कभी वक्त था कि हमें खाने का शौक़ था,
श्रीमती जी को खाना बनाने का शौक़ था,
हमारी फ़रमाइशों की लिस्ट लम्बी थी,
तो उनकी व्यंजनों की लिस्ट लम्बी थी।
अब तो खाने की लिस्ट कम हो गई है,
दाल, सब्ज़ी, दो रोटी ही बहुत होती हैं,
इससे ज़्यादा तो हज़म नहीं होता है,
बीपी, शुगर सब नियंत्रित रहता है।
जैसे जैसे बाल सफ़ेद होते जाते हैं,
दाँत बत्तीस के आधे ही रह जाते हैं,
आँखों की रोशनी कम होती जाती है,
जिह्वा हमारी सब स्वाद भूल जाती है।
खाने की लिस्ट की जगह बीमारियों की,
लिस्ट अब लम्बी से लम्बी होती जाती है,
भोजन बनाने की ताक़त भी उनकी,
अब तो दूसरों के सहारे ही रहती है।
वो दूसरा भी कोई बहुत अपना नहीं,
खाना बनाने व घर के काम के लिये,
देवियाँ आती हैं, उनका ही अब सहारा है,
उनकी लिस्ट में रोटी, दाल, सब्ज़ी ही है।
हम लोगों के बारे में पर ऐसा न सोचिये,
कि हमारे जैसे तो अब ओल्ड हो गये हैं,
‘आदित्य’ हम और हमारे जैसे लोग
अब तक तप तप कर गोल्ड हो गये हैं।