवीय मसले पर वे सभी खामोश रहते हैं। यूं इस्लामी पाकिस्तान खुलकर अफगानी महिलाओं के अधिकार के पक्ष में नहीं आया हैं, मजहबी कारणों से। मगर भारत ने अफगान नारियों की शिक्षा की आजादी के पक्ष में आवाज उठाई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति के प्रस्ताव 2593 (30 अगस्त 2021) में पारित समिति की अध्यक्षता तब भारत ने ही की थी। इसका हवाला भारत ने दिया था। इसके अनुसार मानवाधिकार को हर सदस्य-राष्ट्र के लिए अनिवार्य नियम करार दिया है। मगर यहां खेदभरा तथ्य यह है कि भारत के किसी भी इस्लामी संगठन ने आज तक तालिबान की इस हरकत की भर्त्सना नहीं की। यहां भारत के कथित जनवादी, प्रगतिवादी से गंगा-जमुनी, सेक्यूलर गुट से अपेक्षा थी कि वे सड़कों पर मुजाहिरा करेंगे, खासकर नई दिल्ली-स्थित चाणक्यपुरी के शांतिपथ पर निर्मित अफगानी दूतावास के समक्ष।

भारत के मुसलमान और इन तालिबानी इस्लामिस्टों का एक जन्मजात रिश्ता नजर आता है। जब अमेरिकी फौज काबुल से भागी थी तो तालिबानी मुल्ला सत्ता पर काबिज हो गए थे। उस वक्त ऑल-इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना सज्जाद नोमानी ने तालिबानी हुकूमत को शाबाशी दी थी (18 अप्रैल 2021)। उनके शब्द थे : “हिंदी मुसलमान आपको सलाम करते हैं।” इस भारत-विरोधी ऐलान की किसी भी भारतीय मुसलमान रहनुमा ने मजम्मत नहीं की, सिवाय मोहसिन रजा जैसे सेकुलर नेता के। अतः अब यह राष्ट्रीय दृष्टिकोण से लाजिमी है कि मौलाना सज्जाद नोमानी तथा अन्य भारतवासी मुसलमान इस तालिबान नृशंसता की भर्त्सना करें। नरनारी समता को पैगाम तालिबान दे।

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