भगवान शिव का रौद्र रूप काल भैरव: इनके भक्तों का अहित करने वालों को कहीं शरण नहीं,

जयपुर से राजेंद्र गुप्त


हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण की अष्टमी तिथि को कालभैरव जयंती मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था। धार्मिक ग्रंथों में काल भैरव भगवान को शिव जी का रौद्र स्वरूप बताया गया है। भक्तों के लिए काल भैरव दयालु, कल्याण करने वाले और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले देव माने जाते हैं। लेकिन अनैतिक कार्य करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं। काल भैरव जयंती के दिन भगवान काल भैरव जी की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है।

काल भैरव जयंती की तिथि व मुहूर्त,

काल भैरव जयंती- मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि बुधवार, 16 नवंबर 2022

अष्टमी तिथि आरंभ- बुधवार 16 नवंबर 2022, सुबह 05 बजकर 49 मिनट पर

अष्टमी तिथि का समापन- गुरुवार 17 नवंबर 2022, सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक

भगवान काल भैरव की पूजन विधि,

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण की अष्टमी तिथि को प्रातः स्नान आदि करने के पश्चात व्रत का संकल्प लें।

काल भैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है।

इस दिन शाम को किसी मंदिर में जाएं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं।

अब फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि चीजें अर्पित करें।

फिर वहीं आसन पर बैठकर कालभैरव भगवान का चालीसा पढ़ें।

पूजन पूर्ण होने के बाद आरती करें और जानें-अनजाने हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे।

ब्रह्म योग में है काल भैरव जयंती, पूजा का मुहूर्त और महत्व

 

काल भैरव जयंती का महत्व,

धार्मिक मान्यता है कि भगवान काल भैरव की पूजा करने से भय से मुक्ति प्राप्त होती है। कहते हैं कि अच्छे कर्म करने वालों पर काल भैरव मेहरबान रहते हैं, लेकिन जो अनैतिक कार्य करता है वह उनके प्रकोप से बच नहीं पाता है। साथ ही कहा जाता है कि जो भी भगवान भैरव के भक्तों का अहित करता है उसे तीनो लोक में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है।

इन उपायों से प्रसन्न होंगे काल भैरव,

शास्त्रों में काल भैरव का वाहन कुत्ता माना गया है। कहा जाता है कि यदि काल भैरव को प्रसन्न करना है, तो इनकी जयंती के दिन काले कुत्ते को भोजन खिलाना चाहिए। वहीं जो इस दिन मध्यरात्रि में चौमुखी दीपक लगाकर भैरव चालीसा का पाठ करता है, उसके जीवन में राहु के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।

कैसे हुई बाबा भैरव की उत्पत्ति

काल भैरव की उत्पत्ति की पुराणों में काफी रोचक कथा है। बताया गया है कि एक बार श्रीहरि विष्णु और भगवान ब्रह्मा में इस बात को लेकर बहस हो गई, कि सर्वश्रेष्ठ कौन है। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया, कि दोनों युद्ध करने को उतारू हो गए। इसके बीच में बाकी सभी देवताओं ने बीच में आकर वेदों से इसका उत्तर जानने का निर्णय लिया। जब वेदों से इसका उत्तर पूछा, तो उत्तर मिला कि जिसमें चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान सबकुछ समाया हुआ है, वहीं इस जगह में सर्वश्रेष्ठ हैं। इसका सीधा अर्थ था कि भगवान शिव सबसे श्रेष्ठ हैं। श्रीहरि विष्णु वेदों की इस बात से सहमत हो गए, लेकिन ब्रह्मा जी इस बात से नाखुश हो गए। उन्होंने आवेश में आकर भगवान शिव के बारे में बहुत बुरा भला कह दिया।

ब्रह्माजी के इस दुर्व्यवहार को कारण शिवजी क्रोधित हो उठे, तभी उनकी दिव्य़ शक्ति से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, और भगवान शिव को लेकर अपमान जनक शब्द कहने पर दिव्य शक्ति से संपन्न काल भैरव ने अपने बाएं हाथ की छोटी अंगुली से ही ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया। फिर भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ से क्षमा मांगी, जिस पर भोलेनाथ ने उन्हें क्षमा कर दिया। हालांकि, ब्रह्मा जी के पांचवें सिर की हत्या का पाप भैरव पर चढ़ चुका था। तभी भगवान शिव ने उन्हें काशी भेज दिया, जहां उन्हें हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। इसके बाद बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया गया। आज भी बाबा काल भैरव की पूजा काशी में नगर कोतवाल के रूप में होती है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन काशी के कोतवाल बाबा भैरव के बिना अधूरे हैं।


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