अमित सिंह
नेपाल में हो रहे आमचुनाव में एक बात यह देखने को मिला कि वहां उम्मीदवार या उनके किसी बड़े नेता की सभा में नितांत स्थानीय भाषा में उनका संबोधन होता है। फिलहाल बात भोजपुरी की करते हैं। भारत के भोजपुरी पट्टी में भोजपुरी की वकालत खूब होती है, भोजपुरी के नाम पर न जाने कितने मंच बने हुए हैं लेकिन किसी कार्यक्रम या चुनावी सभा में भोजपुरी का इस्तेमाल नहीं होता। चुनाव के दौरान नेपाल के तराई पट्टी में लगभग सभी पार्टियों के बड़े नेता व स्थानीय उम्मीदवार धड़ल्ले से अपना संबोधन भोजपुरी में करते हुए देखे गए। यह यूपी के भोजपुरी बेल्ट में भोजपुरी की वकालत करने वाले और इस भाषा को आठवीं अनुसूची में दर्ज करने की मांग करने वालों के लिए सिख है कि वे बात तो भोजपुरी की करते हैं, लेकिन भोजपुरी भाषा का इस स्तर पर इस्तेमाल करने से कतराते हैं कि वह आंदोलन बन जाय।
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इसके उलट नेपाल में तराई बेल्ट का चाहे नेता हो या जनप्रतिनिधि काठमांडू में मंत्री या प्रधानमंत्री से मिलते वक्त भी भोजपुरी में बात करता है जबकि भारत के भोजपुरिया समाज के लोग किसी अफसर या नेता मंत्री से भोजपुरी में बात करने में अपनी तौहीन समझता है। नेपाल में तराई बेल्ट के लोग भी अंग्रेजी जानते हैं, नेपाली भी जानते हैं लेकिन जब वे अफसर, नेता या मंत्री से बात करते हैं तो भोजपुरी में बात करते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। अफसोस की ऐसी भावना हमारे यूपी, बिहार के भोजपुरी बेल्ट के लोगों में नहीं होती। नेपाल में प्रतिनिधि सभा और प्रदेश सभा का चुनाव प्रचार चरम पर है। यहां भारत सीमा से सटे 22 जिले तराई बेल्ट के नाम से जाने जाते हैं जो यूपी और बिहार सीमा के निकट है।
यूपी सीमा के नेपाली जिलों में भोजपुरी धड़ल्ले से बोली जाती है। तो बिहार सीमा के जिलों में मैथिली व बिहारी बोली जाती है। नेपाल के तराई बेल्ट में शिक्षा का प्रतिशत भी बाकी नेपाली क्षेत्रों से अधिक है। यहां के लोग अंग्रेजी भी बोलते हैं और खड़ी भाषा की हिंदी भी लेकिन आम बोलचाल में वे भोजपुरी, मिथिला और बिहारी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। चुनाव में जो उम्मीदवार हैं वे भी ज्यादातर उच्च शिक्षित हैं। कोई विदेश का पढ़ा लिखा है तो कोई भारत में वाराणसी और दिल्ली जेएनयू से पढ़ कर आया है लेकिन उनके भाषण बिल्कुल ठेठ भोजपुरी में होते हैं। नेपाल के नेताओं का अपनी भाषा और अपनी मिट्टी से आत्मीय लगाव देखने लायक है।
नेपाल के तराई बेल्ट के एक चुनाव क्षेत्र से नेपाली कांग्रेस के युवा उम्मीदवार अभिषेक प्रताप शाह नेपाल के पुराने राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता और दादा भी नेपाल की राजनीति में काफी सक्रिय रहें हैं। वे सब भी सांसद व मंत्री रहे हैं। अभिषेक प्रताप शाह खुद तीन बार से सांसद हैं। चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं। अंग्रेजी, हिंदी और नेपाली भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ है। उनकी तीन चार सभाओं को देखने का मौका मिला। सभी सभाओं में शानदार भोजपुरी में उनका संबोधन देखने लायक था। बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश होती है कि हम जब अपने बीच में हों तो अपनी ही भाषा में बात करें।
केवल अभिषेक प्रताप शाह की बात नहीं है, भोजपुरी बेल्ट के बड़े नेता हैं मंगल प्रसाद गुप्ता! देश विदेश घूमें हैं। परिवार के आधे से अधिक सदस्य अमेरिका में रहते हैं। अपने चुनाव में वे भी भोजपुरी में बात करते हैं। पूर्व मंत्री ईश्वर दयाल मिश्र हों या हृदयेश त्रिपाठी या फिर नेपाल के अडानी अंबानी माने जाने वाले बिनोद चौधरी सबके सब अपने अपने चुनाव में सिर्फ भोजपुरी में भाषण देते हैं,बात करते हैं और वे जब भोजपुरी में बोलते हैं। मतलब नेपाल जहां नेपाली भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए वहां एक बड़े भूभाग में भोजपुरी पूरे सम्मान के साथ इतनी लोकप्रिय है,यह बड़ी बात है।