काँटे से काँटा खुद ही निकालना पड़ता है,
स्वर्ग जाने के लिये खुद ही मरना पड़ता है।
दुखों से जूझकर ही सुख मिलता है,
तिमिर बीत जाने पर प्रकाश होता है।
विगत निशा, तो अरुणोदय होता है,
जन्म तो मृत्यु, और पुनर्जन्म होता है।
मनुष्य जीवन सचमुच अनमोल होता है,
लाखों योनियाँ भटक कर प्राप्त होता है।
अभिमान का पाखंड खंड खंड कर,
मान सम्मान स्वाभिमान मिलता है।
ग़ुरूर का ज्ञान होने पर इंसान बनता,
इंसान, इंसान बन फ़रिश्ता बनता है।
घृणा द्वेष मिटने पर स्नेह पनपता है,
सत्य अहिंसा पर चल गाँधी बनता है।
हिंसा त्याग कर अशोक महान बनता है,
माया मोह त्याग कर गौतम बुद्ध बनता है।
‘आदित्य’ आज युग का तकाजा है,
मानव के लिये मानव जगाये जज़्बा है।
काँटे से काँटा खुद ही निकालना पड़ता है,
स्वर्ग जाने के लिये खुद ही मरना पड़ता है।