कविता : हमारी वंदना करुण हस्त उठता तुम्हारा
मैं कैसे कहूँ प्रभु कि मैं हूँ तुम्हारा, बिना बात की बात का है सहारा, दिन रात स्मरण करता हूँ तुम्हारा, दिन रात जपता हूँ नाम मैं तुम्हारा। शपथ की शपथ हूँ तुम्हें प्रेम करता, सदा मैं तुम्हीं को ध्यान में हूँ धरता, साँसे तुम्हारी दी हुई, हैं मेरी अमानत, शरण में तुम्हारी प्रभु मिलती … Continue reading कविता : हमारी वंदना करुण हस्त उठता तुम्हारा
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