कविता:  तुम भी ख़ुश हो, हम भी ख़ुश हैं

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

गली गली में होटल रेस्टोरेंट खुले हैं,

अवैध धंधे कुकुरमुत्ते से पनप रहे हैं,

सालों से चलते आये हैं नज़र बचाके,

पर क्या यह है बिना मिली भगत के।

 

नक़्शे पास नहीं होते हैं पर चलते हैं,

पार्किंग की जगह नहीं पर चलते हैं,

अग्निशमन की नहीं व्यवस्था इनमें,

फिर भी ये धंधे धड़ल्ले से चलते हैं।

हर विभाग का हर अधिकारी इनसे,

सपरिवार सेवा लेने का अधिकारी है,

उनके लिये मुफ़्त की सेवा ही होती है,

नज़रों से इनकी अवैधता पर छिपी है।

सारे शहर में जगह जगह जाम लगा है

इसमें नहीं किसी का योगदान होता है,

हफ़्ता तो है ही, सबको दाना मिलता है,

पार्किंग ठेके में सबको हिस्सा मिलता है।

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आग लगे जाम लगे या कोई मर जाये,

क्या फ़र्क़ किसी को कोई भी पड़ता है,

धंधे वाले तुम भी ख़ुश हो, हम भी ख़ुश हैं,

जन मानस तो बस मनमसोस रह जाता है।

 

कालेज, कोचिंग अस्पताल भी यूँ ही,

हर गली मोहल्ले, व्यापार करते हैं,

नज़र न पड़ती उनके ऊपर किसी की,

वे सब अपनी मनमानी पूरी करते हैं।

 

घटनायें दुर्घटनायें आये दिन होती हैं,

जाँच समिति बनती है रिपोर्ट देती है,

आदित्य उनपर कार्यवाही के नाम पर

सब स्तर से बस लीपापोती होती है।

 

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