आखिर सीके ही क्यों? क्या बदल रही है मधेशी की राजनीति

रतन गुप्ता


भैरहवा/नेपाल । नेपाली राजनीति में महंत ठाकुर, राजेन्द्र महतो और उपेन्द्र यादव ये तीनों एक स्तम्भ के रुप में जाने जाते हैं। मधेश और मधेश का नाम लेकर राजनीति में इन्होंने अपना सिक्का जमाया। लेकिन जब बात आती है मधेश में काम की, विकास की यहाँ ये तीनों उतनी सफलता नहीं प्राप्त कर सकें। महंत ठाकुर ४ दशक से ज्यादा से राजनीति कर रहें हैं। उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा नेपाली कांग्रेस से शुरुआत की और बहुत दिनों तक उसी में रहें। ये वो वक्त था जब मधेश के लोग काठमांडू में जोर से बातें भी नहीं किया करते थे। मैथिली, हिन्दी में लोग धीरे–धीरे बातें करते थे कि कोई सुन न लें कि वो क्या बातें कर रहें हैं। लेकिन 62–63 के मधेश आंदोलन ने एक नई लहर ला दी, मधेश के लोग अपनी बातों को रखने लगे। पहाड़ में बसने वाले या काठमांडू से बैठकर मधेश को देखने वालों का नजरिया बदला। वो जानने लगे कि अब मधेश भी अपनी बात को रखेगा। और सच यही है कि उस वक्त चाहे महंत ठाकुर हो, राजेन्द्र महतो हो, या फिर उपेन्द्र यादव हो इन सभी ने अपनी अहम भूमिका का निर्वाह किया। ये सच है कि आज जो कुछ भी मधेश या मधेशियों को मिला है इन सबमें इन तीनों का रोल महत्वपूर्ण रहा।

हाँ आपने मधेश का मुद्दा उठाया। मधेश की समस्याओं से केन्द्र को रुबरु करवाया। मगर बाद में हाथ पर हाथ धड़कर बैठ गए। मधेश के मुद्दा को जब उन्होंने उठाया तब समाधान की ओर ले जाना भी उनका काम था। केन्द्र से कैसे समाधान हो इस बात की ओर ध्यान जाना जरुरी था क्योंकि जनता ने उन्हें इसलिए चुनकर भेजा था। लेकिन तबतक वो समझने लगे कि किस तरह राजनीति करके, जनता को धोखा में रखकर, हम अपनी राजनीति कर सकते हैं। वो कभी समाधान की ओर गए ही नहीं। अगर मंहत ठाकुर या राजेन्द्र महतो चुनाव जीत भी जाते हैं। तो वो करने के लिए कुछ नहीं कर पाऐंगे। सच्चाई तो ये है कि पार्टी को उनके सानिध्यता की जरुरत है, रास्ता दिखाने की जरुरत है न कि एक सीट लेकर बैठने की। अब आए कि इसबार के निर्वाचन में ऐसा क्या हुआ है जो ये तीनों की अवस्था डावाडोल है या फिर क्यों लोगों ने सीके राउत को आगे आने दिया। कारण स्पष्ट है हम परिवत्र्तन की ओर अग्रसर हैं, हम परिवत्र्तन चाहते हैं। विश्व परिवर्तन से अछूता नहीं है नेपाल और नेपाल की जनता। वो समय चला गया जब लोग आपकी बातें सुनते थे चाव से परिवत्र्तन के बारे में आपसे सुनते थे अब की जनता के हाथों में मोबाइल है। वो देश विदेश की सभी खबर रखता है। 70–80 वर्ष की उम्र में अगर आप ही सर्वेसर्वा रहेंगे तो दूसरे को अवसर कैसे मिलेगा? आपने बहुत कुछ दिया है।

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मधेश की जनता को लेकिन ये भी सच है कि जब जब अवसर मिला है आपने अपने किये का खामियाजा जनता को भुगतवाया है। आपने कुछ ऐसे लोगों को राजनीति में लाया जो स्वयं कुछ कर नहीं सकते दूसरे के हाथों की कठपुतली बनकर रह गए। तो ऐसे नेता या कार्यकर्ता का हम क्या करेंगे? ऐसा नहीं है कि सीके सबकी पसंद है। लोगों ने अभी भी सीके की कही बातों को याद रखा है। अपने राजनीति के पहले कदम पर जो बातें उन्होंने मधेश या नेपाल के लिए कहा था वो कोई भूला नहीं है। सच यह है कि जनता के पास सीके के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था , अगर विकल्प रहता तो शायद दूसरा आता। यानी स्पष्ट है कि जनता ने इसबार उन्हें बिल्कुल नहीं चुना है जो कभी कभार अपने क्षेत्र में जाते हैं। जनता किस पेशोपेश में जी रही है।

उससे कोई खास सरोकार नहीं रखा है। तो ऐसे में जनता क्यों आपको चुनेगी? अभी की अवस्था में इतना ही कहा जा सकता है कि पार्टी के प्रति के जनता में निराशा, नेता प्रति निराशा है। वो तलाश में है अच्छे विज्ञ की जो तराई को समझे। एक अहम भूमिका निर्वाह करें तराई को विकास की ओर ले जाने में । जनता का दुर्भाग्य है कि वो खाड़ी जाएगा ही कमाने के लिए। अगर अपनी जमीन पर सबकुछ मिले तो क्यों लोग अपने घर,परिवार और देश दुनिया को छोड़कर विदेशजाए कमाने के लिए । लेकिन यह भी याद रखे वे नेता जी कि अगर यही अवस्था आगे भी जारी रही तो जनता ने जिसे आज अपने सर आँखों पर बिठाया है, कल उसको आउट भी कर सकते हैं। अभी का युवा चाहता है कि बहस होनी चाहिए इस बात की अब आर्थिक रुप से मधेश को कैसे आगे बढ़ाया जाए , यहाँ के जो जल,जंगल जमीन है उसका सदुपयोग कैसे किया जाए? एक नीति के तहत सबकुछ हो वो जाति पाति , पार्टी के नाम पर वोट नहीं देगा। वो विकास मांगता है। वो देखता है कि मेरे क्षेत्र का विकास कौन कर सकता है ? अब आनेवाली सरकार कैसे क्या करती है ये तो आनेवाला समय ही बताएगा।

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