कविता : बकरी की तीन ही टाँग होती हैं

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

बकरी की तीन ही टाँग होती हैं,
ऐसा ही न्याय मिला है हमको,
आधा जीवन सेना सेवा की है,
पूर्व फ़ौजी नहीं कहा है हमको।

                                      सेना में भर्ती हुई थी भर्ती दफ़्तर से,
बेसिक ट्रेनिंग पूरी की थी सेंटर से,
पीटी, परेड डड्डु चाल चले रोज़ाना,
पासिंग आउट हुये थे तब सेंटर से ।

जेसी कैडर कर बने जेसीओ थे,
ओटीए ट्रेनिंग करने में कैडेट थे,
सारे टेस्ट एक्जाम पास किए थे,
तभी बने सेना के हम अफ़सर थे।

 

                                 सेवानिवृत्त साठ साल की उम्र में हुये,
आर्मी एक्ट, आर्मी रूल सब लागू थे,
सेना के अभ्यासों में और आपरेसन में
चौबीस घंटे तीसों दिन हम शामिल थे।

भारत की सेना जहाँ रही थी वर्दी में
हम भी उस वर्दी में ही लड़ने जाते थे,
सेना की सारी ड्यूटी हम करते थे,
सारे नियम क़ायदे हम पर लागू थे।

पार्चमेंट वारंट, कमीशन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से मिले हर एक प्रोमोशन में,
सारे मेडल और अवार्ड लगाये वर्दी में,
गजट निकाले गए भारत के राजपत्र में।

                                                        जब आयी बारी एक रैंक एक पेंशन की,
तो बोले आप नहीं थे सेना के अधिकारी,
एक रैंक, एक पेंशन आपको नहीं लागू है,
आप नहीं हैं पूर्व सैनिक या अधिकारी।

सेना बजट से नहीं मिलती तुमको पेंशन,
डाक विभाग बजट से लेते हो तुम पेंशन,
जैसे ये विभाग अपनी कोई बैंक बनाये हों,
भारत सरकार से जैसे ये अलग तंत्र हों।

सबसे बड़े न्यायालय ने भी यही कह
दिया “क़ानून अंधा है” के निर्णय में,
आदित्य बकरी के तीन टाँग होती हैं,
सर्वोच्च अदालत ने कहा निर्णय में।

 

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