Exclusive: Inside Story: BJP से तलाक लेने के पीछे क्या है नितीश की Real Story,

रंजन कुमार सिंह


साल 2017 में RJD  से खफा होकर NDA में वापसी करने वाले नीतीश कुमार वापस RJD  के साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर तैयार क्यों हो गए हैं। नीतीश कुमार के लिए ये फैसला आसान नहीं है क्योंकि RJD  से डील करना उनके लिए सालों से कमाई हुई सुशासन बाबू की इमेज को खत्म करने जैसा है। लेकिन NDA में वापसी करने वाले नीतीश कुमार एक बार फिर RJD  के साथ जाने को विवश क्यों हैं? नीतीश कुमार साल 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही BJP पर धोखेबाज होने का शक करने लगे हैं। नीतीश खेमा पूरी तरह से मानता है कि ” चिराग मॉडल” BJP द्वारा किया गया एक प्रयोग था जो JDU को कम सीट पर समेटकर नीतीश कुमार के कद को कमजोर करने के लिए प्रयोग किया गया था। JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह इसी चिराग मॉडल के खुलासे की बात कल यानि कि रविवार को इशारों इशारों में कर रहे थे। दरअसल नीतीश कुमार इस बात को लेकर बेहद खफा रहते हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 में से NDA को 39 सीटें मिलती है जबकि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में 243 सीटों में से JDU 43 पर सिमट जाता है।

वहीं BJP 73 का आंकड़ा छूने में कामयाब हो जाती है। JDU के एक बड़े नेता के मुताबिक नीतीश कुमार बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम को BJP द्वारा किया गया सेबोटाज (Sabotage) मानते हैं और वो इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं हैं कि लोकसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया था और विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में। सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार साल 2020 के परिणाम को इस तरह देखने को तैयार नहीं हैं कि जो ग्लैमर और आकर्षण उनके लिए साल 2010 तक बिहार में था वो 2020 में पहुंचते पहुंचते काफी कम हो चुका था। बहरहाल नीतीश 43 सीट मिलने के बावजूद सीएम BJP द्वारा बनाए गए लेकिन नीतीश कुमार लगातार इस सरकार में घुटन महसूस कर रहे हैं और उन्हें जिन नेताओं से डील करना पड़ रहा है उसके वो कभी आदी नहीं रहे हैं।

नीतीश के बेहद करीबी सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार अडवाणी के निष्क्रिय होने के बाद भी केन्द्रीय नेता अरुण जेटली के साथ और राज्य स्तर पर सुशील मोदी के साथ डील करने में सहज थे लेकिन नए BJP में भूपेन्द्र यादव और नित्यानंद राय समेत संजय जायवाल से डील करना उनके लिए लगातार असहज सा प्रतीत होने लगा था। JDU में यह भरोसा बड़े नेताओं में घर कर गया है। कि अग्निवीर योजना पर BJP के बिहार प्रदेश अध्यक्ष समेत कई बड़े नेताओं द्वारा सीधा सरकार पर हमले गैरजरूरी था और ये नीतीश कुमार पर सीधा सीधा निशाना था JDU नेताओं को नागवार गुजर रहा था।

BJP की बैठक ने JDU के शक को यकीन में बदल दिया

BJP 200 विधानसभा सीटों पर पूरे देश से आए सातों मोर्चे के नेताओं को भेजकर ज़मीनी हकीकत तलाशने की कोशिश चंद दिनों पहले बिहार में की। इससे JDU के कान खड़े हो गए। BJP नेताओं द्वारा कहा गया कि केन्द्र की स्कीम जमीन पर उतर पाई है या नहीं इसको जानने का प्रयास दूसरे प्रदेश के नेताओं को ज़मीन पर उतारकर किया गया। लेकिन JDU को पुख्ता यकीन हो चला था कि BJP बिहार में अकेले चलने के लिए कदम आगे बढ़ा चुकी है। JDU के नेता दबी जुबान में कहना शुरू कर चुके थे कि ये अटल अडवाणी बाली BJP नहीं है जो सहयोगियों को सम्मान देती है। ये मोदी और शाह की BJP है जो महाराष्ट्र में शिवसेना। पंजाब में अकाली दल, झारखंड में JMM को धता बताकर उसे निगलने का लगातार प्रयास कर रही है। JDU महाराष्ट्र में होने वाली गतिविधियों से और भी ज्यादा चौकन्नी हो गई। इसलिए JDU के भीतर “दूसरे चिराग मॉडल” का जिक्र होने लगा जिसका अभिप्राय JDU छोड़कर निकले आरसीपी सिंह से था। दरअसल पार्टी में आरसीपी सिंह महाराष्ट्र की तर्ज पर तोड़ फोड़ कर सकते हैं ऐसा पार्टी के अंदर सुगबुगाहट तेज हो गई।। इसलिए JDU अपने पुराने राष्ट्रीय अध्यक्ष पर हमला कर उसे बाहर निकलने को विवश कर दिया।

Operation RCP के बाद आरजेडी का सहारा ही बचा है एकमात्र विकल्प

RCP सिंह द्वारा भीतरघात करने का डर JDU के भीतर घर कर चुका था। इसलिए राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दूसरा चिराग मॉडल नाम देकर इशारों में पार्टी के भीतर की सोच को ज़ाहिर कर दिया। JDU आरसीपी सिंह को विभीषण मानकर काम करना शुरू कर चुकी थी लेकिन BJP से अलग चलने के लिए ये शर्त भी सामने रख दी कि JDU को केन्द्र में दो मंत्रीपद चाहिए। ज़ाहिर है BJP इसके लिए शुरू से ही तैयार नहीं है इसलिए JDU एक्जीट रूट का रास्ता पहले से ही तलाशना शुरू कर चुकी है। JDU को पूरा भरोसा है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव तक BJP को नहीं घेरा गया तो बिहार में JDU का हश्र साल 2025 में साल 2020 से भी ज्यादा खराब होने वाला है। JDU अपने राजनीतिक वजूद को बचाने की फिराक में है और BJP अपनी योजना के मुताबिक साल 2025 में सरकार न बना सके इसके लिए आरजेडी के साथ जाना ही उसे एकमात्र विकल्प नजर आने लगा है।

यही वजह है कि साल 2013 में नरेन्द्र मोदी के विरोध में NDA से अलग होने वाले नीतीश 2015 में ही BJP के साथ आना चाहते थे। BJP द्वारा न कहने के बावजूद आरजेडी के साथ जाना उनकी विवशता थी लेकिन साल 2017 में नीतीश कुमार समझ चुके थे कि आरजेडी जैसी पार्टी के साथ डील करना उनके इमेज के लिए खतरनाक है। इसलिए NDA में वापस आकर बिहार की सरकार में बने रहना नीतीश कुमार को ज्यादा राजनीतिक रूप से लाभप्रद और सहज भी दिखा। लेकिन आज की BJP के साथ बने रहने में नीतीश असहज भी हैं और राजनीतिक वजूद को लेकर असमंजस में भी।

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