गलतियों से सीख एवं चरित्र निर्माण

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

जब मनुष्य अपनी गलतियों से सीख लेता है तो अपने जीवन में आगे बढ़ पाता है, लेकिन यदि ग़लत सीख ले लेता है। तो यह ग़लत सीख इंसान की प्रगति को रोक भी लेती है। हम सभी इंसानों में कमियाँ भी होती हैं और ग़लतियाँ भी सब से होती हैं। हमें कमियाँ दूर करना आना चाहिए। यह तभी सम्भव होता है। जब हमें ग़लतियाँ स्वीकारना आ जाता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि कमियों और ग़लतियों के बिना हमारा व आपका अस्तित्व नहीं होता है और हम जो ग़लतियाँ अक्सर करते हैं, इनसे यदि सीख नहीं लेते तो इस सीख के बिना सद्भाव का अभाव बना रहता है। परंतु ज़ब सद्भाव बढ़ता है तो प्रेम- प्यार बढ़ता है और यह प्रेम ही है जो हमें निराश नहीं होने देता है। इसके विपरीत नफ़रत वो गुण है जो इंसान को कभी खिलने खिलखिलाने ही नहीं देता है।

हमें यह समझना चाहिये कि इंसान गलतियों का पुतला होता है, पर उसे सफलता तब मिलती है। जब वह समय पर गलतियों से सीख लेकर स्वयं में सुधार कर करना भी सीख लेता है। गलतियाँ सुधारने के लिए हमें उनका ज्ञान व आभास भी होना चाहिये और जब हमें कोई हमारी गलती बताये तो हमें उस पर पूरा ध्यान देना चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं। तो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने के बावजूद और  लोगों की नजरों में गिर जाते हैं और जीवन में हमसफ़र या सच्चे मित्र नहीं बना पाते हैं। हमें हमारे सच्चे मित्र, माता-पिता, परिजन और गुरुजन जीवन में सही कार्य करने को प्रेरित करते रहते हैं।

और हमारी गलतियों को बता कर

उन्हें दूर करने में सहायता ही करते हैं। यहाँ महत्वपूर्ण यह होता है कि हम उनकी बातों पर ध्यान देकर गलतियों से सीख लेते हैं और सीख लेकर अपने में आवश्यक सुधार करते हैं एवं चरित्र निर्माण करते हैं। उदाहरण स्वरूप जैसे परीक्षा देने कि अनुमति उन छात्रों को दी जाती है जिन्होंने वार्षिक परीक्षा से पहले की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किये होते हैं। जिनके अच्छे अंक नहीं आते हैं उन सब के सामने यह शर्त एक दीवार की भांति खड़ी हो जाती है। क्योंकि उनके प्राप्ताँक औसत अंक होते हैं। औसत अंक आने का कारण उनकी परीक्षाओं में की गयी गलतियाँ थीं और अध्यापक की गलतियाँ सुधारने की सलाह से उनके कान में जूँ नहीं रेंगी। यद्यपि शिक्षक को उनमें प्रतिभा दिखती है, जो विद्यार्थी पहले पास नहीं हुए थे उनके लिए विद्यालय की तरफ से फिर एक सुनहरा मौका दिया जाता है।

उन सब को मात्र एक निबंध लिखने की परीक्षा देनी होती है, इतना सुनते ही सभी विद्यार्थियों में ख़ुशी की लहर दौड़ जाती है । विद्यार्थी निबंध याद कर के आते हैं, खुश होते हैं कि उन्हें मात्र एक निबंध लिखना है, परीक्षा शुरू हुयी, समय खतम होने से पहले परीक्षा दे देते हैं और ख़ुशी- ख़ुशी घर चले गए, अगले दिन जब उन्हें जाँची हुयी उत्तर पुस्तिका दी गई। जिसे देख कर सबके चेहरे के रंग उड़ गए। जिसकी एक भी गलती थी वह फेल था, उसे एक और मौका देने की बात हुई, जो फेल हुये थे यह सुनते ही उन सबकी जान में जान आ गयी।

अगले दिन की परीक्षा का नतीजा

फिर वही रहा जो पिछली बार था,

तभी शिक्षक ने कहा कि आपको

एक और मौका दिया जाएगा ।

लेकिन ये अब अंतिम मौका होगा,

एक बार फिर से वही दोहराया गया

नतीजा फिर वही था, लेकिन कक्षा

के अध्यापक स्वयं मुस्कुरा रहे थे।

अध्यापक ने सबको पहले वाली

दोनों उत्तर पुस्तिकाएं देकर कहा,

तीनो उत्तर पुस्तिकाओं को मिलाओ

और देखो क्या क्या गलतियां हैं।

उस समय सबको आश्चर्य हुआ,

सबने तीसरी उत्तर पुस्तिका में भी

वही गलती की थी जो पहली दो उत्तर पुस्तिकाओं में की थी। सब इस बात पर पछता रहे थे, उन्हें पहली परीक्षा के बाद की अपनी गलती का ज्ञान क्यों नहीं हुआ और उन्होंने गलती क्यों नहीं सुधारी ।

जिन्दगी में इसी तरह हम कई बार

गलतियाँ करते रहते हैं उनको नजरअंदाज करते रहते हैं, वही गलती हमारी जिंदगी में सबसे बड़ी रुकावट बन जाती है और हम आगे नहीं बढ़ पाते हैं। ये गलतियाँ परेशानी को जन्म देती हैं और ये परेशानियाँ आगे चलकर बड़ी लगने लगती हैं और हम खुद को कमजोर पाने लगते हैं, और तब हम समझ पाते हैं कि अगर हमने पहले अपनी ये गलती सुधार ली होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता। जब यह कहकर शिक्षक ने कहा कि सभी वार्षिक परीक्षा दे सकते है।

सबने अच्छे से परीक्षा की तैयारी की

व पिछली गलतियों को सुधारा भी।

वार्षिक परीक्षा में सभी रिकॉर्ड तोड़े,

बस इसी तरह यदि हम गलतियों को

नजर अंदाज करते हैं तो हम कभी

सफलता प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

हमें हमेशा यह ध्यान रखना होगा कि सफलता सबको मिलती है यदि नहीं मिलती तो हमें अपनी ग़लतियों में आवश्यक सुधार करना होता है। क्योंकि भाग्य के आसरे से कुछ नहीं मिलता है। आइये हम निरंतर आत्मनिरीक्षण करना सीखें ताकि ग़लतियों को सुधार भी सकें और जीवन में प्रगति भी कर सकें।

 

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