हर मर्ज़ की दवा है लाल चींटियों की चटनी,

इस चटनी में है वह सब कुछ जो आपके बेहतर स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है,


रंजन कुमार सिंह


लाल चींटियों की चटनी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के लोगों का एक लोकप्रिय व्यंजन है। जंगलों में रहने वाले माडिया जनजाति के लोग अपने खाने में खट्टेपन का स्वाद लाने के लिए चींटियों की चटनी खाते हैं। इस चटनी को मछली, तरी वाली सब्ज़ियों, अंबादी (हरे पत्तों वाली सब्ज़ी) के साथ खाया जाता है।

फ़ॉलिक एसिड की बहुत मात्रा होने के कारण यह चटनी बहुत ही गर्म होती है। इसे प्रोटीन का भी एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है। चटनी बनाने के लिए माडिया जनजाति के लोग अक्सर इन चींटियों को घर की छतों पर कड़ी धूप में सुखाते हैं। धूप में सुखाने से इसे कई महीनों तक संरक्षित रखने में मदद मिलती है। इससे वे ज़रूरत के अनुसार महीनों तक अपने खाने में इस्तेमाल करते हैं। लेकिन चटनी के लिए चींटियाँ पकड़ना बहुत कठिन काम है। माडिया जनजाति के पुरुषों को चींटियों के घोंसलों को पकड़ने के लिए घने जंगलों में अंदर बहुत दूर तक चलकर जाना पड़ता है। माडिया जनजाति के एक आदमी ने हमें बताया कि “लाल चींटियाँ आमतौर पर पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर होती हैं।

इनके घोंसलों को पकड़ने के लिए दो लोगों की ज़रूरत होती है। घोंसले वाली डाल को काटने के लिए हमें पेड़ पर चढ़ना पड़ता है। इससे पहले कि वे चींटियाँ इधर-उधर ग़ायब हो जाएँ या हमें काटना शुरू कर दें डाल के नीचे गिरते ही हम चींटियों को पकड़कर जल्दी-जल्दी उन्हें मारना शुरू कर देते हैं। लाल चींटियों के काटने पर दर्द बहुत ज़्यादा होता है। एक साथ कई चींटियों के काटने लेने से शरीर में सूजन तक आ जाती है। लेकिन माडिया जनजाति के लोग चींटी पकड़ने में माहिर हैं। उनका मानना है कि अच्छे स्वाद के लिए इतना ख़तरा तो उठाया जा सकता है।

 कैसे बनाते हैं लाल चींटी की चटनी

ओडिशा के मयूरभंज जिले में आदिवासी लाल चींटियों और उनके अंडों को चटनी के रूप में खाते हैं। इस चटनी को ‘काई’ नाम दिया गया है। ना सिर्फ ओडिशा बल्कि झारखंड, छत्तीसगढ़ में भी कुछ ऐसी रेसपी बनती है जहां इसे ‘चपड़ा चटनी’ कहते हैं।  पहले चींटियों और अंडों को सुखाया जाता है। इसके बाद लहसुन-अदरक, नमक, इलाइची और शक्कर मिलाई जाती है और फिर पूरे मटेरियल को साल भर के लिए एक जार में सील पैक कर दिया जाता है।

चींटी खाने से क्या फायदा होता है

सुनने में यह  घिनौना जरूर है लेकिन चींटी के अंदर प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक, पोटेशियम, सोडियम, कॉपर, विटामिन B-12, फाइबर और एमिनो एसिड होते हैं, जो आँखों की रौशनी को तेज करने में और आपको हेल्दी रखने में काफी सहायक होते हैं। लोगों का कहना है कि चींटी खाने से पीलिया, खांसी, जोड़ो में दर्द, कफ और कमजोर नज़र ठीक हो जाती है।

चींटियों के डंक से बुखार होता है कम

बस्तर के इतिहासकार बताते हैं कि आदिवासियों का मानना है कि चापड़ा स्वास्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इन चीटियों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन के साथ ही आयरन और कैल्शियम पाया जाता है, इसके सेवन से मलेरिया, पीलिया और अन्य जलजनित बीमारियों से आराम मिलता है, यही नहीं ग्रामीण अंचलों में रहने वाले आदिवासी तेज बुखार होने पर इस चींटी के झुंड में पंहुच जाते हैं और बदन पर डंक मरवाते हैं।

इन चींटियों के डंक से बुखार भी धीरे- धीरे उतरने लगता है। इतिहासकारों के मुताबिक मार्च और अप्रैल का महीना आते ही ये लाल चींटियां जंगलों में आम के पेड़, सरगी और सालवन के पेड़ों के पत्तों मे बड़े पैमाने पर छत्ता बनाती हैं। ग्रामीण इन चींटियों को जमा कर लेते हैं। अगर इसकी चटनी बनानी हो तो उसे सिलबट्टे पर पीस कर उसमें स्वाद के अनुसार नमक और मिर्च मिलाते हैं, इससे स्वाद चटपटा हो जाता है और फिर बड़े चाव से खाते हैं, वर्तमान में कुछ आदिवासी इस चटनी में अदरक व लहसुन भी मिलाने लगे हैं जिससे इसका स्वाद बढ़ जाता है।

यह चटनी सेहत के लिए लाभकारी

डिमरापाल अस्पताल  के अधीक्षक डॉ. टिकु सिन्हा बताते हैं कि चापड़ा चटनी बस्तर के ग्रामीणों के रोजमर्रा के लिए उपयोग किए जाने वाली व्यंजनों में से एक है, चापड़ा चटनी में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, प्रोटीन होने की वजह से यह शरीर को काफी चुस्त दुरुस्त रखती है।  बस्तर संभाग के सभी इलाकों में ग्रामीण इसे बड़े चाव से खाते हैं और अब शहरवासी भी चापड़ा चटनी का स्वाद चख रहे हैं। लाल चींटी की चटनी को खाने से शरीर में किसी तरह का कोई नुकसान नहीं है, अधिकतर ग्रामीण इसे जिंदा ही चबा जाते हैं। तो कई ग्रामीण इसे चटनी बनाकर बड़े चाव से खाते हैं।

चटनी को GI Tag  देने की मांग

ओडिशा के लोगों को लाल चींटी की चटनी इतनी पसंद है कि वह इसे अपने राज्य का स्पेशल डिश का दर्जा देना चाहते हैं। जैसे मुंबई का वडापाव, दिल्ली की चाट, भुसावल के केले वैसे ही ओडिशा में लाल चींटी की चटनी। ओड़िआ लोगों के लिए लाल चींटी की चटनी सिर्फ भोजन नहीं इमोशन है। और राज्य के लोग इस चटनी को GI Tag देने की मांग कर रहे हैं। लाल चींटी की चटनी को GI Tag मिल जाए तो इसके व्यापक उद्योग को विकसित करने में मदद मिलेगी। जिससे यहां रहने वाले लोगों का व्यापर भी बढ़ेगा।

 

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