राजेश श्रीवास्तव
राहुल गांधी इन दिनों अगर देश की सियासत का केंद्र बन रहे हैं। तो दूसरी ओर कुछ ऐसी गलतियां फिर कर रहे हैं जिस पर अगर वह अमल करते रहे। तो वह प्रधानमंत्री मोदी को शिकस्त देने में कामयाब नहीं हो सकेंगे। लेकिन राहुल शायद यह गलती कर रहे हैं। अभी अपने बयानों में राहुल गांधी का स्वयं को मार देने वाला बयान हैरान कर गया। उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि राहुल गांधी को उन्होंने मार डाला है, और ये कि जिस राहुल को लोग देख रहे हैं। वो सिर्फ उनके मन-मस्तिष्क की ही उपज है। उन्होंने मीडिया कर्मियों से ये भी कहा कि वे हैरान न हों, हो सके तो शिव जी को पढ़ें और हिन्दू धर्म के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाएं। राहुल गांधी ने ही कर दी राहुल गांधी की हत्या!! राहुल गांधी कहना क्या चाह रहे हैं? वो इसे और ज्यादा स्पष्ट करते तो बेहतर होता. क्या वे किसी गहरे मनोवैज्ञानिक सत्य की तरफ इशारा कर रहे हैं? दरअसल वो यह कहना चाहते थे।
कि लोगों के मन में जो उन्हें लेकर छवि बनी हुई है, धारणा बनी हुई है, उसे वे भूल जाएं, क्योंकि उन्होंने खुद ही उसे विस्मृति के हवाले कर दिया है, उसे मार दिया है, मिटा डाला है। राहुल जानते हैं मानवीय संबंधों में छवि का बड़ा महत्व होता है और अक्सर हम लोगों के बारे में एक स्थाई छवि बना लेते हैं। इसके बाद उस व्यक्ति को इसी छवि के जरिये देखा जाता है। छवि इतनी प्रबल हो जाती है कि उसके पीछे लगातार बदलता, संघर्ष करता वास्तविक इंसान छिप ही जाता है। राहुल चाहते हैं कि लोग उस राहुल को भूल जाएं जिसे विपक्षियों ने ‘पप्पू’ घोषित कर दिया था। ये तो स्पष्ट है कि राहुल गांधी लोगों को उनकी छवि से परे जाकर फिर से उनका आकलन करने का आग्रह करते नजर आ रहे हैं।
उन्हें खुद भी इस बात का भरोसा है कि वो पहले वाले राहुल गांधी नहीं रहे। उनमे एक आत्मविश्वास जगा है और वो अपनी परिपक्वता को स्थापित करने की कोशिश में हैं। पर ये बातें उन्होंने जिस तरह से रखीं वो तरीका बेहतर होता तो ठीक था लेकिन राहुल ने हास्यास्पद तरीके से कहा कि राहुल गांधी हैं कहां वो तो मर गया है । इसके पहले भी राहुल ने तपस्वी और पुजारी के बीच के फर्क, कौरव और पांडव की गाथा पर और कौरवों की आरएसएस के साथ तुलना करते हुए बयान भी दिए। गीता को उद्धृत किया और मंदिर-मंदिर घूमते भी देखे गए। बेहतर यही होगा कि राहुल गांधी धर्म और दर्शन के बजाय जिन चीजों को लेकर मोदी सरकार पर हमला हो रहा है, उनको उठायें। राहुल गांधी खुद फकीर बनकर तपस्वी को हराने की कोशिश कर रहे हैं।
राहुल गांधी का मालुम होना चाहिए कि सबसे बड़ा विरोधी दल बीजेपी अब सत्ता में है। बीजेपी धर्म आधारित राजनीति ही करती है। मंदिर बनाना, सनातनी रीति रिवाजों को प्रोत्साहित करना, ये सब उनके लिखित या अलिखित मैनिफ़ेस्टो का ही हिस्सा है और वे उसे पूरा करते हैं, उसी के आधार पर लोग उसे वोट देते रहे हैं और इन बातों को लेकर बीजेपी पिछले दो लोक सभा चुनावों में जीतती आई है। पर कांग्रेस ने जब भी धर्म के इलाके में घुसने की कोशिश की है, उसे नुकसान ही हुआ है। राहुल को अभी से बीजेपी के अखाड़े में जाकर उनसे कुश्ती नहीं करनी चाहिए। राहुल गांधी को भाजपा की पिच पर जाकर बैटिंग करने से बचना होगा। उनकी राजनीतिक परिपक्वता इसी से साबित होगी।
राहुल गांधी गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक और सामाजिक असंतुलन, सांप्रदायिक वैमनस्य से जुड़े अपने मुद्दों से जुड़ कर बातें करते रहें तो लोगों में एक अलग तरह की राजनीति को लेकर उम्मीदें जगी रहेंगी। उन्हें देश के उन मुद्दों को उठाकर बातचीत करनी चाहिए, जिन्हें बीजेपी उठाने से भी कतराती है। राहुल गांधी को लोगों को ये भरोसा दिलाना चाहिए कि वे देश की राजनीति को एक नई दिशा में ले जाना चाहते हैं, एक ऐसी दिशा जिसमें सबकी आर्थिक और सामाजिक तरक्की की पर्याप्त संभावनाएं हैं। एक ऐसी नई दिशा जिसकी तरफ पीएम मोदी उन्हें नहीं ले जा सके । क्योंकि राहुल गांधी बीजेपी के ही खेल में उनसे नहीं जीत पाएंगे। धर्म की पिच पर खेलकर तो बिल्कुल नहीं। न दाढ़ी बढ़ाकर न जनेऊ पहनकर । बल्कि यदि वो एक मजबूत विकल्प और विपक्ष के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश करें, अपनी पार्टी और देश हित की बातें करके, तो हो सकता है कि वो अपने मकसद में कामयाब हो जाएं। बेहतर यही होगा कि वे लोगों के हित में जमीनी मुद्दों से जुड़े रहकर बातें करें। राहुल गांधी को ये याद दिलाना जरूरी है कि विपक्ष में वास्तव में सिर्फ वही हैं, उनके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई स्वीकार्य नेता फिलहाल तो नहीं नजर आता।
राहुल गांधी को समझना होगा कि वह राहुल को मारें नहीं क्योंकि अगर राहुल गांधी मर गये तो नये राहुल को बनने में इतना वक्त लग जायेगा कि 2०24 नहीं 2०29 भी बीत जायेगा। राहुल जिस राह पर चल रहे हैं वहां उनकी इमेज खुद बन रही है लोगों की उम्मीद उनसे जग रही है । बस वह भाजपा की पिच पर जाकर बैटिंग करने से बचें। मोदी को मोदी बनकर हराना बहुत मुश्किल ही नहीं असंभव है।