कविता : चाहत और मंज़िलें

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

स्वप्न देखना अच्छा होता है, उस पर
अमल करना और भी अच्छा होता है,
आस्था बलशाली होती है, उसको
फलीभूत करना और प्रबल होता है ।

जीवन में चाहत जिसको भी होती है,
हमेशा उसकी मदद गार ही होती है,
इस पथ प्रशस्त पर बढ़कर करें कार्य
तो उसकी चाहत अजेय हो जाती है।

यह चाहत भी जिन्दगी की हर सुबह
कुछ अद्भुत शर्ते ले कर आती है,
जिन्दगी की हर संध्या में चाहत कुछ
सच्चे झूठे अनुभव दे कर जाती है।

चाहत चाहे कितनी भी ऊँची हो,
राहें मंज़िल पैरों के नीचे होती हैं,
पैरों को ऊपर कर उल्टे चलने में
तो राहें अति दुष्कर हो जाती हैं ।

इन राहों पर सीधे उल्टे पैरों चल
कर जो मंज़िल तक पहुँच सका,
कर्तव्य शीलता के द्वारा पहुँचा उस
मंज़िल तक और सफल हो सका ।

ऐसे ही स्वप्नो की दुनिया है जीवन
मंज़िल पाने में आँसू तक आ जाते हैं,
वहीं अगर राहें सुगम्य और सरल हों,
ऐसे अनुभव मुसुकाने फैला जाते हैं।

आँसू और मुस्कान राहों की यादें
बनकर जीवन को सरस बनाती हैं,
आँसू सूखें, मुसुकाने फीकी हों जायें
आदित्य चाहतें भी स्थिर हो जाती हैं।

 

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