कविता : अंतिम साँसे जीवन ढलने तक निर्बाध रूप से लेने दो

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

वरिष्ठ नागरिक बनना कितना
हानिकारक होता है भारत में,
अयोग्य होते जीवन बीमा के लिये,
ड्राइविंग लाइसेन्स पाने के लिए।

बैंक ऋण उनको कोई नहीं देता,
नौकरी से सेवानिवृत हो जाते हैं,
शारीरिक क्षमता घटने लगती, दिन
प्रतिदिन औरों पर निर्भर हो जाते हैं।

सारे सरकारी, ग़ैर सरकारी टैक्स
बिना छूट के उनको भी देने पड़ते हैं,
ज़िन्दा रहने के लिये उन्हें हर पल हर
प्रकार से पैसों पर पैसे देने पड़ते हैं।

कविता : हवा हवायें हैं, सब हवा हवायें हैं

  बुजुर्गों को विकसित, विकास शील
देशों में पेंशन का प्रावधान होता है,
भारत के सभी बुजुर्गों को यह पेंशन
सुविधा भी बहुत ही न्यायोचित है।

हमारी सरकार बिना ज़रूरत के कैसे
कैसे अनुदान देश में बाँटती रहती है,
पर अस्सी नब्बे के बूढ़ों से भी मामूली
सी आय पर सारे कर वसूलती है ।

 उनके बचत बैंक खाते में जमा राशि
का व्याज घटाकर अन्याय नहीं करो,
सावधि जमा राशि पर कुछ ज़्यादा दे
कर उनकी आजीविका तो चलने दो।

आजीवन देश की सेवा हर क्षेत्र में
की है हम सभी वरिष्ठ नागरिकों ने,
आदित्य हमें अंतिम साँसें तो जीवन
ढलने तक निर्बाध रुप से लेने दो ।

 

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