भोज्य पदार्थ ग्रहण करना,
पर ध्यान रहे उनकी शुचिता,
वैचारिक मर्यादा एवं सुंदरता,
अध्यात्म ध्यान की तन्मयता।
धर्म सुरक्षित सात्विक परायणता,
ज्ञान सुरक्षित अभ्यास परायणता,
रूप सुरक्षित निरंतर क्रियाशीलता,
परिवार सुरक्षित मर्यादित चरित्रता।
वैभव असुरक्षित कारण कृपणता,
मधुमक्खी मधु संचय कृत मधु छत्ता,
मधु पीवत भ्रमर औरन की मानुषता,
पूत-कपूत हों तो क्यों करते चिंता।
दुनिया तब खोज लेती है खूबियाँ,
जब दिखती किसी की सफलता,
कमियाँ मिल जाती हैं दुनिया को,
मिलती जब किसी को असफलता।
परिस्थितियों से स्वभाव बदल जाते हैं,
स्वभाव इंसान के भाग्य बदल देते हैं,
आदित्य वरना इंसान तो पहले भी,
वही होते थे और आज भी वही होते हैं।