नक्सलियों का गढ़ ध्वस्त! तिरंगा लहराया !!

के. विक्रम राव


मावोवादियों का मध्यपूर्वी भारत में “लालकिला” गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2023) पर धराशायी हो गया। नक्सलों के चंगुलों से मुक्त हो गया। किन्तु बत्तीस वर्षों बाद ! विडंबना रही। मगर तभी श्रीनगर लाल चौक पर तिरंगा फहर न सका, राहुल गांधी की शोखी दिखाने और शेखी बघारने के बावजूद ! ठीक उनके पहले विफल रह चुके अरुण जेटली और डॉ मुरली मनोहर जोशी की भांति। राहुल गांधी ने तो घोषणा ही वापस ले ली। हील हवाला किया। यह लाल चौक आज भी शाम ढले भोर तक, आतंकियों से ग्रस्त रहता है। सिपाहियों की गश्त लगती है। जैसे श्रीनगर के हजरतबल पर स्थित शेरे कश्मीर शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की मजार पर। वहां भी पुलिस का पहरा लगता है। ताकि कहीं रात में मुस्लिम दहशतगर्द उसे उखाड़ न दें !

अब बात करें मुक्त हुए “बूढ़ा पहाड़” के क्षेत्र की। झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमाओं पर लातेहार एवं गढ़वा जिले में स्थित बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण आश्वस्त हुये कि अब उन्हें कभी दोबारा नक्सलियों के आतंक के साये में नहीं रहना होगा। उन्होंने तो क्षेत्र में नक्सलियों के सफाये के लिए लंबे समय तक चले ‘ऑपरेशन ऑक्टोपस’ में शामिल सुरक्षा बलों को सम्मानित भी किया।

पछ्पन वर्ग किलोमीटर में फैले झारखंड के साथ लगे छत्तीसगढ़ के जंगलों से घिरे इस बूढ़ा पहाड़ पर पिछले तीन दशकों से नक्सलियों का कब्जा था। उनका एकछत्र राज रहा। यह उनका अभेद्य दुर्ग बना हुआ था। झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लातेहार के गारू प्रखंड के सुदूर गांवों से शुरू होने वाला यह पहाड़ इसी जि़ले के महुआडांड़, बरवाडीह होते हुए दूसरे जि़ले गढ़वा के रमकंडा, भंडरिया के इलाके में फैला है। पहाड़ की दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ का इलाका है। यहां आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के शीर्ष नक्सली लीडर और रणनीतिकार पनाह लिया करते थे। माओवादियों के पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के अग्रणी अरविंद उर्फ देवकुमार सिंह, सुधाकरण, मिथिलेश महतो, विवेक आर्या, प्रमोद मिश्रा, विमल यादव सहित कई बड़े नक्सली लीडर के यहां मौजूद रहने की जानकारी पुलिस को मिलती तो थी, लेकिन उन तक पुलिस का पहुंचना नामुमकिन था। यहां उनके कई बंकर और शस्त्रागार भी थे। यहां ट्रेनिंग कैंप में नक्सलियों ने कई फौजी दस्ते तैयार किये जाते थे।

इसी बूढ़ा पहाड़ पर 2018 में एक करोड़ रुपये के इनामी माओवादी अरविंद की बीमारी के दौरान बाहर से कोई सहायता न मिल पाने के कारण मौत हो गई थी। अरविंद की मौत के बाद सुधाकरण और उसकी पत्नी को बूढ़ा पहाड़ का प्रभारी बनाया गया था। दो वर्ष बीते तेलंगाना में सुधाकरण ने पूरी टीम के साथ पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। उनके आत्मसमर्पण के बाद एक दर्जन अन्य कमांडरों ने क्रमशः आत्मसमर्पण किया।

सुरक्षा बलों के मनोबल और इच्छाशक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रतिकूल मौसम, भारी बारिश और आंधी-तूफान के बावजूद इस दौर में अभियान जारी रहा। ग्रामीणों में दैनिक उपभोग की वस्तुओं का वितरण होता रहा। इस इलाके के ग्रामीणों के लिए अस्पताल, स्कूल, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का निर्माण कार्य शुरू हो रहा है। “आपरेशन आक्टोपस” में कोबरा, झारखंड जगुआर व सीआरपीएफ के साथ लातेहार, गढ़वा पुलिस दलों ने बूढ़ा पहाड़ के नीचले हिस्से में कैंप स्थापित किया। इस दरम्यान चार सितंबर को नक्सलियों के बड़े बंकर पर पुलिस ने कब्जा कर लिया था, जहां से 106 बारूदी गोलो के अलावा गोली के जखीरे के साथ भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गई थी।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर लातेहार के गारू प्रखंड के सुदूर गांवों से शुरू होने वाला यह पहाड़ इसी ज़िले के महुआडांड़, बरवाडीह होते हुए दूसरे ज़िले गढ़वा के रमकंडा, भंडरिया के इलाके में फैला है। मंडल डैम से दक्षिण-पूरब में इस पहाड़ का एक हिस्सा पलामू व्याघ्र परियोजना के कोर एरिया से भी सटा है। पांच-छह साल पहले तक पलामू में लगातार होती पुलिस कार्रवाईयों के बाद नक्सलियों ने बूढ़ा पहाड़ को रणनीति के साथ अपना ठिकाना बनाने की कोशिशें तेज की थी। प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज़ से इस पहाड़ को बार-बार निहारने को मन करेगा, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा और कई अनजान गुफाएं, चोटियां सालों से नक्सलियों के लिए मुफीद ठिकाना बनी रही थी। अक्सर नक्सली घटनाओं की वजह से बूढ़ा पहाड़ चर्चा के केंद्र में होता है। तमाम कार्रवाई के बाद भी पुलिस के सामने बूढ़ा पहाड़ से नक्सलियों से खाली कराने की चुनौती बनी रही। हाल ही में नक्सलियों ने रमकंडा में कई वाहनों में आग भी लगा दी थी जबकि कुछ महीने पहले गांवों से कई लोगों का अपहरण भी हुआ था। गढ़वा-स्थित बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र हमेशा से उपेक्षित रहा है। यहां के ग्रामीण कई सुविधाओं से वंचित हैं। परंतु अब नहीं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कई कल्याणकारी योजनाओं का आगाज किया। मुख्यमंत्री खुद ने करोड़ रूपये की विकास योजनायें चालू की। बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र के समेकित विकास के लिए 100 करोड़ की लागत से पहाड़ विकास परियोजना का आरंभ हो रहा है।

कैसा विस्मायात्मक है ? राजधानी रांची के निकट वाले इस “बूढ़ा पहाड़” से थाईलैंड के “बुद्ध पर्वत” का भी भ्रम उपजता रहा। अंग्रेजी वर्तनी के कारण। पट्टाया में सदियों पूर्व निर्मित “खावो ची चान” शिला पर रेखांकित गौतम बुद्ध के ध्यान मानचित्र पर्यटकों को आकर्षित करता है। (चित्र देखें)। इसको कभी वियतकांग कम्युनिस्टों के कारण सुर्खियां मिलती थी। वियतनाम पर अमरीकी बमवर्षा से इस क्षेत्र में अपार क्षति हुई थी। अपनी तीर्थयात्रा पर इस क्षेत्र को निहारकर ऐसे ही कम्युनिस्ट गुरिल्ला के द्वारा किये गये अपार जनधन की हानि पर हमें क्षोभ हुआ था। मैं एक पत्रकार सम्मेलन में राजधानी बैंगकांग से पट्टाया गया था। अब आदिवासी झारखंड के इस “बूढ़ा पहाड़” का संकटमोचन हो गया है। सशस्त्र पुलिस बलों का राष्ट्र आभारी रहेगा।

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