कविता: वक्त ज़रूरत पर जब अकेला पाया

कर्नल आदि शंकर मिश्र
कर्नल आदि शंकर मिश्र

कुछ लोग आगे पीछे रहते हैं,
हँसते खेलते समय बिताते हैं,
इसका तात्पर्य यह नहीं होता है,
कि ऐसे सब लोग सच्चे मित्र हैं।

इस बात का ध्यान रखना होगा,
कि लोग मीठा मीठा बोलते हैं,
सुबह शाम गुण गान करते हैं,
अन्त में अपना रंग दिखा देते हैं।

मुझे बहुत अच्छा लगता था सभी
को सादर सदैव ख़ुश रखने का,
वक्त ज़रूरत पर जब अकेला पाया,
स्वयं को, मुझे खुद होश तभी आया।

हज़ारों लोग जुड़कर ये जताते हैं,
मगर मौक़े पाते बदल जाते हैं,
कौन अपना और कौन पराया है,
समय आने पर पता लगता है ।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टाइन का
कहना था उन्हें धन्यवाद देता हूँ,
जो अवसर आने पर नकार देते हैं,
और अपना बन निराश कर देते हैं।

उनके इस नकार का कारण है
कि मैंने स्वयं वह कर दिखाया है,
जो उनसे मिलकर हमें करना था,
वह सब अकेले दम कर डाला है।

इसके लिये जुनून जगाना पड़ता है,
दिल लगा मंज़िल पर जाना पड़ता है,
जैसे पक्षी को घोंसला बनाने के लिये,
बार बार उड़कर तिनके लाना पड़ता है।

इसी जुनून के साथ अपने मन को
पवित्र रखने की कोशिश करनी है,
आदित्य शरीर पूरा पाक नहीं हो सकता,
पर इंसान पवित्रता की कोशिश करता है।

 

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