संस्कृति के इन्हीं पुराधाओं की बदौलत लाख झंझावतों के बाद भी बच पाया सनातन

  • 132 बरसों से हो रही रामलीला से मिल रहा प्रमाण कि धर्म बचाने में रहा योगदान
  • यहाँ से निकले तो देश-विदेश में लहरा रहे हैं अपने जीत का परचम, बड़े पदों तक पहुंचे
  • कभी मुग़लों, कभी हूणों तो कभी अंग्रेजों के आक्रमण से आहत होता रहा हिंदू धर्म

कुलदीप मिश्रा/आशीष दूबे


लखनऊ। सनातन पर लगातार वार होता रहा। सैकड़ों बरसों तक इस धर्म को आताताइयों ने आहत किया। फ़ारसी हों या यहूदी, इस्लामिक हों या फिर ईसाई। हूण हों या मुग़ल। लेकिन ज़माने की मार सदियों से झेलने के बावजूद यदि सनातन ज़िंदा है या फिर उसके अनुयायी हैं, तो इसके पीछे हमारे ग्रामीण परिवेश का बड़ा योगदान माना जा सकता है। कुछ इसी तरह का एक उदाहरण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह ज़िले गोरखपुर से सटे कुशीनगर ज़िले के कसया विकासखंड के मठिया-माधोपुर की रामलीला है। सांस्कृतिक विरासत की अनोखी लौ जलाने वाले इस कार्यक्रम में न जात-पात की विडम्बना है और न ही संप्रदाय का भेदभाव। ऐसा नहीं है कि यहाँ रामलीला करने वाले अनपढ़ हैं, निरक्षर हैं या फिर बेरोज़गार। कोई मल्टीनेशनल कम्पनी में लाखों के पैकेज पर है तो कोई मसूरी एकेडमी में नवप्रशिक्षु आईएएस अफ़सरों को ट्रेनिंग देता है। यहाँ गाँव के लोग ही दर्शक हैं तो ग्रामीण परिवेश वाले ही राम, लक्ष्मण, हनुमान और रावण के रोल करते हैं।

श्री रामलीला एवं मेला न्यास के प्रबंधक रामानंद वर्मा के अनुसार हनुमान चबूतरा बनने के बाद इस स्थान पर कार्तिक मास की पंचमी को रामचरितमानस पाठ का आयोजन 1839 में शुरू हुआ था। साल 1840 में ग्रामीण कलाकारों ने भोजपुरी में रामलीला का मंचन शुरू किया था। शायद लोगों को खड़ी बोली और हिन्दी में न बोल पाना इसकी मुख्य वजह थी। मेला समिति के अध्यक्ष बताते हैं कि दीपावली महापर्व के पहले होने वाले श्रीराम तिलक उत्सव से पूर्व श्रीराम रथ भ्रमण होता है। आसपास के आधा दर्जन गांवों में श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और वीर हनुमान से सजा रथ भ्रमण करता है। य़ह अलौकिक भ्रमण दृश्य भगवान श्रीराम के श्रीलंका से वापस श्री अयोध्या जी लौटने और छोटे भाई भरत से मिलन के पूर्व का होता है। इस दौरान लोग मूर्ति बने कलाकारों के दाहिने पैर के अंगूठे को धुल कर चरणामृत लेते हैं।

उस जल को अपने घरों में छिड़ककर पवित्र करते हैं। खुद के माथे पर भी लगाते हैं। इसके बाद गांव में बने श्री हनुमत चबूतरे (गांव में इसे गद्दी कहते हैं) पर भगवान श्रीराम का राजतिलक होता है। इस दिन खुशी का माहौल होता है तथा सभी प्रसाद ग्रहण करते हैं। फिर, इसी के साथ श्रीरामलीला का समापन होता है। साथ ही मेले के दूसरे दिन कुश्ती का आयोजन होता है। इससे स्थानीय पहलवानों को भी मौका मिलता है। पहले दिन रावण दहन होता है। स्थानीय दुकानदार आते हैं। रात में नाट्य मंचन होता है। य़ह लोगों के मनोरंजन के लिए श्रीराम लीला की परम्परा के साथ ही शुरू हुआ। दिन भर घर-गृहस्थी और खेतों में काम निपटाने के बाद खाली हुई महिलाएं भी भारी संख्या में होती है। इनकी सुरक्षा का प्रबंध स्थानीय पुलिस तो करती ही है, न्यास के कार्यकर्ताओं पर भी इसकी जिम्मेदारी होती है और लगातार भ्रमणशील रहते हैं।

अयोध्या मिश्र की अगुवाई में हुई थी रामलीला की शुरूआत

वहीं डॉ. इंद्रजीत मिश्र के अनुसार अयोध्या में रामलीला देख गांव लौटे पंडित अयोध्या मिश्र की अगुवाई में माधोपुर की रामलीला की शुरूआत हुई। वर्ष 1908 के आस-पास इसे हिन्दी में कराने का प्रयास शुरू किया। पहली बार खड़ी बोली का प्रयोग गांव के अनपढ़ कलाकार ताड़का बनने वाले ठगई राय ने ‘मार डालेगी, काट डालेगी’ के डायलॉग से किया था। समय के साथ अब पूरा परिवर्तन हो गया। लोग अब हिंदी में ही रोल निभा रहे हैं।स्थानीय सरोज कान्त मिश्र के अनुसार यह रामलीला आजादी के पहले से होती रही है। इस आयोजन से आस-पास के लोगों को जोड़ा गया। वह बताते हैं कि लोगों में देश प्रेम की भावना को जगाए रखने में इस रामलीला की बहुत बड़ी भूमिका रही।

पहले करते थे रामलीला का मंचन अब हो गए बड़े ओहदेदार
                                                                     पहले करते थे रामलीला का मंचन अब हो गए बड़े ओहदेदार

 

मेला न्यास के मंत्री पयोद कांत कहते हैं कि यहां की रामलीला में वर्ष 80 के दशक तक श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के अलावा माता सीता और हनुमान की भूमिका निभाने वाले कलाकार केवल ब्राह्मण ही होते थे। लेकिन रामलीला समिति के तत्कालीन अध्यक्ष मनोज कांत मिश्र, मंत्री नंदलाल शर्मा, कोषाध्यक्ष श्रवण कुमार वर्मा और यहां के हनुमान कहे जाने वाले अवध नारायण दूबे आदि के प्रयासों से य़ह मिथक टूटा। अब मंचन में हर जाति व वर्ग के युवा, बुजुर्ग और महिलाओं की भागीदारी रहती है। राम-सीता विवाह में गांव की महिलाओं की भागीदारी मंगलगीत गायन के रूप में आज भी हो रहा है।

रामलीला से निकले तो देश-विदेश में लहराया परचम

श्रीरामलीला एवं मेला न्यास के अध्यक्ष आमोद कांत बताते हैं कि यहां की रामलीला के कलाकार केवल मंच तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि यहां से मिली सीख ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। उनकी प्रतिभा को निखारा और उन्होंने अपना परचम विदेशों में भी लहराया। मठिया-माधोपुर के वरिष्ठ पत्रकार आमोदकांत मिश्र बताते हैं कि गाँव के आदित्य शर्मा, बचपन में राम बनते थे। अभी 28 लाख सालाना पैकेज पर एक प्राइवेट कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। वहीं डॉ पुनीत द्विवेदी रामलीला में लक्ष्मण का रोल अदा करते थे।

Dr अमित द्विवेदी मसूरी में प्रशिक्षण आईएएस अफसरों को ट्रेनिंग देते हुए
                                                           Dr अमित द्विवेदी मसूरी में प्रशिक्षण आईएएस अफसरों को ट्रेनिंग देते हुए

 

अभी प्राइवेट सेक्टर में ग्रुप डायरेक्टर हैं और सालाना 40 लाख का पैकेज है। इनके नाम कई विश्व रिकार्ड दर्ज हैं। इनके अलावा डॉ अमित कुमार द्विवेदी EDII अहमदाबाद में प्रोग्राम डायरेक्टर हैं। स्टार्टअप इन्हीं की देन है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही इन्होंने मसूरी में IAS के चयनित अभ्यर्थियों को उद्यमिता का पाठ पढ़ाया है। अफगानिस्तान के वित्त मंत्रालय के अफसरों को वित्त संयोजन का पाठ भी पढ़ाया चुके हैं। रामलीला में अग्रणी भूमिका निभाने वाले देश-दुनिया के प्रतिष्ठित पदों पर हैं। नंदलाल शर्मा का कहना है कि यहां की रामलीला में अग्रणी भूमिका निभाने वाले इस व़क्त देश-दुनिया के प्रतिष्ठित पदों पर हैं।

कोई रक्षा अनुसंधान संगठन (DRDO) में डायरेक्टर (पर्सनल) है तो कोई भारतीय उद्यमिता संस्थान जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में प्रोग्राम डायरेक्टर है। डॉ संजय द्विवेदी, श्रीरामलीला का निर्देशन करते थे, अब वह DRDO में निदेशक पर्सनल के पद पर कार्यरत हैं। राम की भूमिका निभाने वाले डॉ. अमित द्विवेदी भारतीय उद्यमिता संस्थान (EDI) अहमदाबाद में प्रोग्राम डायरेक्टर हैं। बाद की पीढ़ियों में राम की अलावा अन्य भूमिकाओं को निभा चुके आदित्य शर्मा भी 28 लाख के सालाना पैकेज पर एक प्राइवेट कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। राजा दशरथ की जीवंत भूमिका निभा चुके मनोजकांत को तो ऐसी प्रेरणा मिली कि वे RSS के प्रचारक निकल गए और अभी वह राष्ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक हैं। इस पत्रिका का संपादन कभी कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी किया करते थे। रामलीला में राम की भूमिका निभाने वाले शिवकुमार सिंह भौतिकी से वैज्ञानिक हैं और ब्राजील में कार्यरत हैं, इससे पहले जापान में थे। लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले डॉ. पुनीत द्विवेदी ने 2016 मे जेनेरिक मानव कैप्सूल का रिकार्ड बनाया था। इनके नाम दर्ज भर से अधिक विश्व रिकार्ड गिनीज बुक में दर्ज हैं। यह इंदौर में स्वच्छता के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं। अभी ये 40 लाख सालाना के पैकेज पर एक प्राइवेट कंपनी के ग्रुप डायरेक्टर हैं।

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