अंग्रेजों की चूले हिलाने वाले पहले नेता थे तिलकः डॉ. चतुर्वेदी
शिक्षा ही कर सकती है भविष्य का निर्माणः प्रो. चौधरी
नया लुक संवाददाता
लखनऊ। भारत माता के अमर सपूत लोकमान्य तिलक ने जैसे ही घोषणा की कि ‘स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, इसे हम लेकर रहेंगे’ उसी समय ब्रिटिश साम्राज्य की चूलें हिल गईं थीं। उसी समय भारतीयों ने ठान लिया था कि हम किसी भी कीमत पर स्वतंत्रता लेकर ही दम लेंगे। जिन्हें इतिहास गरम दल कहकर सम्बोधित करता है, वह कोई और नहीं भारत के राष्ट्रवादी लोग थे और भारत का राष्ट्रवाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से प्रारम्भ होता है। उक्त बातें यूपी स्टेट काउन्सिल ऑफ हायर एजूकेशन के वाइस चेयरमैन डॉ. मुकुल चतुर्वेदी ने कही। डॉ. चतुर्वेदी शुक्रवार (11नवम्बर 2022) को राजधानी लखनऊ के मशहूर कालीचरण पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में ‘भारतीय राष्ट्रीयता के उत्थान में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की भूमिका’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि वो तिलक ही थे, जिन्होंने कहा कि भारतीयों के लिए ब्रिटिश शिक्षा काफी नहीं है, इसलिए उन्होंने डेक्कन एजुकेशनल सोसायटी शुरू की। वो मॉडर्न कॉलेज एजुकेशन पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में शामिल थे और ब्रिटिश शिक्षा पद्धति का उन्होंने विरोध किया।
वहीं मुख्य वक्ता के रूप में बाबा भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (BBAU) से पधारीं प्रो.प्रीति चौधरी ने कहा कि बाल गंगाधर तिलक भारत को एक आदर्श गरिमायुक्त राष्ट्र के रूप में निर्मित करना चाहते थे, जो युवाओं के चरित्र निर्माण के बिना सम्भव नहीं था। उनकी सोच थी कि उधार शिक्षा से चरित्र का निर्माण नहीं किया जा सकता। तब शिक्षा में सुधार बिना स्वतंत्रता के सम्भव नहीं था, इसलिए पहले हमें स्वतंत्रता प्राप्त करनी होगी, उसके बाद हम अपने देश का सर्वांगीण विकास स्वयं कर लेंगे।
विशिष्ट वक्ता के रूप में शिरकत कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. उमाशंकर सिंह ने भारतीय राष्ट्रीयता के उत्थान में तिलक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि तिलक की विरासत का पूर्ण अवतरण क्रान्तिकारियों में दिखाई देता है, जब देश 1947 में आजाद हुआ तो उसके मूल में कहीं न कहीं तिलक ही विद्यमान थे।
अवध गर्ल्स डिग्री कॉलेज लखनऊ की प्राचार्य डॉ. बीना राय ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीयता की भावना का जागरण राष्ट्रभाषा और जन-जागरण के बिना सम्भव नहीं था, इसलिए तिलक ने देवनागरी लिपि को अपनाने तथा हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने का प्रबल समर्थन किया और जनजागरण के लिए गणेशोत्सव का प्रारम्भ किया।
महाविद्यालय के प्रबंधक इं. वीके मिश्र ने भारत के 12 राज्यों से पधारे हुए विद्वानों का स्वागत करते हुए उनका आभार व्यक्त किया तथा कार्यक्रम के मुख्य विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिस आंदोलन की अलख लोकमान्य तिलक ने जगाई थी उसे गांधीजी ने जीवित रखा और स्वदेशी आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि के मूल में कहीं न कहीं तिलक से गांधी जी प्रेरित हो रहे थे।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. चन्द्रमोहन उपाध्याय ने कहा कि देश में राजाराम मोहन राय और दयानन्द सरस्वती के रूप में जो दो धाराएं चलीं उन्हीं का मिलन बाल गंगाधर तिलक के रूप में हमें देखने को मिलता है। गोपालकृष्ण गोखले के कहने पर गांधीजी भारत भ्रमण पर निकले थे, लेकिन उसके पहले यह कार्य लोकमान्य तिलक कर चुके थे। वह देश ही नहीं विदेशों के भ्रमण की भी बात करते थे, जिससे अपने राष्ट्र को नई दिशा प्रदान की जा सके।
कार्यक्रम में प्रबंध समिति के पूर्व प्रति कुलपति प्रो. एमपी सिंह, विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये हुए विद्वानों ने अपने विचार रखे, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में तिलक की भूमिका को समझने में सहायता मिली। इस अवसर पर विभिन्न महाविद्यालयों से पधारे प्राचार्यों ने सहभागिता की तथा संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही अकादमिक सत्र में शोधार्थियों द्वारा अपने शोध पत्रों का वाचन किया गया। वहीं राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन 12 नवम्बर को विभिन्न अकादमिक और समापन सत्र का आयोजन किया जायेगा जिसमें अनेक विद्वानों के सारगर्भित विचारों से शोधार्थी और विद्यार्थी लाभान्वित होंगे। उक्त कार्यक्रम में महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापकगण, विद्यार्थी एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
कौन थे बाल गंगाधर तिलक
23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक गांव चिखली में जन्में तिलक का नाम केशव गंगाधर तिलक था। वो अपने पिता के नक्शे कदम पर चले और पुणे में एक स्कूल टीचर बने। स्कूल प्रशासन से मतभेद के चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी और खुद का स्कूल शुरू किया। वो शिक्षक थे। पत्रकार थे और वकील भी थे। उन्होंने दो अखबार भी शुरू किए। अपने लेखों की वजह से कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 34 साल की वय में यानी 1890 में वह इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हुए और देश को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई।