डिप्टी सीएम केसव प्रसाद मौर्य से शिकायत के बाद कॉलेज से भी दुत्कार कर भगाया, स्वास्थ्य कर्मियों ने प्राचार्य का किया घेराव, चुनाव में भाजपा का हो सकता है नुकसान
अजीत तिवारी
प्रतापगढ़। योगी सरकार में स्वास्थ्य विभाग के अफसर मनमानी पर उतारू हो गए हैं। अपने ही कर्मचारियों से छह माह तक काम लिये। अब मानदेय देने की बारी आई तो दुत्कार कर विभाग से बाहर का रास्त दिखाया जा रहा है। जबकि बीते पांच साल से कर्मचारी उसी अस्पताल में काम करते चले आ रहे हैं। नाराज कर्मचारियों ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य से भी शिकायत किए थे। इससे मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और खफा हो गए। डॉ. सोने लाल पटेल मेडिकल कॉलेज से संबद्ध राजा प्रताप बहादुर चिकित्सालय में सेवा प्रदाता रामा और अवनी के 48 कर्मचारी अपनी सेवा जिला अस्पताल में बीते पांच साल से दे रहे हैं। उच्चीकृत कर मेडिकल कॉलेज बनाए जाने के बाद इन्हीं कर्मचारियों से मेडिकल कॉलेज में भी काम लिया जा रहा था। बीते छह माह से मानदेय नहीं दिया गया। इतना ही नहीं यहां के असिस्टेंट प्रोफेसर राहुल सैनी ने बुधवार को कर्मचारियों को दुत्कार कर कॉलेज कैंपस से बाहर निकाल दिया था।
शुक्रवार दोपहर अस्पताल पहुंचे प्राचार्य डॉक्टर आर्यदेश दीपक का कर्मचारियों ने घेराव किया। छह माह के रुके हुए मानदेय का मांग किया। बगैर किसी शासनादेश के विभाग से बाहर का रास्ता दिखाए जाने को लेकर नारेबाजी की। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि दूसरी एजेंसी में चयन के नाम पर पैसा लिया जा रहा है। प्राचार्य और उनके कुछ सहयोगी मिलकर रामा और अवनी के कर्मचारियों को दूसरी एजेंसी में ज्वाइन कराने का प्रयास कर रहे हैं। इलेक्ट्रिशियन अजय ने बताया कि प्राचार्य ने 30 जुलाई को लिखित में सभी कर्मचारियों की अस्पताल से ड्यूटी हटाकर कॉलेज में लगा दिया। अब कॉलेज तो दूर अस्पताल में काम करने का पैसा देने से हाथ खड़ा कर रहे हैं।
प्राचार्य डॉक्टर आर्यदेश दीपक से बात किया गया तो उन्होंने कहा कि वे बीते मार्च में ही अवनी और सेवा प्रदाता एजेंसी रामा को पत्र भेजकर अपने कर्मचारियों को गरुणा एजेंसी में समायोजित करने के लिए कहा गया था। मगर दोनों एजेंसी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। इस लिए इन कर्मचारियों को मानदेय नहीं दिया जा सकता है। प्राचार्य आर्यदेश दीपक ने कहा कि जब समायोजन किया जा रहा था तो कर्मचारी तैयार नहीं थे। अब पद फुल हो गया है। फिर भी खाली पड़े पद पर समायोजन करने के लिए तैयार हूं। मगर कर्मचारी जिद पर अड़े हैं कि जिस पद पर वे काम कर रहे हैं उसी पद पर उनकी तैनाती होनी चाहिए। जबकि वह पद मेडिकल कॉलेज में स्वीकृत ही नहीं है।