नीतीश कुमार परसों तक सुशासन बाबू कहलाते थे। आज (11 अगस्त 2022) से दुशासन बन गये। दुर्योधन के अनुज के नाम वाले। कारण ? सत्ता का उन्होंने एक बार फिर चीर हरण कर डाला। दो दशकों में कितनी बार पल्ला झाड़ा? पलटूराम बने। होडल (हरियाणा) के विधायक गया लाल (1967) की भांति जिन्होंने एक ही दिन में दो बार पार्टी बदली। आयाराम-गयाराम कहलाये। वे भी नीतीश से उन्नीस ही पड़े। हालांकि विगत सात मई 2022 को ही आभास हो गया था कि नीतीश पार्टी उलटेंगे। उसी दौर में मुख्यमंत्री सरकारी आवास (एक MS अणे मार्ग, पटना) को तजकर वे अपने पुराने मकान (Seven circular Road) चले गये थे। साथ में अपनी 1सात गायों को भी ले गये थे।
उनकी रूष्टता का कारण था कि रामविलास पासवान के पुत्र चिराग ने चुनाव में उनकी पार्टी की रोशनी गुल कर दी थी। नीतीश की पार्टी जनता दल (यू) केवल 43 विधायक ही जीती। भाजपा 74 जीत ले गयी। तभी नीतीश समझ गये थे कि अब डेरा बदलना होगा। भगवा को तजना होगा। यूं भी अप्रैल माह में जब लालू यादव की इफ्तार पार्टी में बकरा और चूजा चबाया जा रहा था तो उसमें बड़ी गर्मजोशी से मुख्यमंत्री भाग लिया। कुर्मी-यादवों का ऐसा समागम मगध इतिहास में दिलचस्प रहा। नीतीश कुमार कुर्मी सिरमौर हैं। यूपी में बाबू बेनी प्रसाद वर्मा कभी होते थे।
फिलहाल नीतीश द्वारा एक बार पासा पलटने के पीछे अलग-अलग वजह बतायी जाती हैं। वे उपराष्ट्रपति नहीं चयनित हुये तो मन उचट गया। कारण है कि वे वैकल्पिक प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। पिछले आम चुनाव में वे सोनिया से वार्ता हेतु भी मिलने भी गये थे। सोनिया का धूर्तताभरा उत्तर था: कि राहुलजी सब देख रहे हैं। एक सीट पर दो कैसे बैठते? नीतीश तो रेल मंत्री भी रह चुके हैं। भलीभांति जानते हैं कि आरएसी (Waiting seat) केवल एक ही को मिलती है। राहुल के मुकाबले नीतीश कहा ठहरते? फिर वे ममता को भी पसंद नहीं करते थे। एक बार दोनों संसद भवन में रेल मंत्री के कमरे के लिये आपस में तेजी से भिड़ चुके है। भला हो जार्ज फर्नांडिस का कि साथी नीतीश को मना लिया। जिद्दन बंगालन को कमरा मिल गया। भारत के दो काबीना मंत्री एक अदना कक्ष के लिये लड़े !! वाह ! ऐसा ही एक और वाकया था। नीतीश कुमार अपने रेल मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में अपनी ही समता पार्टी मंत्री (MP of Bakan) दिग्विजय सिंह को दोबारा राज्य मंत्री स्वीकारने के लिये तैयार नहीं थे। पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दबाव डलवा कर पार्टी ने उन्हें बनवा दिया। इसी बीच शरद यादव से गठजोड़ कर नीतीश ने जॉर्ज फर्नांडिस को पार्टी अध्यक्ष पद पर से हटवा दिया।
तो कुल मिलाकर अवधारण यही बनी थी कि सत्पुरूष नीतीश धोखा, दगा, कपट और विश्वासघात में भी अपना दखल रखते हैं। उनके झासें में लालू यादव, जो स्वयं शातिर और पलट जाने में माहिर हैं, भी नीतीश के खेमे में भीतर बाहर आते जाते रहे। जेपी आन्दोलन के ये दोनों भाई समूचे बिहार को रेहन बना चुके हैं, बंधक भी। कल की अदला बदली से अब नीतीश पर आमजन की बची खुची आस्था भी लुप्त हो जायेगी। सवाल है कि ऐसा मानसिक रूप से अस्थिर पुरूष उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अथवा केन्द्रीय मंत्री बन जाये तो? खुदा खैर करे। अचरज होता है कि ये दोनों, (Lalu Yadav and Nitish Kumar) भ्रष्ट कांग्रेसी मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को हटाने के संघर्ष में जेल गये थे। मगर यही भ्रष्ट कांग्रेसी मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर बाद में नीतीश कुमार की समता पार्टी के अगुवा बन गये। उन्हें चाभी दी किसने?
गत सप्ताह की घटनाओं का एक कारण यह भी है कि भाजपायी मंत्री शाहनवाज हुसैन ने कह दिया था कि नीतीश कुमार केवल 2025 (तीन साल और) तक ही मुख्यममंत्री बने रहेंगे। अब नीतीश को खुद समझना चाहिये कि भाजपा में राजनीतिक रिटायरमेंट आयु सत्तर पर है। उसके बाद मार्गदर्शक मण्डल में नामित हो जाते हैं। नीतीश कहां जाते? तो क्या तब तक नीतीश भाजपा के हमबिस्तर रहते, मुसलमानों के प्यारे बने रहते या लालूपुत्र तेजस्वी के तेज में झुलसते रहते ! यह नागवार गुजरता। फिर भी नेहरू-टाइप प्रवृत्ति से ग्रसित रहकर नीतीष तिरंगे में लिपट कर ही जाना चाहते है, तो क्यों सिंहासन छोड़े? भले ही जनता ललकारती रहे।
एक किस्सा और। बिहार का आधुनिक इतिहास गवाह है कि बिहार का यह सियासी पुरोधा देश की मीडिया में छाया रहा। चूंकि नीतीश एनडीए के मुख्यमंत्री थे अतः यूपी के योगी आदित्यनाथ जी ने नीतीश कुमार को एक सुझाव दिया। इस्लामी नाम बदलने वाली अपनी रौ में योगी जी ने कहा कि पड़ोसी बिहार में नालन्दा से सटा बख्तियारपुर शहर है जो अभी भी पुराने नाम के बोझ तले दबा हुआ है। परिवर्तन की मांग उठ रही है। योगीजी की इस मांग में काफी दम है। नालन्दा विश्वविद्यालय मानव इतिहास में ज्ञान की अमूल्य धरोहर थी। कट्टर इस्लामी हमलावर ने उसे जला दिया। इतिहास साक्षी है कि बौद्ध शोध कार्य, धर्म, इतिहास आदि की पुस्तकें नालन्दा संग्रहालय में अकूत थीं। इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने सब नष्ट कर दिया। विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी इसी लुटेरे बख्तियार ने राख में बदल दिया था।
इस्लामी क्रूरता और असहिष्णुता के ऐसे बटमारों के नाम पर रखा गया है JDU मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विधानसभा क्षेत्र और कौटुम्बिक गांव। रेलवे स्टेशन अभी भी बख्तियारपुर जंक्शन कहलाता है। योगीजी ने याद दिलाया कि पूर्वी यूपी का मुगलसराय स्टेशन अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कहलाता है। यहीं पर भाजपा चिंतक की हत्या हुई थी। नीतीश कुमार दशकों से राज करते रहे पर मुस्लिम वोट के खातिर अपने क्षेत्र का नाम नहीं बदल सके। इसीलिये योगीजी ने राय दी। वोटों का दबाव?