
शाम ढलते ही मुख्यालय के एसी वाले रुम में टहरते है डाक्टर साहब
सामान्य बीमारी में भी रेफर किया जाता है मरीज़
पट्टी। लाखों की लागत और करोड़ों की लागत से बनने वाली ग्रामीण क्षेत्रों की अस्पतालों के बने आवासों में नहीं रुकते डॉक्टर साहब सामुदायिक स्वास्थ केंद्र बाबा बेलखरनाथ धाम अस्पताल इस दौरान मेडिकल अफसरों की लापरवाही और रात में रुकने को लेकर सोशल मीडिया पर खबरें लगातार वायरल हो रही हैं जिसमें स्वास्थ्य मंत्री ने मामले को संज्ञान लेते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी को 1 सप्ताह में रिपोर्ट देने का आदेश तो दे दिया है लेकिन सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार तेजतर्रार स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक के लगातार दौरे और निरीक्षण के बाद भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेलखरनाथ के मेडिकल अफसरों और डाक्टरों के ऊपर रंच मात्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। सरकारी आवास एलाटमेंट है इसके बावजूद भी यहां रुकने के लिए कोई भी मेडिकल अफसर रुकने को तैयार नहीं है। सारी सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से शाम चार बजे के बाद परिसर तथा अस्पताल में सन्नाटा छा जाता है।
दो मेडिकल अफसर इरफान अली डाक्टर सुधांशु पांडे महीने सालों से लापता है। शोसल हकीकत वायरल होने के बाद 1 दिन समय से पहुंचे हैं मात्र 2 डॉक्टर अभी भी लापरवाही का आलम यह है कि बेशर्मी की भी एक हद होती है लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल अफसर इस कदर बेशर्म हो चुके हैं उन्हें प्रशासन और शासन का भय और डर नहीं है। रात में फार्मासिस्ट और दंत चिकित्सक के भरोसे मरीज सामान्य बीमारी में भी उसे मेडिकल कॉलेज जिला मुख्यालय रिफर कर दिया जाता है। सबसे बड़ी समस्या यहां यह है कि मरीजों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और भेदभाव करना इन लोगों की फितरत में शामिल हो गया है। सच तो यह है कि अस्पताल मैं मरीजों का इलाज कम और राजनीति का अड्डा अधिक हो गया है।
बाबा बेलखरनाथ धाम के लोगों को सरकारी अस्पताल बनने से स्वास्थ्य सुविधाएं इमरजेंसी में मौजूद मिलेंगी लेकिन यहां तो डॉक्टर साहब रुकने को तैयार ही नहीं है। विभाग के जिम्मेदार अधिकारी धन उगाही में मस्त होकर ऐसे लापरवाह डॉक्टरों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें बचाने में जुटे रहते हैं मुख्य शिक्षा अधिकारी कार्यालय के कुछ तथाकथित बाबुओं के इशारे पर यह मेडिकल अफसर महीने की लाखों रुपए पगार लेकर एसी वाले कमरे में आराम फरमा रहे हैं। और पीड़ित मरीज दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। अब सवाल यह उठता है कि इन दो लापरवाह मेडिकल अफसरों के खिलाफ आखिर कार्रवाई कब होगी या उसी तरह से ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के साथ भेदभाव और शोषण होता रहेगा।