उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में गन्ने की खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है: कांग्रेस

लखनऊ प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करने वाली BJP की मोदी सरकार ने लोकसभा 2019 और विधानसभा चुनाव से पहले गन्ना किसानों को 50 प्रतिशत लाभकारी मूल्य देने का वादा किया था। लेकिन BJP सरकार ने अपने कार्यकाल के साढ़े 8 सालों बाद गन्ने के दाम में मात्र 325 रुपये से 350 रुपये प्रति कुन्तल किया है। सरकार ने सिर्फ 25 रुपये प्रति कुन्तल ही बढ़ाया है। डीजल 56 रुपये से बढ़कर 92 रुपये हो गया है। जबकि किसान को एक किलो पर सिर्फ 25 पैसे ही बढ़कर मिल पाएगा।

उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में गन्ने की खेती ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। यूपी में 75 जिले हैं और इसमें से करीब 45 जिलों में प्रमुखता से गन्‍ने की खेती होती है। कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने कहा कि वर्ष 2018 में विधानसभा में एक प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन गन्ना मंत्री ने राज्य के गन्ना संस्थानों में गन्ना उत्पादन की लागत 294 रुपये प्रति कुन्तल बताई थी। जो आज चार साल में 25 से 30 फीसदी और बढ़ गई है। अगर 2018 के उत्पादन की लागत को ही 300 प्रति कुन्तल मानकर चलें और उस पर 50 फीसदी किसान की बढ़ोतरी जोड़ें तो 450 रुपये प्रति कुन्तल 2018 में ही गन्ना मूल्य होना चाहिए था। गन्ने की फसलों की खेती में पानी की उपलब्धता में अनियमितता किसानों के बीच एक प्रमुख मुद्दा है। गन्ने की नई किस्मों की गुणवत्ता वाले बीज की अपर्याप्त उपलब्धता और खराब बीज प्रतिस्थापन दर, गन्ने की उपज को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।

कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने वर्तमान गन्ना मूल्य निर्धारण नीति में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन की दलील का समर्थन करते हुए कहा कि सरकार की तरफ से गन्ने के FRP ( उचित और लाभकारी मूल्य ) में 15 रुपये प्रति कुन्तल की बढ़ोतरी को खूब प्रचारित किया जा रहा है। जबकि वास्तव यह बढ़ोतरी केवल 7.75 रूपये की है। सरकार ने FRP के लिए गन्ने की चीनी की रिकवरी के आधार को 0.25 फीसदी बढ़ाकर 10.25 फीसदी  कर दिया है। जबकि पिछले साल तक FRP का आधार 10 फीसदी चीनी की रिकवरी था। ऐसे में  सरकार ने जो फार्मूला लागू किया उसके बाद यह बढ़ोतरी घटकर 7.75 रुपये प्रति कुन्तल की है और देश में गन्ना उत्पादन के अनुमान के आधार पर किसानों को करीब 2600 करोड़ रुपये का घाटा होगा। सरकार भोले-भाले किसानों को जटिलतापूर्वक मूल्य निर्धारण निति में उलझा कर वास्तविक MSP क्यों नहीं घोषित करती है? जब की बढ़ती हुई महंगाई और किसानों की वर्तमान दुर्दशा को देखते हुए गन्ना मूल्य कम से कम 450 ₹ प्रति कुन्तल के हिसाब से होना ही चाहिए।

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कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने पेराई सत्र 2022-2023 का गन्ना मूल्य कम से कम 450 रुपये प्रतिकुन्तल घोषित किए जाने की योगी सरकार से मांग करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने गन्ने का जो समर्थन मूल्य 350 रखा है। इस मूल्य तक पहुंचने के लिए गन्ने का उत्पादन मूल्य 162 रूपये प्रति कुन्तल बताया गया है। जिस पर 88 प्रतिशत ज्यादा मूल्य देते हुए नया मूल्य निर्धारित किया गया है। जबकि किसानों का कहना है कि वास्तविकता में गन्ना उत्पादन की लागत इससे कहीं ज्यादा है और वर्तमान में यह 304 रूपये के आसपास बैठती है। इस वास्तविक उत्पादन मूल्य के हिसाब से देखें, केंद्र के द्वारा की गई मूल्य बढ़ोतरी केवल छलावा है और इससे गन्ना उत्पादक किसानों का कोई भला नहीं होगा। विकास श्रीवास्तव ने कहा कि आज देश में गन्ने से जुड़े लगभग 5 करोड़ परिवार हैं और गन्ना किसान राष्ट्र की खपत से ज्यादा चीनी पैदा करता है।

गन्ना किसानों का दुर्भाग्य यह है कि गन्ना महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में तो है पर केंद्र में गन्ने का विभाग नहीं है। जिसके कारण किसान की पीड़ा, खास तौर पर सही रेट, समय से भुगतान और विलंब पर ब्याज सम्बन्धित शिकायतें केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास नहीं पहुंच पाती। कांग्रेस पार्टी सरकार से केंद्र में गन्ना विभाग बनाने की किसानों की उठ रही मांग का समर्थन करती हैं। ताकि गन्ना किसानों की समस्याओं का उचित समाधान समय रहते किया जा सके। प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने गन्ना एक्ट एवं कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकार चीनी मिलों से किसानों को उचित गन्ना मूल्य भुगतान नहीं करा पाई।

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उन्होंने आगे कहा कि एक तो बाढ़ और मौसम की मार ने किसानों को पहले ही बर्बाद कर दिया। दूसरी तरफ गन्ना किसान भुगतान न होने के कारण कर्ज के दलदल में फंसता चला गया है। चीनी मिल फिर से चालू होने वाली है। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार को कांग्रेस पार्टी ने ज्ञापन  देकर कई बार ₹450 प्रति कुंतल गन्ना रेट घोषित करने की मांग की। उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की बड़ी समस्या समय से भुगतान न होना भी है, जिससे आवश्यक खर्चों के भुगतान के लिए उन्हें कर्ज लेकर अपना काम चलाना पड़ता है। गन्ना मूल्य भुगतान के लिए 15 दिन की समयावधि तय की गई थी, समय बीत जाने के बाद उस पर ब्याज देने का प्राविधान है, लेकिन किसानों को इसके बाद भी भुगतान नहीं किया जा रहा है। यदि किसान बिजली का बिल समय पर नहीं चुकाते।  तो उनकी बिजली काटी जाती है। उनसे जुर्माना वसूला जाता है। ऐसे में चीनी मिल किसानों का न तो समय पर भुगतान करती है और न ही उन्हें ब्याज देती है। सरकार विलंब से भुगतान पर विलंब शुल्क वसूलती है।

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