- दीपावली के पूर्व सफाई
- समुद्र मंथन मे चौदह रत्न मिले
- २२को धन तेरस,23को धन्वंतरि जयंती,24 को दीपावली
- अमृत कलश लेकर निकले धन्वंतरि
- महालक्ष्मी और गणेश की होगी पूजा
बीकेमणि
हमारे भीतर का समस्त कालुष्य धुल जाय,षट् विकारों की सफाई हो जाय तब तो दीवाली मनेगी। देवताओं और दैत्यों ने मिल कर मंदराचल पर्वत को मथानी बनाकर,नाग बासुकी की रस्सी बनाकर खारे समुद्र का मंथन किया, समुद्रमंथन मे चौदह रत्न निकले। अपने भीतर बुराईयां असुर रूप मे और अच्छाईयां देवता रूप मे विद्यमान हैं। मंथन होगा तो रत्न निकलेंगे। धन तेरस को धन्वंतरि निकले,दीपावली को महालक्ष्मी निकलीं… ऐसा सुना है। विजय दशमी को हलाहल विष निकला होगा,तभी नीलकंठ का उस दिन दर्शन करते हैं। विजय दशमी से 21दिन बाद दीवाली आती है।
यह इक्कीस दिन मंथन ही होता रहा…बारी बारी से चौदह रत्न निकले। जिसमे रंभा अप्सरा भी थी,आज रंभा एकादशी है। कामधेनु गौ निकली,द्वादशी को गोवत्स द्वादशी भी तो है। ये रत्न निकलते गए बंटवारा होता गया। दैत्यों को अमृत की तलब थी,अत: सारा वितरण वर्दाश्त करते गए। हलाहल विष,कामधेनु, पारिजात, वारुणि, कल्पवृक्ष, ऐरावत हाथी, उच्चै:श्रवा घोड़ा,कौस्तुभ मणि ,शंख,चंद्रमा,लक्ष्मी, रंभा, अमृत सभी तो निकले। धनतेरस को धन्वंतरि निकले जो आदि वैद्यराज थे। अमृत कलश लेकर निकलने पर भागा दौड़ी मच गई। छीना झपटी मे जहां जहां बूंदें गिरीं कुंभ पर्व मनाना शुरु हुआ।
जहां रखा गया.. दूर्बा उत्पन्न हुई। मोहिनी रूप लेकर श्रीहरि ने अमृत बांटा। दैत्य मदिरा पाये और देवता अमृत। चालाक स्वरभानु सूर्य और चंद्र के बीच बैठ कर अमृत पीलिया। श्रीविष्णु ने गर्दन काटदी.. सिर का हिस्सा राहु धड़ का हिस्सा केतु कहलाया। पौराणिक कथानक बहुत कुछ सीख देजाते हैं। महालक्ष्मी को सागर ने श्री हरि को अर्पित किया। यह भी बताया जाता है कि लक्ष्मी जी को कोई संतान नहीं थी,सो पार्वती पुत्र गणेश को उन्होंने गोद लेलिया। दीपावली मे गणेश और लक्ष्मी की पूजा इसीलिए होती है। ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी गणेश आदिदे्व और विघ्नहर्ता हुए। दीपावली पर्व पर आप सबकी विघ्न वाधाएं दूर हों और सभी को लक्ष्मी की कृपा मिले। यही शुभकामना है।